अलीगढ़ शहर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक संजीव राजा की पत्नी मुक्ता राजा [ Mukta Sanjeev Raja ] ने जीत हासिल की। 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के ज़फ़र आलम को 12,786 वोटों के अंतर से हराया।
मुक्ता राजा [ Mukta Sanjeev Raja ] को उनकी पार्टी ने इस सीट से प्रत्याशी बनाया था। इसकी एक वजह यह थी कि उनके पति संजीव राजा के खिलाफ 22 साल पहले सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने और यातायात पुलिस के साथ मारपीट का एक मामला दर्ज था। इस मामले में स्थानीय अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई थी, हालाँकि वह जमानत पर हैं। अभी यह मामला हाई कोर्ट में लंबित है, जिसके चलते पार्टी ने संजीव राजा की पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा। अब मुक्ता राजा अलीगढ़ शहर सीट की नई विधायक चुनी गई हैं।
मैं मुक्ता संजीव राजा…. pic.twitter.com/XQLCfxtBTC
— Mukta Sanjeev Raja (@muktarajabjp) March 28, 2022
अलीगढ़ के पूर्व विधायक संजीव राजा: संघर्ष, विवाद और जनता के बीच छाप [ Mukta Sanjeev Raja ]
संघ से जुड़ाव और राजनीति की शुरुआत
अलीगढ़ के द्वारिकापुरी निवासी और संघ परिवार से जुड़े पूर्व विधायक संजीव राजा का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा। उनके मामा, मा. ओमप्रकाश, उन्हें पढ़ाई और अपनी अचलताल स्थित किताबों की दुकान पर सहयोग के लिए वजीरगंज से अलीगढ़ ले आए। लेकिन यहाँ आकर वे धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हो गए। उनकी शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से हुई और फिर वे भाजपा से जुड़ गए। संघ के प्रभाव और अपने मेहनती स्वभाव के कारण वे जल्द ही शहर के एक प्रभावशाली युवा नेता के रूप में उभरे।
विवादों और कट्टर छवि के बीच पहचान
संजीव राजा को एक जिद्दी, निर्णायक और कभी-कभी विवादास्पद नेता के तौर पर जाना जाता था। उन पर कई मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें सरकारी कार्य में बाधा, मारपीट और सांप्रदायिक तनाव से जुड़े आरोप शामिल थे। 2003 के रोरावर कांड और 2006 के दंगों के दौरान वे अक्सर सुर्खियों में रहे। इसके बावजूद, उनकी जमीनी पकड़ और आम लोगों से सीधा संवाद उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
जनता के बीच लोकप्रियता
संजीव राजा की सबसे बड़ी खासियत थी कि वे हमेशा आम लोगों के लिए उपलब्ध रहते थे। विधायक रहते हुए भी वे स्कूटर पर घूमते थे और किसी का भी फोन उठाते थे। उनके समर्थकों का कहना था कि वे गली-मोहल्ले तक लोगों को नाम से पहचानते थे और उनकी समस्याओं का तुरंत समाधान करते थे। यही वजह थी कि भले ही वे कई बार पार्टी से निलंबित हुए, लेकिन उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई।
दो बार पार्टी से निलंबन
1995-96 में भाजपा के महानगर अध्यक्ष पद के लिए हुए विवाद में उन्हें पहली बार निलंबित किया गया। दूसरी बार 2012 में हुआ, जब पार्टी ने उनकी जगह आशुतोष वाष्र्णेय को टिकट दिया और उन्होंने खुले तौर पर विद्रोह कर दिया। हालाँकि, उनकी जमीनी ताकत के कारण पार्टी को जल्द ही उन्हें वापस बुलाना पड़ा।
आकस्मिक निधन
फरवरी 2023 में संजीव राजा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली AIMS में इलाज कराने वाले थे, लेकिन तबीयत बिगड़ने के कारण उनका देहांत हो गया। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी मुक्ता राजा ने 2022 के चुनाव में अलीगढ़ शहर सीट से जीत दर्ज की, जिससे उनकी विरासत आगे बढ़ी।
अलीगढ़ सदर से पूर्व विधायक श्री संजीव राजा जी का निधन अत्यंत दुःखद है। मेरी संवेदनाएं शोक संतप्त परिजनों के साथ हैं।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) February 11, 2023
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल परिजनों को यह अथाह दुःख सहने की शक्ति दें।
ॐ शांति!
संजीव राजा का राजनीतिक सफर संघर्ष, विवाद और जनसमर्थन की एक अनोखी मिशाल है। भले ही वे कट्टर छवि के नेता रहे हों, लेकिन उनकी जनता से नजदीकी और सीधेपन ने उन्हें अलीगढ़ की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने में मदद की।
अलीगढ़ जिले के 7 विधायक का जीवन परिचय और राजनीतिक सफर
क्रम संख्या | विधायक का नाम | पार्टी का नाम | विधानसभा क्षेत्र | जिला |
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1 | अनिल पाराशर | भारतीय जनता पार्टी | 75-कोइल | अलीगढ़ |
2 | जयवीर सिंह | भारतीय जनता पार्टी | 72-बरौली | अलीगढ़ |
3 | मुक्ता संजीव राजा | भारतीय जनता पार्टी | 76-अलीगढ़ | अलीगढ़ |
4 | रवेंद्र पाल सिंह | भारतीय जनता पार्टी | 74-छर्रा | अलीगढ़ |
5 | राजकुमार सहयोगी | भारतीय जनता पार्टी | 77-इगलास | अलीगढ़ |
6 | संदीप कुमार सिंह | भारतीय जनता पार्टी | 73-अतरौली | अलीगढ़ |
7 | सुरेंद्र डीलर | भारतीय जनता पार्टी | 71-खैर | अलीगढ़ |