प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घर गुजरात में घुसकर अगर राहुल गांधी लगातार बीजेपी पर पीएम मोदी औऱ अमित शाह पर हमले कर रहे है तो जवाबी कार्रवाई मे अमित शाह औऱ स्मृति ईरानी के साथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित टीम बीजेपी ने राहुल गांधी की घर मे घुसकर घेराबंदी शुरु कर दी है…हालांकि बीजेपी यह प्रयोग इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कर चुकी है जब उसने स्मृति इरानी को राहुल के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार कर मोदी सहित पूरी टीम को अमेठी मे लगा दिया था..नतीजा यह हुआ कि राहुल गांधी जिस संसदीय क्षेत्र मे बगैर कोई दौरा किए चुनाव जीत जाया करते थे वहां उन्हें पोलिंग के दिन भी दिन भऱ भागना पडा…सड़क किनारे चाय की चुस्की लेनी पडी औऱ बूथ दर बूथ का दौरा करना पड़ा..इसका फायदा बीजेपी को यह मिला कि राहुल गांधी जिन पर पूरे देश मे कांग्रेस के प्रचार की जिम्मेदारी थी उनका ध्यान अपनी सीट अमेठी पर केंद्रित हो गया..

मनोवैज्ञानिक लड़ाई है जारी

दरअसल यह एक तरीका है जिससे विरोधी पर मनोवैज्ञानिक तौर पर बढत बनाई जा सके…बेशक राहुल गुजरात यानि अमित शाह औऱ मोदी के घर में घुसकर दहाड रहे है…सरकार का मजाक उड़ा रहे है लेकिन अमेठी औऱ गुजरात में एक बुनियादी अंतर है..अमेठी पर राहुल की निजी प्रतिष्ठा के साथ नेहरु गांधी परिवार की विरासत औऱ सीधे कांग्रेस पार्टी की साख दांव पर रहती है..लेकिन गुजरात में हार या जीत किसी व्यक्ति की नही बल्कि पार्टी की साख पर असर डालेगी..इसमे शक नहीं कि गुजरात चूंकि पीएम मोदी औऱ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है इसलिये वहां की हार जीत उनकी साख को प्रभावित करेगी लेकिन वह निजी न होकर एक पार्टी या संगठन की होगी..

तो क्या बीजेपी गुजरात मे राहुल गांधी की सक्रियता का बदला ले रही है या फिर वह राहुल के व्यापक होते राजनैतिक धरातल को सीमित करने का प्रयास कर रही है..ऐसा पहले भी होता रहा है कि जब जब राहुल गांधी अमेठी आते है उसके एक हफ्ते के भीतर स्मृति इरानी का भी अमेठी मे आना होता है..स्मृति इऱानी ने वादा किया था कि वह चुनाव जीते या हारे वह अमेठी से रिश्ता खत्म नही करेंगी..बीजेपी चुनाव जीती..स्मृति इरानी हारने के बाद भी केंद्र सरकार मे मंत्री बनी लेकिन उनकी सक्रियता अमेठी से खत्म नही हुई..यह हकीकत राहुल गांधी को पहले से ही परेशान कर रही थी, लेकिन अब स्मृति के पीछे टीम बीजेपी या यू कहे यूपी की टीम योगी औऱ राष्ट्रीय स्तर पर टीम अमित शाह दोनों ही खड़ी हो गई है तो राहुल गाधी के लिये रास्ता क्या बचा है..

सियासी परंपरा पर रणनीति भारी

यह एक बहस का विषय हो सकता है क्योंकि एक जमाने में यह सियासी परंपरा थी कि सत्ताधारी दल अपने विरोधी दलों को बड़े नेताओं के खिलाफ कभी मोर्चा नहीं खोलते थे..कई हस्तिओं के सामने उम्मीदवार इसलिए नहीं उतारे जाते थे जिससे बड़े नेता सदन का हिस्सा बने रहे..इसके पीछे की मंशा यह हुआ करती थी कि सदन में बड़े नेताओं की मौजूदगी से सदन की संजीदगी बनी रहती थी..सत्ता पक्ष पर लगाम लगी रहती थी औऱ बड़े फैसलों में शीर्ष नेताओं की राय शुमारी शामिल हो जाया करती थी..देश में लंबे समय तक कांग्रेस का शासन रहा औऱ कांग्रेस एक जमाने में इस तरह की पंरपराओं का पालन करती रही है..यूपी में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव इस रस्म को निभाते रहे है..राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अजित सिंह जैसे कई नेताओं के खिलाफ या तो मुलायम प्रत्याशी उतारते नही थे या फिर डमी कैडिडेट दे दिया करते थे..

