यूपी का एक जिला है महाराजगंज. अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद कराने का गजब जज्बा था महाराजगंज मे,.जिसकी मिसाल है 1930 का महात्मा गांधी का नमक आंदोलन औऱ 1931 का जमींदारी प्रथा के खिलाफ आंदोलन. दोनों ही आंदोलन में महाराजगंज ने अहम भूमिका निभाई. यहाँ के नायक थे प्रोफेसर पिब्बन लाल सक्सेना जिन्होंने ईख संघ की स्थापना की.

दरअसल ईख संघ ने जमींदारों औऱ अंग्रेजों को गठजोड़ को तोड़कर आजादी के आंदोलन में एक नई शुरुआत की थी. वक्त के साथ आजादी के वो दीवाने भी गुजर गये औऱ प्रोफेसर पिब्बन लाल सक्सेना भी..लेकिन इन तमाम क्रांतिकारियों के बलिदान से देश आजाद हो गया.

डीएम महाराजगंज जूते मारने की धमकी देते हैं:

  • आज उसी महाराजगंज से एक खबर आई कि एक कोटेदार की शिकायत करने पर कलेक्टर साहब यानि जिलाधिकारी महोदय नाराज हो गये.
  • शिकायत करने गई महिला ने बताया कि डीएम साहब जूते से मारने की धमकी दे रहे हैं और जो कोटेदार की मनमानी की शिकायत लेकर आये थे उनके एक अगुवा को जेल भिजवा दिया गया.
  • जिन पर महिलाओ से अभद्रता औऱ जूते मारन की धमकी देने का आरोप है वह है जिलाधिकारी वीरेद्र सिंह.
  • दरअसल मामला कुछ ऐसा हुआ कि महाराजगंज का एक कोटेदार ( सरकारी राशन बेचने वाला ) इलाके में मनमानी कर रहा था.
  • इसकी शिकायत लेकर महिलाओं और पुरुषों का एक समूह जिलाधिकारी महोदय के पास गया.
  • थोड़ी देर बाद खबर आई कि शिकायत करने वाले एक व्यक्ति को जेल भेज दिया गया.
  • क्या आरोप है कुछ नही पता.
  • फिर महिलायें बाहर आई औऱ बताया कि जिलाधिकारी उन्हें जूतों से मारने की धमकी दे रहे हैं.
  • खबर देख कर ऐसा लगा कि शायद अभी भी अंग्रेजों की गुलामी से आजाद नहीं हुई जनता..
  • जिलाधिकारी तो आऱोप के घेरे में हैं लेकिन वह शायद महाराजगंज की धरती के इतिहास को भूल गये जिसने अंग्रेजो औऱ जमींदारों के गठजोड़ को तोड़ने में अपनी जान गंवा दी.
  • वहां कोटेदार औऱ अफसर के गठजोड़ की क्या हैसियत है.
  • लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमारे नौकरशाह यह कैसे भूल गये कि जिस देश को आजाद कराने के लिये न जाने कितने ही नौजवानों ने अपनी जान गंवा दी.
  • जिनकी कुर्बानियों की बदौलत आज आजाद भारत मे आईएएस बनकर रौब गालिब करने का मौका मिला है.
  • उस देश औऱ वहां के लोगों के प्रति उनका भी कुछ फर्ज है.

आलीशान जिंदगी जीने के आदी हो गये ब्यूरोक्रेट

आज के ब्यूरोक्रेट जो आलीशान जिंदगी जीने के आदी हो गये है वह शायद नहीं जानते होंगे कि आजाद हिंद फौज की रचना करने वाले आजादी के आंदोलन के महानायक सुभाष चंद्र बोस कितने सपन्न परिवार से थे. पिता उस जमाने के मशहूर वकील थे औऱ सुभाष चंद्र बोस ने उस वक्त यानि 1920 आईसीएस की परीक्षा मे चौथा स्थान हासिल किया था. उस वक्त आईएएस को आईसीएस कहा जाता था .लेकिन सुभाष चंद्र बोस को कलेक्टर बन कर सत्ता की गुलामी मंजूर न थी. उन्हें तो देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना था इसलिये आईसीएस की कुर्सी पर लात मार कर आजाद हिंद फौज का गठन किया.

महापुरुषों से कब सीखेंगे आज के ब्यूरोक्रेट्स :

महात्मा गांधी लंदन से बैरिस्टर बन कर लौटे थे..लाला लाजपत राय बहुत बड़े वकील थे. मंगल पांडेय अंग्रेजी फौज में शामिल थे.. ऐसे न जाने कितने नाम हैं जिन्होंने पद की परवाह किये बगैर इसलिये देश के लिये जान गंवा दी कि आने वाले आजाद भारत में देश के पास अपना सिस्टम अपने अधिकारी औऱ अपनी सरकार हो. जो जुल्म न करे बल्कि देश की जनता से प्यार करे. इंसाफ करे..लेकिन क्या ऐसा हो सका..कुछ साल पहले लखनऊ में उस वक्त के एक जिलाधिकारी अमित कुमार घोष ने आंदोलन कर रहे एक कर्मचारी के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया था. आज महाराजगंज के जिलाधिकारी पर आरोप है कि वह महिलाओं को जूतों से मारने की धमकी दे रहे है. खुद महिलाए अपनी बेईज्जती की दास्तान बयान कर रही है.

अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादती तो समझ मे आती है क्योंकि वह तो हमें गुलाम बनाने ही आये औऱ बरसों बनाकर रखा भी लेकिन आज यह देश औऱ जनता किसकी गुलामी कर रही है. जवाब सरकार को देना है..क्योंकि फैसला जनता को करना है.

Writer:

Manas Srivastava

Associate Editor

Bharat Samachar

UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें