हमारा देश की तमाम सरकारेे यूंं तो देश केे गरीब प्रतिभाशाली लोगोंं को उत्साहित करने की बाते करती हुई नजर आती हैंं। देश में होने वाले तमाम खेलों और खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से सहायता देने के तमाम वादे करनेे वालींं देश की तमाम सियासतेंं क्या सच में देश के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कद्र करती हैंं।
इस सवाल का जवाब जानना हो तो बुधिया का उदाहरण हमारे सामने है जिसने महज चार साल की उम्र में अपने छोटे छोटे कदमों से वो करिश्मा कर दिखाया था जिसेे देखकर पूरी दुनिया अपने दातो तले उगलियां दबाने को मजबूूर हो गई थी। आज ये बच्चा इतना गरीब है कि चाहकर भी ये अपनी प्रतिभा का विकास नही कर पा पा रहा है।
गौरतलब है कि भारत केे इस सबसे छोटे धावक नेे आज से तकरीबन 9 साल पहले अपने हौसलों के दम पर पुुरी से भुवनेश्वर तक की 65 किलोमीटर की दूरी सात घंटे और दो मिनट में दौड़कर पूरी करते हुए सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया था। तब ऐसी उम्मीद लगाई जा रही थी कि इस गरीब बच्चेे को देश की विभिन्न सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता दी जायेगी।
बुधिया की मां के अनुसार उनका बेटा आज भी अपने कैरियर को लेकर बेहद गम्भीर है लेकिन पैसो के अभाव में ना वो ठीक तरह से खाना खा पा रहा है और ना ही उसे सही ट्रेनिग मिल पा रही है। बुधिया की मां का सपना है कि उनका बेटा देश का सबसे बड़ा धावक बनके पूूरे देश का रोशन करे लेकिन वो मजबूर है। वो आखिर कैसे अपने बेेटे की मदद करे जब वो खुद दो पैसे बमुश्किल कमा पाती हैंं।
बुधिया की आज जो हालत है वैसेे हाल में ना जाने कितने ऐसे खिलाड़ी है जो प्रतिभाशाली होने के बावजूद भी सरकार और समाज के गैरजिम्मेदाराना रवैये की वजह से आगेे नही बड़ पाते है। हमारे देेश में ना जाने कितनी प्रतिभाये रोज ही पैसो के अभाव में दम तोड़़ रही है। अगर हमारी देश की राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था इसी तरह देश मेे मौजूद प्रतिभा की अवहेलना करती रही तो ये देश कभी उस मुकाम पर नही पहुंच पायेगा जहां पर पहुचाने के लिए देश के तमाम महान लोगो ने अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया था।