जी हाँ भारत अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता है. यहाँ जो आता है यहीं का हो कर रह जाता है. ऐसा ही एक उदहारण देखने को मिल रहा है.
प्रसाद में मिलते हैं नूडल्स और चौपसी :
- आज के समय में जहाँ एक ओर लोग अपने धर्म और जाति को लेकर दंगे-फसाद करते हैं.
- वही दूसरी ओर देश में एक जगह ऐसी भी है जहाँ इसके विपरीत आशा की एक किरण नज़र आती है.
- जी हाँ कोलकाता स्थित टंग्रा(चाइनाटाउन) का काली मंदिर इसका जीता-जागता उदहारण है.
- देखने में साधारण सा दिखने वाला यह काली मंदिर पूरे देश के लिए एकता का एक उदहारण है.
- वैसे तो भारत और चीन में दोस्ती होना एक असंभव सा सपना है.
- परंतु यह चायनीज़ काली मंदिर दोनों देशों के लिए अपने आप में एक सीख है.
- मंदिर प्रबंधक इसन चेन के अनुसार इस मंदिर में ना केवल हिंदु बल्कि वहाँ रह रहे चीनी लोग भी आते हैं.
- यही नहीं यहाँ आने वाले चीनी भक्त मंदिर के बाहर अपनी चप्पलें उतार कर यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं.
- इसके अलावा इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ प्रसाद के रूप में नूडल्स दिए जाते हैं.
- यही नहीं यहाँ चौपसी, चावल व सब्जियाँ भी प्रसाद के रूप में दी जाती हैं.
क्या है कहानी :
- जैसा कि सब जानते हैं कोई भी मान्यता यूंहि नहीं बनती है
- ऐसा ही एक किस्सा इस मंदिर और चाइना टाउन से जुड़ा है.
- कहा जाता है कि काफी समय पहले चीनी समुदाय का एक 10 साल का बच्चा काफी बीमार हो गया था.
- माता-पिता की लाख कोशिशों के बाद भी इस बच्चे की हालत में सुधार नहीं हो रहा था.
- जिसके बाद हताश हो कर माता-पिता ने इस बच्चे को एक पेड़ के नीचे लिटा कयी रात प्रार्थना की थी.
- जिसके बाद एक चमत्कार हुआ जिसके तहत वह बच्चा बिलकुल हृष्ट-पुष्ट हो गया.
- तभी से सारा चीनी समुदाय इस मंदिर व माँ काली में विशवास करता आ रहा है.
- बताया जाता है कि चीनी समुदाय में ज़यादातर लोग बुद्ध व जीज़स को मानते हैं.
- परंतु माँ काली का यह मंदिर उन सभी के दिल में विशेष स्थान रखता है.
- उनके अनुसार काली पूजा की रात वे इस मंदिर में मोमबत्तियाँ व ख़ास चीनी अगरबत्तियां जलाते हैं.
- इसके साथ ही यहाँ काली पूजा की रात दो धर्मों के मिलन की छटा देखते ही बनती है.