लेकिन बीते कुछ समय से राजनैतिक प्रतिस्पर्धा बहुत व्यक्तिगत होती चली गई..इस प्रतिस्पर्धा ने राजनैतिक मूल्यों को या तो बदल दिया या उनका पतन किया..बहस आकंड़ों, तथ्यो और तर्को पर आधारित न होकर व्यक्तिगत जीवन की सफलताओ, विफलताओं निजी जीवन के किस्से कहानियों पर शुरु हो गई है..इसमे किसी को कोई आपत्ति नही है कि सियासी मैदान में कौन किसके खिलाफ लड़े या न लड़े या उसका समर्थन करे अथवा विरोध..लेकिन राजनीति में जिस तरह से पैसा औऱ पावर दोनों शामिल हुए उसने देश की पारपरिक राजनीति का स्वरुप बदल कर उसे कारपोरेट हाउस की लडाई में तब्दील कर दिया..

तो सवाल यह कि 

क्या टीम अमित शाह राहुल गांधी की उनके ही घर में घेराबदी करने के लिये पूरी बीजेपी की ताकत अमेठी मे झोंक रहे है..

क्या अभी से स्मृति इरानी के लिये 2019 की जमीन तैयार की जा रही है.

या फिर यह गुजरात मे राहुल गांधी की सक्रियता को रोकने का सियासी दांव है.

कहीं ऐसा तो नही कि एक तरफ कांग्रेस राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की तैयारी कर रही है तो दूसरी तरफ बीजेपी उन्हे अमेठी तक सीमित करने की रणनीति बनाने लगी है.

–   2014 के लोकसभा चुनाव मे राहुल गांधी को अमेठी मे रोकने के लिये उनकी ऐसी ही घेराबंदी की गई थी जिसके नतीजे में राहुल गाधी उस तरह से देश के बाकी हिस्सों में दौरे नहीं कर पाये जैसे कि वह पहले करते थे..तो क्या इस बार भी यही फार्मूला लागू किया जा रहा है.

अमेठी के जानकार बता रहे है कि स्मृति इरानी की सक्रियता से राहुल की सीट फसने लगी है.

एक चर्चा यह भी है कि राहुल गांधी अपनी संसदीय सीट बदल कर रायबरेली भी कर सकते है क्योंकि यहा मुकाबला मुश्किल हो रहा है..

राहुल गांधी खुद भी कई महीनों के बाद अमेठी दौरे पर आये थे जबकि पहले वह हर महीने मे एक दो दिन का दौरा जरुर करते थे..

पूरे देश से कांग्रेस को समेटने के बाद क्या अब बीजेपी का अगला टारगेट अमेठी बन गया है.

क्या यहा से भी कांग्रेस को साफ करने की तैयारी चल रही है.

इमरजेंसी के बाद एक वक्त ऐसा आया था जब यहा से संजय गांधी जैसे नेता को चुनाव हारना पड़ा था तो क्या इतिहास फिर से अपने आप को दोहरा रहा है.

क्या कांग्रेस के रणनीतिकार इस तथ्य समझने मे औऱ इस रणनीति का जवाब देने मे नाकाम साबित हो रहे है.

क्या बीजेपी राहुल को निशाने पर लेकर कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है..

जिस तरह से राहुल अमेरिका से लेकर अमेठी तक मोदी सरकार के खिलाफ गरजते नजर आ रहे है बीजेपी उससे परेशान हो रही है.

जीएसटी..नोटबंदी…पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतो में बेतहाशा वृद्धि जैसे मुद्दे लगातार राहुल गांधी की तरफ से मोदी के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किये जा रहे है.

इसका जवाब देने के लिये मोदी सरकार की यह नई रणनीति है.

विपक्ष को जड़ से खत्म करने की कोशिश ?

अथाटेरियन सरकारों की यह खासियत होती है कि वह विपक्ष को सिर्फ इतना ही जिंदा रखती है जिससे जनता में लोकतंत्र के जिंदा रहने का भ्रम बना रहे तो क्या बीजेपी इसी दिशा में आगे बढ चुकी है..

देश की पुरानी सियासी रवायत रही है कि सत्ताधारी दल विपक्ष के बड़े नेताओं के सदन में पहुंचने के रास्ते में कभी रुकावट नहीं बनते थे..बल्कि उनकी कोशिश होती थी कि विपक्ष के बड़े नेता सदन तक जरुर पहुंचे तो क्या अब यह रवायत भी खत्म होने जा रही है..

लोकतंत्र मे विपक्ष को जनता की आवाज माना गया है बगैर विपक्ष के स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना कैसे की जा सकती है..

कुछ लोग यह भी सवाल उठाते है क्या इस दुर्दशा के लिये राहुल गाधी औऱ सोनिया गांधी ही जिम्मेदार नही है..

देश की सबसे बडी पार्टी आज अस्तित्व के संकट से गुजर रही है तो इसके लिये क्या नेहरु गाधी परिवार ही जिम्मेदार नही है..

क्यो कांग्रेस नेहरु गाधी परिवार के पीछे ही चलने को मजबूर हो रही है..क्या पार्टी में दूसरे नेता काबिल नही है..

सबसे अहम सवाल यह भी है कि तमाम बनते बिगड़ते हालातों में अमेठी का रिश्ता गांधी परिवार से तीन पीढ़ियों से भी ज्यादा का रहा है ..इस बार अमेठी क्या करने वाली है..

Writer:

Manas Srivastava

Associate Editor

bharat samachar

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