भारत सरकार आने वाले 4 नवम्बर को ‘खिचड़ी’ को नेशनल डिश घोषित करने जा रही है, जी हां! बात उसी खिचड़ी की हो रही है, जिसे आप अब तक बीमारों का खाना बोलकर खाने से बच जाते थे, केंद्र सरकार 4 नवम्बर को जहाँ खिचड़ी को नेशनल फ़ूड घोषित करेगी, वहीँ कार्यक्रम में 800 किलो खिचड़ी पकाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया जायेगा। इस खबर से जहाँ खिचड़ी के परिवार में ख़ुशी का माहौल छाया हुआ है, वहीँ पराठा परिवार इस समाचार को सुनकर काफी आहत हैं, साथ ही उन्होंने नेशनल फ़ूड के लिए हुई चयन प्रक्रिया पर सवाल(national food clash) भी खड़े किये हैं।
जब किसी को पसंद नहीं तो ‘नेशनल फ़ूड’ घोषित कैसे?(national food clash):
- 4 नवम्बर से भारत का नेशनल फ़ूड खिचड़ी होगी, जिसकी तैयारी केंद्र सरकार ने कर ली है।
- वहीँ इस खबर के बाद पराठा परिवार ने मिनिस्ट्री ऑफ़ फ़ूड प्रोसेसिंग के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया है।
- पराठा परिवार का कहना है कि, नेशनल डिश के चयन की प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी की गयी है।
- उनका कहना है कि, जब खिचड़ी किसी को पसंद ही नहीं तो नेशनल डिश क्यों बनायीं गयी।
- इसके साथ ही पराठा परिवार का कहना है कि,
- हजारों सालों से भारत के किचनों खासकर कि, उत्तर भारत के किचन में पराठों का बोलबाला रहा है।
- इतिहास गवाह है कि, आज भी उत्तर भारतीय बिना पराठा खाए अपने दिन की शुरुआत को मानते ही नहीं हैं।
- ऐसे में खिचड़ी को एकतरफा जीत दे देना साजिश का हिस्सा लगता है।
फेमिनिज्म हुआ हावी(national food clash):
- बातचीत के दौरान ही तवे पर पड़े हुए आलू के पराठे ने कहा कि, साहब! ये सारा खेल फेमिनिज्म वाली सब्जियों का है।
- पराठे ने कहा कि, यह फैसला फेमिनिस्ट सब्जियों को खुश करने के लिए लिया जा रहा है।
- हमारी शक्लों पर बजे 12 देखकर उसने समझाना शुरू किया,
- ‘पराठा’ पुरुष मेल के गुट से है, जबकि खिचड़ी स्त्री मेल के गुट से,
- बस यही वजह है कि, महिला सशक्तिकरण यहाँ भी काम कर गया।
- वहीँ मंत्रालय ने इस बाबत मामले में सफाई दी है कि, चाहे खिचड़ी नेशनल फ़ूड हो या कलाकंद,
- घर में रोज बनने तो पराठे ही हैं।
- मंत्रालय की इस बात से पराठों ने फिलहाल अपना आन्दोलन खत्म कर दिया है,
- जिसके बाद एक बार फिर से उत्तर भारत में स्थिति सामान्य होने लगी है, प्लेटों में पराठे लौटने लगे हैं।
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