गुटखा: यह कोई संज्ञा नहीं है, उत्तर प्रदेश में यह एक विश्लेषण है, और सरकारी दफ्तरों में तो ‘क्रिया विशेषण’ है, ऐसे में इस पर प्रतिबंध लगाकर ‘योगी’ ने सरकारी दफ्तरों में से ‘अलंकार’ ही गायब कर दिया है, उत्प्रेक्षा या यमक नहीं श्रृंगार अलंकार।
सरकारी कार्यालयों का छिना ‘श्रृंगार अलंकार’:
बुधवार 22 मार्च को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी सरकार ने सभी सरकारी दफ्तरों में पान-गुटखा बैन कर दिया है। सरकार का आदेश आते ही सूबे के अधिकाँश दफ्तरों में सन्नाटा छा गया! जी वही शोले वाला सन्नाटा।सूत्रों के अनुसार, सूबे का एक भी दफ्तर ऐसा नही रहा जहाँ सरकार के इस फैसले का स्वागत किया गया हो। नाम न छापने की शर्त पर मैराथन बाबू दुबे जी (ओह! तेरी) ने अपनी जर्जर कुर्सी पर बैठे हुए दफ्तर में आखिरी खैनी रगड़ते हुए कहा कि, ये सब चोंचले हैं जी, सरकार सिर्फ काम का दिखावा ही कर रही है।दुबे जी(फिर से) ने आगे कहा कि, अब बताइये ये भी भला कोई बात हुई? पिछले 25 सालों की नौकरी में एक यही काम तो था, जो हमने पूरी तल्लीनता से और मन लगाकर किया और सरकार ने वो भी बंद कर दिया।(वाक्य खत्म करते ही दुबे जी ने ओलम्पिक शूटर स्टाइल में सीधी रेखा में अपने चबाये हुए पान की आखिरी पीक दीवार के कोने पर दे मारी)सूत्रों के अनुसार, लगभग सभी दफ्तरों की दीवारों के उन चितकबरे कोनों पर भी मायूसी की छटा साफ़ देखी जा सकती थी, जिन्हें ये एहसास हो चुका था कि, अब उनपर कोई पीक नही गिरेगी। सभी कोने ये सोच-सोचकर हलकान हुए जा रहे थे कि, अब उनका स्वर्णिम काल खत्म हो चुका है।सबका साथ, सबका विकास का दावा करने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल के तीसरे दिन ही सूबे के प्रशासन के बुरे दिन शुरू हो गए हैं, क्या यही हैं अच्छे दिन?मोदीजी को इस्तीफ़ा देना चाहिए। (ये हम नहीं केजरीवाल मांग रहे थे, सोचा लगे हाथ ये भी बता दें सामान्य ज्ञान बढ़ जायेगा।)