क्या है पूरा मामला?
जानकारी के मुताबिक, सपा सरकार हरित क्रांति योजना के तहत बख्शी का तालाब वन रेंज में 3125 पेड़ लगाए थे। इनमें शीशम, सागौन, सरसा, नीम, टोनाइया के पेड़ ग्राम पंचायत दुर्जनपुर, चंद्राकोडर विकासखंड बख्शी तालाब में लगाए गए थे। यहां 7 एकड़ भूमि में के गजट में सिर्फ 200 पेड़ लगे। इनमें से आधे सूख गए और आधे बचे हैं। बताया जा रहा है कि हरित क्रांति योजना के तहत 7 एकड़ भूमि में 3125 पेड़ लगाने का बजट आया था। लेकिन 200 लगाकर बाकी की रकम भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी जेब में रख ली। आरोप है कि खुद को फंसता देख भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले संविदाकर्मियों और चौकीदारों को वन अधिकारियों ने नौकरी से निकाल दिया। इतना ही नहीं आरोप ये भी है साल भर में करीब 10 या 12 संविदाकर्मियों को रखकर हटा दिया जाता है। इन कर्मचारियों का पैसा भी भ्रष्ट अधिकारी अपनी जेब में रख लेते हैं, और इन्हें मनरेगा की मजदूरी का कुछ पैसा दे देते हैं।
केस नंबर एक- बीकेटी के दुर्जनपुर निवासी विकास पुत्र शंकर को सपा सरकार में माली के रूप में नियुक्त किया गया। इनकी नियुक्ति वन रेंजर सुरेश प्रताप सिंह के द्वारा की गई थी। एक साल कार्यसेवा करने के बाद विकास को केवल 2 माह का पैसा मिला और 10 माह का पैसा आज तक नहीं मिला। वेतन मांगने पर इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।
केस नंबर दो- राम लखन पुत्र राम अवतार निवासी विजयपुर ने वन रेंज में 19 महीने कार्यसेवा दी। इनको 174 रुपए प्रतिदिन पर (मनरेगा की मजदूरी) रखा गया था। इन्हें सिर्फ 5 माह का वेतन दिया गया। मांगने पर इनको भी नौकरी से हटा दिया गया।
केस नंबर तीन- रामचंद्र पुत्र छोटे लाल निवासी चंद्राकोडर को चौकीदार के रूप में नियुक्त किया गया। रामचंद्र ने एक साल कार्यसेवा दी। इनको भी 2 माह का वेतन मिला और 10 महीने का वेतन आज तक नहीं मिला।
केस नंबर चार- इसी तरह हासिम मियां नगवामऊ के निवासी हैं। बताया जा रहा है कि मानसिक रूप से बीमार हैं और 1990 से वन विभाग में काम कर रहे हैं। पिछले 4 सालों से बख्शी का तालाब वन रेंज में चंद्रा कोडर नर्सरी में काम कर रहे हैं। आरोप है कि इनके गरीब होने का फायदा उठाकर भ्रष्ट अधिकारी इन्हें मनरेगा का वेतन दे रहे हैं। वन विभाग के द्वारा आ रहा वेतन सीधे भ्रष्टाचारियों की जेब में जा रहा है। आरोप ये भी है कि मानसिक रूप से बीमार कर्मचारी को महीने में 100 या 200 रुपये और सालाना 1500 रुपये दे दिया जाता है। जबकि करीब 27 साल से इन्हें 4500 रुपये प्रतिमाह वेतन पर रखा गया है। पीड़ित ने परमानेंट किये जाने की मांग की है।
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