बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयन्ती पर जिलाधिकारी आवास के सामने राज्यपाल राम नाईक उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस अवसर पर छात्राओं ने राज्यपाल को गुरु रविंद्रनाथ टैगोर की तस्वीर भेंट की. नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया. अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण वह सही मायनों में विश्वकवि थे.
कोलकत्ता में जन्मे थे गुरुदेव
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ था. रविंद्रनाथ जी के पिता का नाम देवेन्द्रनाथ ठाकुर और माता का नाम शारदा देवी था. इनका जन्म 7 मई 1861 को हुआ था. उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित संस्थान सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी. बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1874 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया. फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया. लेकिन 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस लौट आए. सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ.
16 साल की उम्र में हो गयी थी लघुकथा प्रकाशित
रवीन्द्रनाथ ठाकुर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनि रहें. बचपन से ही उनकी कविताए, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा देखने को मिलती थी. उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी. भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूँकने वाले युगदृष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं. देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर समेट लिए थे. पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे. पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया.
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