52 वर्षों के बाद रियो ओलंपिक खेलों के जिम्नास्टिक में पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन कर इतिहास रच चुकीं दीपा कर्माकर ने रियो ओलंपिक के फाइनल में प्रवेश कर एक और रिकॉर्ड अपने नाम लिख दिया। दीपा ने जिम्नास्टिक की सभी पांच योग्य सबडिवीजन स्पर्धा के ख़त्म होने के बाद वॉल्ट में आठवें स्थान पर रहीं, जो फाइनल में क्वालिफाई करने के लिए आखिरी स्थान था।
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दीपा का सफ़र :
- दीपा ने रविवार को हुए अपने मुकाबले में तीसरी सबडिवीजन क्वालिफाइंग स्पर्धा के वॉल्ट में850 अंक प्राप्त किया।
- तीसरे सबडिवीजन की समाप्ति पर दीपा छठे स्थान पर थीं!
- अमेरिका की सिमोन बाइल्स ने वॉल्ट में 050 अंक प्राप्त कर शीर्ष स्थान के साथ फाइनल में प्रवेश किया,
- जबकि दीपा सबसे निचले आठवें पायदान के साथ फाइनल में पहुंची हैं।
- इससे एक बात तो स्पष्ट है कि दीपा को फाइनल में पदक हासिल करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा।
- हालांकि कलात्मक जिम्नास्टिक स्पर्धा के क्वालिफिकेशन सबडिवीजन-3 में दीपा का पूरा प्रदर्शन तो औसत रहा
- लेकिन वॉल्ट में उन्होंने अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए फाइनल में जगह बनाने में सफलता पायी है।
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दीपा की कड़ी मेहनत का असर :
- दीपा जब 6 साल की थी, तभी से उसके पिता ने सोच लिया था कि वो इसे जिम्नास्ट बनाएँगे।
- लेकिन दीपा के पैर के तलवे सपाट थे और एथलीट के लिए पैर जमाना, भागना या कूदना आसान नहीं होता है।
- मगर दीपा की जिद थी कि कुछ भी हो जाए, वो जिम्नास्ट नहीं छोड़ेगी।
- दीपा के पिता ने उसे अगरतल्ला के विवेकानंद जिम में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया।
- लेकिन इस जिम में इक्विपमेंट तक नहीं थे फिर भी मैट लगाकर दीपा वॉल्ट की तैयारी करती थी।
- जिम में बारिश के दिनों में पानी भर जाता था जिसके कारण चूहे और कॉकरोच भी आ जाते थे।
- बावजूद इन सभी मुश्किलों के वो अपने हुनर को संवारती गई!
- इसी मेहनत के कारण वह फ़ाइनल में जगह बनाने में सफल रही।
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