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अब वकालत हो रही कि पाकिस्तान की परिभाषा फिर से लिखी जाए

akistan former Ambassador hussain hakkani reimagining pakistan

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9 अप्रैल को दिल्ली में एक अद्भुत किताब का विमोचन हुआ जिसका शीर्षक है ‘रिइमेजनिंग पाकिस्तान’. इसके लेखक पाकिस्तान के पूर्व राजदूत है. जो बात भारत वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कर रहा है, अब उसे पाकिस्तानी बुद्धजीवी भी मानने लगा है. इस सन्दर्भ में यह पुस्तक महत्वपूर्ण हो जाती है. 

हुसैन हक्कानी का रिइमेजनिंग पाकिस्तान: 

वह एक पाकिस्तानी है जो भारत के साथ अपने एतिहासिक रिश्तों का ताना-बाना फिर से बुनना चाहता है. वह अमरीका में अपने देश के राजदूत की हैसियत से अपनी सेवाएं दे चुका है. दुनियाभर में उसके देश की जो खतरनाक छवि बन चुकी है, उससे विचलित है वह और इसे सुधारना चाहता है.

इतिहास, सियासत, आतंकवाद और अर्थव्यवस्था की बिखरी हुई तस्वीर के टुकड़ों से वह फिर एक तस्वीर बनाना चाहता है. इसके लिए वह एक पुस्तक लिखता है ‘रिइमेजनिंग पाकिस्तान’. जो विशेष रूप से पाकिस्तानी अवाम को संबोधित करती है, उन्हें जागरूक करना चाहती है लेकिन वह इसका प्रकाशन और विमोचन पाकिस्तान में नहीं कर सकता.

इसके लिए उसे भारत के प्रकाशक से मदद लेनी पड़ती है और भारत के बुद्धिजीवियों के बीच वह इसका विमोचन कर पाता है. क्योंकि पाकिस्तान की सरकार ने उसके पाकिस्तान आने पर पाबंदियां लगा रखी हैं. इस शख्स का नाम है हुसैन हक्कानी.

9 अप्रैल को नेहरु मेमोरियल लाइब्रेरी के सभागार में उनकी पुस्तक का विमोचन हुआ. जिसके बाद मंच पर जानी-मानी पत्रकार सुहासिनी हैदर ने उनसे बातचीत की. इस बातचीत में किताब के कई ज़रूरी पहलुओं पर चर्चा हुई.

चर्चा के आरम्भ में ही पूर्व-पाकिस्तानी राजनयिक रह चुके हुसैन हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तानियों की नई पीढ़ी को उस नफरत भरी बयानबाजी से दूर रहना चाहिए जो भारत को एक शत्रु के रूप में प्रस्तुत करती है.

अपनी पुस्तक ‘रिइमेजिनिंग पाकिस्तान: ट्रांसफॉर्मिंग ए डिसफंक्शनल न्यूक्लियर स्टेट’ के विमोचन पर उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास का अधिकतर हिस्सा टकराव की विचारधारा के अनुरूप लिखा गया था, जिसके निशाने पर भारत है.

हक्कानी ने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान के इतिहास पर दोबारा गौर करने की जरूरत है. ‘पाकिस्तान को इस सच्चाई को स्वीकार करने की जरूरत है कि भारत और चीन का इतिहास सदियों पुराना है और उसके भू-भाग के इतिहास में भारत की साझेदारी है. उसका कुछ हिस्सा भारतीय है तो कुछ हिस्सा ईरानी. उसके कुछ हिस्से अतीत में आज़ाद थे’. यहाँ वह बलोचिस्तान और पख्तून के इलाकों पर इशारा कर रहे थे.

हुसैन हक़्कानी ने कहा, ‘पाकिस्तान के इतिहास पर दोबारा गौर करने की आवश्यकता है. पाकिस्तानी सेना ने विभाजन के बाद की पीढ़ियों को जो इतिहास पढने के लिए दिया, उसमें पाकिस्तान का संबंध दक्षिण एशिया से बनाने की कोशिशें की गयीं, जो गलत हैं’.

