ये कहना ग़लत नही होगा की अरविंद केजरीवाल मौजूदा भारतीय राजनीति के सबसे चतुर नेताओ में से एक हैं।आप पार्टी अपने स्थापना के समय से ही सेक्युलर पार्टी होने का दावा करती रही है पर ये दावा 2020 के उत्तर–पूर्वी दिल्ली के दंगों में लड़खड़ा सा गया जब दंगों के ऊपर दिल्ली चुनाव को देखते हुए आप के नेता चुप रहे और कुछ भी न कहने से बचते रहे। केजरीवाल की इस रणनीति का फ़ायदा उनको दिल्ली चुनाव में तो हुआ पर इससे आप के भाजपा की B पार्टी होने का दावा और भी मज़बूत हो गया जैसा कुछ सालों से कोंग्रेस आप को कहते आयी है।
दिल्ली के बाद आप पार्टी सबसे ज़्यादा मज़बूत पंजाब में है। किसान आंदोलन के बाद से पंजाब में भाजपा के प्रति लोग में बहुत ज़्यादा ग़ुस्सा है जहाँ चुनाव उसी समय होंगे जब यूपी में भी हो रहे होंगे। भाजपा की B पार्टी होने के तगमे से आप पार्टी स्वयं को दूर करने की कोशिश में पिछले कुछ महीनो से लगी हुई है। इस प्रयास की एक और कड़ी है समाजवादी पार्टी से गठबंधन ।सभी चुनावी सर्वे में आप को यूपी चुनाव में ख़ास कुछ मिलते नही दिख रहा है फिर भी वो सपा के साथ गठबंधन करने को आतुर हैं,एक पार्टी जिसके मुखिया की अरविंद केजरीवाल ने खुले मंच से ना सिर्फ़ आलोचना की थी बल्कि उनको भ्रष्टाचार में लिप्त हुआ भी बताया था।आप का सपा का ज़बरिया जोड़ी बनने की सबसे बड़ी वजह है पंजाब। पंजाब में आप का सीधा सामना कोंग्रेस से है जो आप को भाजपा की B टीम बताते आयी है और वही यूपी चुनाव में भाजपा का सामना सपा से,अगर सपा आप से गठबंधन कर लेती है तो B टीम होने का तगमा आप से ख़ुद ब ख़ुद हट जाएगा।आख़िर भाजपा की B टीम उसके चिर प्रतिवंदी सपा से गठबंधन क्यूँ करेगी और दूसरी बात ये की कोंग्रेस ने 2017 में स्वयं सपा से गठबंधन किया था। इस तरह से आप ख़ुद का नैरटिव और साफ़ कर लेगी जिसका फ़ायदा उसे पंजाब के चुनाव के समय मिलेगा। आप पार्टी इस समय पुराने जनसंघ के तर्ज़ पर काम कर रही है। जनता दल में विलय से पहले जनसंघ एक मज़बूत पार्टी नही मानी जाती थी,JP के समाजवादी छाया में आ कर जनसंघ के नेताओ की ना सिर्फ़ पहुँच बढ़ी बल्कि आम जन मानस में उनकी स्वीकृति भी बढ़ी।1980 के लोक सभा चुनाव में जनता दल को 18.97% वोट मिले जबकी मात्र 4 साल बाद हुए चुनाव में जनता दल का वोट शेयर घट कर 6.89% रह गया जबकि जनता दल से अलग हुए जनसंघ नेताओ की नई नवेली भाजपा को 7.74% वोट शेयर मिले थे।
यही नही, सपा के साथ गठबंधन को आप पार्टी कुछ और चुनावों तक खींच सकती है,केजरीवाल जानते हैं कि अखिलेश के पास यादव और मुस्लिम वोट हैं लेकिन अखिलेश के पास उन्हें सम्भाले रखने के लिए ना कोई प्लान है ना ही कोई उत्तराधिकारी। केजरीवाल की सोच अडवाणी के समय हुए गठबंधन जैसे ही है, असम में भाजपा बहुत साल तक असम गण परिषद के साथ दूसरे नम्बर की पार्टी बन कर चुनाव लड़ती रही है ठीक वैसे ही महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और गोवा में गोमांतक पार्टी के साथ। भाजपा ने इन मज़बूत क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे पहले अपनी पार्टी इन सभी क्षेत्रों में मज़बूत की,फिर उसने अपने सहयोगी दलो को ना सिर्फ़ नुक़सान पहुँचना शुरू कर दिया बल्कि इन पार्टीयों के वोट बैंक के साथ साथ इन पार्टियों के मज़बूत लोकल लीडर पर भी अपनी नज़र डालनी शुरू कर दी। इन लोकल नेताओ में सर्बानंद सोनोवाल जैसे नेता भी भाजपा में आए. आज असम और गोवा में भाजपा की सरकार है और उनके सहयोगी दल कमज़ोर और भाजपा के सहारे हैं। केजरीवाल अगर सपा के साथ गठबंधन आगे खिंचते हैं उनके दिमाग़ में भी कुछ ऐसी ही रणनीति होगी।
अरविंद केजरीवाल नोर्थ इंडिया के पहले नेता थे जिन्होंने मोदी की सबसे ज़्यादा और तीखी आलोचना की और अरविंद केजरीवाल ही वो पहले नेता भी बने जिन्होंने इस बात को माना की नरेंद्र मोदी से सीधे लड़ने में उसका नुक़सान है, ये बात आज तक राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसे पुराने नेता नही समझ पाएँ है। अरविंद केजरीवाल धीरे गति से चलने वाले रणनीतिकार हैं, यही कारण है की JP आंदोलन के बाद केजरीवाल ने भारत का सबसे सफल आंदोलन का संचालन किया और उसे राजनीतिक दल में परिवर्तित भी किया।
भाजपा की मुख्य विपक्षी पार्टी दिखने का जो काम ममता बनर्जी गाजे बाजे के साथ कर रही है वो काम अरविंद केजरीवाल चुप चाप ना सिर्फ़ बड़ी चतुराई से कर रहे हैं बल्कि सफल होते हुए भी दिख रहे हैं। अखिलेश के साथ गठबंधन करके अगर केजरीवाल पंजाब जीतने में कामयाब ना भी हुए तो कम से कम वो भाजपा की B टीम होने के तगमे से ख़ुद को मुक्त करा लेंगे क्योंकि केजरीवाल ये जानते हैं कि नैरटिव ही राजनीति है और पर्सेप्शन उसका सबसे मज़बूत हथियार।
By Himanshu Tripathi
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