किसी भी देश के नागरिक उसकी ताकत होते हैं लेकिन अगर वही नागरिक देश को बर्बाद करने पर आमादा हो जाये तो उसे कौन बचा सकता है, जाने अन्जाने ही सही लेकिन देश की बढ़ती आबादी(population blast) देश की बर्बादी का कारण बन गई है, जब प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी यह कहते हैं कि, भारत दुनिया के युवा देशों मे शुमार होता है तो कहीं यह ताकत का इजहार करता है तो उसका नकारात्मक पहलू यह है कि, आबादी का यही विस्फोट देश के संसाधनों का बुरी तरह औऱ नाजायज तरीके से दोहन कर रहा है। क्षेत्रफल औऱ संसाधनो पर आबादी का दबाव ऐसा बढ रहा है कि, बेरोजगारी से लेकर मंहगाई तक का दंश देश झेल रहा है। अस्पताल से लेकर सड़कों तक, राशन की कतारों से लेकर रेलवे स्टेशनों तक हर जगह भीड़ ही भीड़ है। लोग एक दूसरे को कुचलते हुये आगे बढ़ रहे हैं। आबादी का दबाव ऐसा है कि, यहाँ पुलों पर भारी भीड़ से दब कर भी लोग मर जाते हैं। क्या यह सभ्य औऱ तरक्की पसंद समाज की निशानी हो सकती है? बहरहाल इस बहस को आगे बढ़ाएं इससे पहले कुछ तथ्यों को जानना औऱ समझना भी बेहद जरुरी है।
सच का सामना न करने से तस्वीर नहीं बदलेगी(population blast):
यह अनुमान ही है लेकिन अनुमान की कल्पना भी भयानक है। अनुमान यह है कि, 2025 तक भारत की जनसंख्या बढकर 1.5 अरब हो जाएगी। साल 2030 तक यह आबादी जहाँ 1.53 अरब हो जाएगी वहीं, 2060 तक यह बढकर 1.7 अरब हो जाएगी। यानि 2030 तक भारत चीन से भी आगे निकल जाएगा। भारत में इस बढ़ी हुई आबादी का 2030 में क्या परिणाम होगा, इसका अनुमान अगर अभी लगाया जाये तो हालात डरावने होंगे।
जनसंख्या वृद्धि के कारण पूरे देश की दो तिहाई शहरी आबादी को 2030 में शुद्ध पेय जल नसीब नहीं होगा। वर्तमान में पानी की प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति उपलब्धता जहाँ 1525 घन मी. है, वहीं 2025 में यह उपलब्धता मात्र 1060 घन मी. होगी। वर्तमान में प्रति दस हजार व्यक्तियों पर 3 चिकित्सक तथा 10 बिस्तर है, 2030 मे इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो जायेगा।
जनसंख्या वृद्धि का ही परिणाम है कि देश में शहरी आबादी के साथ ही साथ स्लम में आबादी भी लगातार बढती जा रही है। देश की कुल आबादी का 1.3 प्रतिशत भाग झुग्गी-झोपडियों में रहता है।मुंबई में 1.63 लाख, दिल्ली में 1.18 लाख तथा कोलकाता में 1.4 लाख लोग स्लम में रहते हैं।
विश्व के कृषि भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत भारत में है जबकि यहाँ की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 16.7 प्रतिशत है।
भारत जनसंख्या के मामले’ में चीन के बाद दूसरा स्थान रखता है । लेकिन वह दिन दूर नहीं जब हम चीन को भी पीछे छोड देंगे, इस बात का पक्का सबूत यह है कि चीन की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि जहाँ महज 1 प्रतिशत है वहीं हम भारतवासी जनसंख्या की वृद्धि दर 2 प्रतिशत प्रतिवर्ष किए हुए हैं। यह पूरे विश्व मे सर्वाधिक है।
विश्व में प्रति मिनट जहाँ कुल 150 शिशु जन्म लेते हैं वहीं भारत में अकेले यह ऑकडा प्रति मिनट करीब 60 है।
उत्तर भारत ज्यादा है जिम्मेदार(population blast):
दक्षिण राज्यों में जहाँ जनसंख्या कम हो रही है, वहीं उत्तरी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर ज्यादा है। केरल में 17.2 प्रतिशत और तमिलनाडु में 25.2 प्रतिशत ही बालिकाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल तक की उम्र में हुई है।
समय समय पर आई जानकारियों और चेतावनियों को किया नजरअंदाज(population blast):
विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 फीसद है, जबकि अफ्रीका में यह 27 फीसदी के आसपास है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि, भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी अधिक है। तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी से निपटने में भी कठिनाई आ रही है।
रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि, देश में गरीबों की संख्या 36 करोड़ से भी ज्यादा है यानी देश में हर तीसरा आदमी गरीब है। यह दर्शाता है कि, आर्थिक नियोजन के 63 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था किस तरह निर्धनता के दुष्चक्र में फंसी हुई है। अगर जनसंख्या में इसी तरह वृद्धि होती रही तो मकानों की समस्या और जटिल होगी।
अब सवाल यह कि(population blast):
- क्या बढती आबादी एक सामाजिक समस्या है या धार्मिक मजबूरी?
- क्यों नही देश के लोगो को इस बात के लिये शिक्षित किया गया कि बढ़ती आबादी देश के लिये अभिशाप बन गई है।
- क्यों देश मे आबादी पर भी सियासत होने लगी है?
- मुस्लिम कट्टरपंथी 10 बच्चे पैदा करने की हिदायत दे रहे हैं तो हिंदू कट्टरपंथी 12 बच्चे पैदा करने की सलाह दे रहे हैं।
- क्या बढ़ती आबादी ही देश की तरक्की में बाधक है?
- घटते संसाधनों और बढ़ती गरीबी के लिये क्या जनसंख्या विस्फोट ही जिम्मेदार नही है?
- क्या यह शर्मनाक नही कि, जनसंख्या वृद्धि के मामले मे हम गरीब मुल्कों से भी आगे निकल रहे हैं?
- चीन ने अपनी आबादी पर नियंत्रण कर आर्थिक महाशक्ति के तौर पर अपनी पहचान बनाई औऱ हमने आबादी बढ़ाकर कर गरीबी बढ़ाई।
- क्या देश मे आबादी नियंत्रण के लिये सख्त कानून की जरुरत नही है?
- क्यों आबादी को धार्मिक मसलों से जोड़ दिया जाता है?
- क्या सियासी दल जनसंख्या नियत्रण मे भी वोट बैंक की पालिटिक्स करते हैं?
- बढ़ती आबादी को रोकने के लिये क्या कदम उठाये जाने चाहिये?
- क्या देश मे एक सख्त कानून की जरुरत है जिसको मानने के लिये सभी मजहबों के लोग बाध्य हों?