बातचीत में उनसे यह भी पूछा गया कि उन पर आरोप लगते रहे हैं कि वह एक ऐसे विद्वान् हैं, जिन्होंने अपने ही देश के साथ विश्वासघात किया है. इस पर उनका कहना था कि ‘मैं वही कहता या लिखता आया हूँ जो एक पाकिस्तानी नागरिक होने के नाते मेरा फ़र्ज़ है, लोग क्या कहते हैं इससे मुझे कोई परेशानी नहीं होती. जब हज़ारों लोंगों को देशद्रोही कहा जाए तो इसका मतलब होता है कि आरोप लगाने वालों में ही कुछ कमी है’.

हक्कानी की पुस्तक ‘रिइमेजनिंग पाकिस्तान’ 70 साल से बोले जा रहे उस झूठ को उजागर करने की कोशिश करती है जिसने उसकी आवाम को मूर्ख बनाया हुआ है. जिसकी बुनियाद हिन्दुस्तान के ख़िलाफ़ नफरत के बीज बोने से होती है. यह अपनी तरह की पहली किताब है जिसमें पाकिस्तान की अवधारणा को फिर से बनाने की पुरजोर वकालत की गयी है. शायद इसके पीछे पाकिस्तान के बुद्धजीवियों की वह निश्चित सोच है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो पाकिस्तान को ‘ख़तरनाक-देश’ की उसकी पहचान से अलग कर पाना बेहद मुश्किल काम होगा.

पुस्तक अपने एक अंश में पाकिस्तानियों को सलाह देते हुए लिखती है – ‘पाकिस्तान ने जो मूर्खतापूर्ण अभियान चला रखा है, उसे समाप्त करने के लिए, उसे अपनी धर्म-आधारित राजनीति को फिर से जांचने-परखने की जरूरत है, अपने बड़े पड़ोसी (भारत) के साथ स्थायी संघर्ष की धारणा पर उसे पुनर्विचार करना चाहिए, उसे अपने राजनीतिक संस्थानों का इस तरह पुनर्निर्माण करने की जरूरत है ताकि वह अपनी जातीय विरासत को हासिल कर सके और अपनी अर्थव्यवस्था को बिना किसी बाहरी मदद के, मज़बूत करने की दिशा में बढ़ सके. सिर्फ और सिर्फ तभी उसपर भरोसा किया जा सकता है कि वह अपनी असफलताओं से छुटकारा पाने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पाने के लिए वाकई प्रयत्नशील है.

हक्कानी का मानना था कि पढ़े-लिखे आम पाकिस्तानियों में एक मायूसी है कि गलत रास्ते पर चलते हुए, पिछले 70 वर्षों में वह इतनी दूर निकल आये हैं कि अब किसी सुधार की गुंजाईश नहीं रह गई है. लेकिन उनका कहना था कि इस पुस्तक के माध्यम से वह पाकिस्तानियों की इसी मायूसी को दूर करना चाहते हैं. इसके लिए वह बेल्जियम और जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि फिर से पाकिस्तान की अवधारणा किए जाने से डरने की जरूरत बिलकुल भी नहीं है. ‘हम सब जानते हैं कि एक समय था जब जर्मनी संघर्षों में घिरा हुआ था लेकिन आज वही जर्मनी हमारे सामने एक शांतिप्रिय देश के रूप में विराजमान है’.

हुसैन हक्कानी उन पाकिस्तानियों में से हैं जिन्हें पाकिस्तान की फ़ौजी और कट्टरपंथी विचारधारा का विरोध करने की वजह से अमरीका में निर्वासित जीवन बिताना पड़ रहा है. लेकिन वह इससे विचलित होने के बजाय उन पाकिस्तानियों की आवाज़ बनने में सम्मान महसूस करते हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश की बदनामी, आतंकवादी कार्यवाहियों और अपनी जर्जर अर्थ-व्यवस्था से बेचैन, अपनी टूटती उम्मीदों के साथ जीने के लिए मजबूर हैं. विमोचन के मौके पर उन्होंने जोर देकर कई बार यह कहने की कोशिश की कि पकिस्तान को ‘जरूरत के मुताबिक राजनीतिक, वैचारिक एजेंडे के अनुरूप लिखे गए इतिहास से जितनी जल्दी हो सके अपना पीछा छुड़ा लेना चाहिए’.

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