भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पहली बार एक ऐसी अंतरिक्षीय उड़ान भरकर इतिहास दर्ज करने जा रहा है। ‘मेक -इन-इंडिया’ प्रयास के तहत भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस शटल के स्वदेशी स्वरूप के पहले प्रक्षेपण के लिए तैयार है।

स्पेस शटल की संचालित उड़ानों के लिए कोशिश करने वाले चंद देशों में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान शामिल हैं। अमेरिका, खुद के निर्मित रॉकेटों में अंतरिक्ष यात्र‍ियों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता खो चुका है। रूस लोगों ने एक ही स्पेस शटल बनाया और इसे बुरान नाम दिया गया और रूस एक बार ही अंतरिक्ष में जा सका है। फ्रांस और जापान ने भी कुछ प्रायोगिक उड़ानें भरीं और उपलब्ध जानकारी के आधार पर अभी तक चीन ने कभी स्पेस शटल के प्रक्षेपण का प्रयास भी नहीं किया। 

क्या है इस शटल का स्वरुप 
भारत ने अपनी स्पेस शटल बनाने की शुरुआत लगभग पांच साल पहले की। तब इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के एक दल ने आरएलवी-टीडी को हकीकत में बदलना शुरू किया। एयरोप्लेन के आकार के 6.5 मीटर लंबे और 1.75 टन भारी इस अंतरिक्ष यान को एक विशेष रॉकेट बूस्टर की मदद से वायुमंडल में भेजा जाएगा और इसके सफल रहने के बाद भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल हो जायेगा जो स्पेस शटल की संचालित उड़ाने भर चुके हैं। आरएलवी-टीडी का आकार अंतिम प्रारूप से 6 गुना छोटा है।

श्रीहरिकोटा में चल रहा है काम 
एक एसयूवी वाहन के वजन और आकार वाले एक द्रुतग्रामी यान को श्रीहरिकोटा में अंतिम रूप दिया जा रहा है। कुछ देशों ने एक तीव्रगति और दुबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले स्पेस शटल के विचार को पहले ही ख़ारिज कर दिया था।

भारत के इंजीनियरों का कहना है कि रॉकेट का पुनर्चक्रण किया जाए और इसे दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाया जाए जिससे उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित करने की लागत को कम किया जा सके। 

डेल्टा पंखों से लैस होगा स्पेस शटल
इसरो का मानना है कि पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी सफल के बाद अंतरिक्षीय प्रक्षेपण की लागत को 10 गुना कम किया जा सकता है और ये लागत 2000 डॉलर प्रति किलो पर आ सकती है। आंध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित भारतीय अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित आरएलवी-टीडी का प्रक्षेपण हो सकता है।

यह पहली बार होगा जब इसरो डेल्टा पंखों से लैस स्पेस शटल को प्रक्षेपित करेगा। प्रक्षेपण के बाद यह बंगाल की खाड़ी में लौट आएगा।

 

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