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कहानी कांग्रेस की: अभूतपूर्व संकट से जूझ रही देश के सबसे पुरानी पार्टी!

कांग्रेस हटाओ देश बचाओ..इंदिरा हटाओ देश बचाओ..गैर कांग्रेसवाद यह ऐसे नारे या अभियान रहे है जो समय समय पर कांग्रेस के खिलाफ चलते रहे है लेकिन 130 साल पुरानी इस पार्टी के खिलाफ जो नारा सबसे ज्यादा प्रभावी रहा वह था कांग्रेस मुक्त भारत. यह नारा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया जो जनता के दिल को अपील कर गया. कांग्रेस के 10 साल के शासनकाल मे भ्रष्टाचार की दर्जनों कहानियां अख़बारों से लेकर टीवी चैनल तक सुर्खियां बटोरती रही. मंहगाई की मार से परेशान आम लोगों की जुबान पर पीपली लाईव फिल्म के मंहगाई डायन जैसे गाने लोकप्रिय होते रहे. अन्ना का आंदोलन औऱ बीजेपी में नये रणनीतिकारों का उदय. कुल मिलाकर सब तरफ से धीरे धीरे घिर रही कांग्रेस औऱ उसके नेता शायद नही जानते थे कि उनकी सबसे मजबूत सियासी इमारत दरअसल दरकने लगी है. अब खुद कांग्रेस के थिंक टैंक यह मान रहे है कि कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट खडा हो गया है. तो क्या देश वाकई कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ बढ चुका है.

शानदार इतिहास से इतिहास बनने की तरफ बढ रही कांग्रेस

दरअसल कांग्रेस का इतिहास दो भागो में बंटा हुआ है. एक हिस्सा है आजादी से पहले का जिसमे महात्मा गांधी से लेकर सरदार बल्लभ भाई पटेल तक के हमारे रियल हीरो की लंबी फेहरिस्त है औऱ दूसरा भाग है आजादी के बाद यानि देश की सबसे बडी सियासी पार्टी का जिसके नाम पर भी शानदार इतिहास है लेकिन कई बदनुमा दाग भी है.कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर 1885 में हुई थी.इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम , दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे.19वी सदी के आखिर से लेकर मध्य 20वी सदी के मध्य तक कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने डेढ करोड़ से अधिक सदस्यों और 7 करोड़ से अधिक सहयोगियो के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में सबसे मजबूत भूमिका मे रही थी.1947 में आजादी के बादकांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई. आज़ादी से लेकर अब तक16 आम चुनावों में सेकांग्रेस ने 6 बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और 4 बार सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया. इस तरह से उसने करीब 50 सालो तक देश की सत्ता पर राज किया.. देश मे इस दौरान कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके है. पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह तक कांग्रेस का देश मे राज रहा इस बीच मे कभी कभी झटके भी लगे लेकिन 2014 के आम चुनाव मेंकांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब चुनावी प्रदर्शन किया और 543 सदस्यीय लोक सभा में केवल 44 सीटे ही जीत सकी.

कांग्रेस के खिलाफ प्रमुख अभियान –

लोहिया का काँग्रेस हटाओ आन्दोलन……राम मनोहर लोहिया लोगों को आगाह करते आ रहे थे कि देश की हालत को सुधारने में काँग्रेस नाकाम रही है. काँग्रेस शासन नये समाज की रचना में सबसे बड़ा रोड़ा है. उसका सत्ता में बने रहना देश के लिये हितकर नहीं है. इसलिये लोहिया ने नारा दिया काँग्रेस हटाओ, देश बचाओ….1967 के आम चुनाव में एक बड़ा परिवर्तन हुआ. देश के 9 राज्यों – पश्चिम बंगालबिहारउड़ीसामध्यप्रदेशतमिलनाडुकेरलहरियाणापंजाब और उत्तर प्रदेश में गैर काँग्रेसी सरकारें गठित हो गयीं। लोहिया इस परिवर्तन के प्रणेता और सूत्रधार बने.

जेपी आन्दोलन : संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद हुआ

भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन: सन् 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कम्पनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी. उस समय केन्द्र में काँग्रेस की सरकार थी और उसके प्रधानमन्त्री राजीव गान्धी थे. स्वीडन रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया.इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्सकाण्ड के नाम से जाना जाता हैं. इस खुलासे के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन चलाया जिसके परिणाम स्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मन्त्री बने.कांग्रेस-मुक्त भारत: लोकसभा के चुनावों के समय नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया जो काफी प्रभावी रहा. चुनावों में कांग्रेस की सीटें मात्र 44 पर आकर सिमट गयीं, जिसे विपक्षी दल का दर्जा भी प्राप्त नहीं हुआ.इस तरह से देश में कई बार ऐसे मौके आये जब देश की जनता कांग्रेस के खिलाफ लामबंद हो गई. बकौल जयराम रमेश चुनावी संघर्ष मे कई बार कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. सत्ता से बाहर होना पडा..लेकिन मौजूदा संकट कांग्रेस के अस्तित्व का संकट है..तो क्या खत्म होने की कगार पर है कांग्रेस.

ऐसे में सवाल यह कि:

दिग्विजय सिंह..सलमान खुर्शीद..सुरेश कालमाणी..ए राजा जैसे नेता कांग्रेस को डुबाने में कितने जिम्मेदार है..Writer:Manas SrivastavaAssociate EditorBharat Samachar

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