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वायु प्रदूषण बन रहा त्वचा की एलर्जी के बढ़ते मामलों की वजह : विशेषज्ञ

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:

मुंबई निवासी करिश्मा मल्लन (23) बहुत खुश थी, जब उन्हें बेंगलुरु में नौकरी मिली। वह जुलाई 2019 में बेंगलुरु आगयी। अभी उन्हें यहां एक माह भी नहीं हुआ कि उन्होंने देखा कि उनकी त्वचा पर एलर्जी हो गयी है। करिश्मा ने डाक्टर से संपर्क किया। तब डाक्टर ने उन्हें बताया कि एटोपिकडर्मेटाइटिस है, यह एक तरह की एलर्जी जो धूल और वायु प्रदूषण में रहने के दौरान होती है। हालांकि करिश्मा अपने पूरे दिन में आधे घंटे के लिए ही धुप के संपर्क में आती थी। लेकिन इस आधे घंटे में ही उसे एलर्जी, त्वचा सूख गयी, इस पर चकत्ते पड़ गए ,ठंड, आंखों में जलन, छींकने और सांस लेने की समस्याओंका सामना करना पड़ गया।

इसकी वजह है बेंगलुरु में बढ़ता प्रदूषण। जो एक साथ कई तरह की समस्या को पैदा कर रहा है। यहां ऐसे निवासियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिन्हें त्वचा की दिक्कत आ रही है।। डॉक्टरों का कहना है कि यह चिंता की बात है। क्योंकि इससे आने वाले समय में और ज्यादा त्वचा रोग बढ़ सकते हैं।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में दस करोड से अधिक लोगों को एलर्जी राइनाइटिस (एलर्जी की वजह से आंखों में पानी , छींकने और इसी तरह के अन्य लक्षण) की समस्या है। बेंगलुरु में, 68 प्रतिशत मरीज धूल की वजह से एलर्जिक हो रहे हैं।

बेंगलुरु की त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ के श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि समय के साथ साथ वायु प्रदूषण की वजह से त्वचा की समस्या से परेशान मरीजों की संख्या बढ़ रही है। हालांकि 2010 में, उनके पास आने वाले सभी मरीजों का 20 प्रतिशत ही इस तरह की समस्या से ग्रसित थे।

उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण से त्वचार पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। गर्दन और पलको के उपरचकत्ते पड़ जाते हैं। हवा में परागकणों की मात्रा बढ़ने से भी एलर्जी होती है। इसमें त्वचा का रंग गहरा हो जाता है, चकत्ते की वजह से त्वचा पपड़ीदार हो जाती हैं। आंखों में इस वजह से पानी आना शुरू हो जाता है। सारा वक्त ऐसा लगता है कि आंख में पानी भरा हुआ है। इसकी वजह हवा में सुक्ष्मकण। जो एक्जिा और झुर्रियों को भी बढ़ा सकते हैं।

मामलों की बढ़ती संख्या

भारतीय विज्ञान संस्थान में डाइचेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के प्रोफेसर डॉ एच परमीश के अनुसार बेंगलुरु में दमा के रोगियों में एलर्जिक राइनाइटिस 1999 में 75 प्रतिशत थी, 2011 में यह बढ़ कर 99.6 प्रतिशत हो गयी है। कान के पीछे संक्रमण, नाक के आस पास सूजन, आंखों की सूजन के मामले तेजी से बढ़े हैं।

101 रिपोर्टर्स से बात करते हुए डॉ परमीश ने बताया कि हवा में धूल कण व कार्बन के सूक्ष्म कण, पराग की हवा में मौजूद भी एलर्जी के बड़े कारण है।

एलर्जी से न केवल त्वचा प्रभावित होती है बल्कि आंखों में जलन, खांसी, घरघराहट और खर्राटे भी आते हैं। इसका असर बच्चों पर सबसे ज्यादा पड़ता है।

इंडियन जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी, वेनेरोलॉजी और लेप्रोलॉजी (आईजेडीवीएल) के एक अध्ययन के अनुसार अल्ट्रावायलेट किरणों से रेडिएशन ,हाइड्रोकार्बन, ऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर, ओजोन और सिगरेट के धुएं से होेने वाला प्रदूषण भी सीधे त्वचा को प्रभावित करता हैं ।

ऐसे प्रदूषण में लंबे समय तक रहने से त्वचा खुश्क हो जाती है। इस पर झुरियां होने लगती है। इससे स्किन कैंसर तक हो जाता है। सिगरेट के धुएं के संपर्क में आने से त्वचा कम उम्र में ही उम्रदराज जैसी लगने लगती है। मुँहासे निकल सकते हैं और यहां तक की कैंसर भी हो सकता है।

डॉ परमीश ने कहा कि त्वचा पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए जागरूक होना होगा। इसके लिए बस छोटे छोटे उपाय ही करने हैं। मसलन धूल के कण हटाने के लिए तकिए, गद्दे और कंबल को धूप में फैलाया जा सकता है। यह पारंपरिक विधि है जो आज भी कारगर है।

घर में धूम्रपान नहीं करना चाहिए। घर के अंदर इनडोर पौधों लगाने चाहिए। घर में कोकरोच आदि भी नहीं होने चाहिए। डॉ श्रीनिवास ने कहा यदि यात्रा कर रहे हैं तो कार में हैं तो खिड़की बंद कर एयर कंडीशनर चलाना चाहिए। यदि दुपहियां वाहन पर है तो दुपट्टे से मुहं ढाप कर हेलमेट डालना चाहएि। आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मे का प्रयोग बेहर रहता है। घर से बाहर निकलते वक्त् सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए। जहां खुलेआम धूम्रपान हो रहा हो वहां जाने से बचना चाहिए। ट्रैफिक पुलिस और स्वीपर को हमेशा मास्क पहनाचाहिए। क्योंकि वह सीधे प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं।

(लेखक बेंगलुरु आधारित स्वतंत्र पत्रकार हैं । वह अखिलभारतीय ग्रासरूट रिपोर्टर्स नेटवर्क 101रिपोर्टर्स के सदस्य है। )

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