हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी के भीतर कई बदलाव हुए हैं, शायद इतने जितने आज तक मानव सभ्यता के क्रमिक विकास में भी नहीं हुए होंगे। इतना ही नहीं सबसे बड़ा नाटकीय घटनाक्रम सपा प्रमुख को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से उतारकर अखिलेश यादव का राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर कब्ज़ा रहा। हालाँकि, थोड़ा गौर फ़रमाया जाए तो पता चलेगा कि, अखिलेश यादव द्वारा यह कब्जा कोई अचानक लिया हुआ फैसला नहीं था। इसके पीछे 2012 की जीत के बाद से ही काम शुरू हो गया था।
पार्टी के लोगों ने नहीं छोड़ा कोई रास्ता:
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल किया था, जिसके बाद से ही समाजवादी पार्टी के सदस्यों द्वारा पूरे प्रदेश में कब्ज़ा करने का सिलसिला शुरू हो गया था। वहीँ सूत्र बताते हैं कि, पार्टी में चल रहे ‘कब्ज़ा कॉम्पिटीशन’ में अखिलेश यादव ने भी भाग लेने की सोची। लेकिन मुसीबत ये थी कि, देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख के बेटे होने के नाते पार्टी के अन्य सदस्यों की तरह अखिलेश यादव किसी प्लाट आदि पर कब्ज़ा नहीं कर सकते थे। वहीँ मुख्यमंत्री इस उहापोह कि स्थिति में थे कि, किस प्रकार और किस पर कब्ज़ा कर समाजवादियों की सदियों पुरानी सभ्यता को जिन्दा रखा जाये। इतना ही नहीं सूत्रों के मुताबिक, एक बंद कमरे में सपा प्रमुख ने भी अखिलेश यादव को किसी भी चीज पर कब्ज़ा न करने की बात के लिए फटकार लगायी थी।
निष्काषित चाचा बने ‘खेवनहार’:
सूत्र आगे बताते हैं कि, अखिलेश यादव की कब्ज़ा करने की परेशानी का हल निकालने वाले की भूमिका एक बार फिर से खेवनहार निष्काषित रामगोपाल यादव ने निभायी। उन्होंने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए अखिलेश से कहा कि, हमारे पास योजना है। जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर ही कब्ज़ा क्यों?:
निष्काषित चाचा ने हमारे सूत्र को बताया कि, इतने बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री अगर किसी 100X100 के प्लाट पर कब्ज़ा करेगा तो ‘चुल्लू भर पानी में डूब मरने” की बात होती। इसलिए मैंने अखिलेश को समझाया कि, अब तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से सपा प्रमुख को उतारकर खुद काबिज हुआ जाये तब ही सपा प्रमुख खुश होंगे। बस, पार्टी की परंपरा और पिता की ख़ुशी के आगे मुख्यमंत्री थोड़ी न-नुकुर के बाद मान गए, और निकल पड़े राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर कब्ज़ा करने।एक बहुत पुरानी कहावत है कि, “खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है”, बस अखिलेश यादव भी इसी का शिकार हुए हैं।