कहते है कि अगर किसी मंजिल को पाने के लिए अपनी पूरी लगन और मेहनत से कोशिश की जाये तो पूरी कायनात आपको आपकी मंजिल तक पंहुुचाने में लग जाती है। हम आपको आज एक ऐसे लड़के की कहानी बताने जा रहे हैंं जिसने जेल की दीवारो के अन्दर रहकर वो कर दिखाया जिसे करना बड़ी बड़ी़ इमारतो में रहने वाले रईस परिवारोंं के बच्चो के लिए भी बेहद मुश्किल होता है।
कोटा में रहने वाले पीयूष का सपना बचपन से ही आईआईटी में दाखिला लेना था लेकिन उनके सामने बहुत सारी सामाजिक और आर्थिक अड़चने थी। पीयूष के पिता को किसी अपराध की वजह से उम्रकैद की सजा मिली थी। हालांंकि अच्छे आचरण की वजह से उन्हे ओपन जेल में शिफ्ट कर दिया था। ओपन जेल मेंं होने की वजह से पियूष के पिता जेल से बाहर जाकर नौकरी कर सकते थे। वो दिन भर मजदूरी करके कुछ पैसे कमा लेते थे लेकिन उनके पास इतने पैसे नही थे जिससे वो अपने बेटे का दाखिला किसी बड़े कोंंचिग संंस्थ्ाान में करवा पाते।
पीयूष अपने पिता के साथ ही ओपन जेल में रहते थे। पीयूष जेल में रहकर ही अपनी किताबों में खोये रहते थे। उनके पिता महीने में जो भी पैसे कमाते वो अपने बेटें को उसकी किताबोंं और पढ़ाई से सम्बन्धित अन्य कामों के लिए दे देते। पीयूष के अनुसार जेल प्रशासन ने भी उसकी काफी मदद की। रात में जब जेल में लाइट आउट होने का समय होता तो भी उसके लिए लाइट जला दी जाती थी।
अपनी मेहनत और लगन के दम पर पीयूष ने आईअाईटी में 453 रैंक हासिल की है जिसकी वजह से उसका इस संंस्थान के किसी बड़े काॅॅलेज में दाखिला होना लगभग है। अपने बेटे की इस कामयाबी पर उसके पिता की खुशी का कोई ठिकाना नही है।