आधुनिकता की दौड़ में भी मकर संक्रांति का पर्व उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व पर रूठे हुए बुजुर्गों को बैंड बाजे के साथ मनाने की परंपरा आज भी कायम है।
गांवों में मनाया जाता है सकरांत-
- मकर संक्रांति पर्व को गांवों में सकरांत के नाम से जाता है।
- पर्व से पूर्व ही भाई अपनी बहनों के यहां रेवड़ी, गज्जक व अन्य सामान लेकर जाते हैैं।
- उन्हें पर्व पर आमंत्रित करते हैं तथा अपने साथ ले आते हैं।
- मकर संक्रांति वाले दिन सुबह से रूठने-मनाने की परंपरा के चलते उत्सव का माहौल बन जाता है।
- इस दिन घर का कोई भी बुजुर्ग या बड़ा व्यक्ति ऐसा व्यवहार करने लगता है जैसे उसे कोई बात बहुत बुरी लग गई हो।
- वह बात भी बताने को तैयार नहीं होते।
- इतना ही नहीं वह रूठकर पड़ोस में किसी भी घर में जाकर बैठे जाते हैं।
- इसके बाद महिलाएं बैंडबाजे के साथ लोकगीत गाती हुईं उन्हें मनाने पहुंचती हैं।
- उन्हें उपहार स्वरूप कपड़े, जूते, गर्म शॉल, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, मूंग दाल, चावल, रुपये आदि देकर मनाया जाता है।
- इसके बाद भेंट को उनके सिर पर रखकर घर लाया जाता है।
चने का साग खाने का है रिवाज-
- मकर संक्रांति पर चने का साग खाने का रिवाज है।
- लोग खेतों में चने का कच्चा साग खाते है।
- इस दिन मूंगफली, गजक तथा बाजरा बांटने की परंपरा भी है।