समाजवादी पार्टी मौजूदा समय में पूरी तरह से ध्वस्त नजर आ रही है। एक ओर जहाँ आगामी विधानसभा चुनाव के तहत समाजवादी पार्टी की तैयारियां न के बराबर हैं। वहीँ मुख्यमंत्री अखिलेश और सपा प्रमुख के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं। जिसके चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में भी निराशा का प्रसार हो चुका है।
सपा प्रमुख का छलका दर्द:
- वहीँ सोमवार को नेताजी सपा कार्यालय पहुंचे थे। जहाँ एक बंद कमरे में सपा प्रमुख ने पार्टी कार्यकर्ताओं से बात की।
- इस दौरान सपा प्रमुख ने अपना दर्द कार्यकर्ताओं से साझा किया।
- नेताजी इतने व्यथित थे कि, उन्होंने ये तक कह दिया कि, यदि अखिलेश नहीं मानें तो उनके खिलाफ चुनाव लडूंगा।
- सपा प्रमुख ने यह भी कहा कि, मैंने अखिलेश को इतनी बार बुलाया पर वो सिर्फ एक मिनट रूककर मेरी बात सुने बिना ही हर बार चले गए।
चुनाव की रेस में पिछड़ी सपा:
- अगर सपा प्रमुख की बातों को सही मान लिया जाये तो इसका मतलब यह हुआ कि, सुलह की हर कोशिश अखिलेश यादव तक आकर ही खत्म हुई है।
- ऐसे में मुख्यमंत्री अखिलेश की क्या जिम्मेदारी है, क्या वो सत्ता के नशे में इतना चूर हो चुके हैं कि,
- “अपने पिता तक की बात सुनना उन्हें गंवारा नहीं है?”
- मुख्यमंत्री अखिलेश को अभी यह लगता है कि, वे अपने विकास कार्यों के बल पर दोबारा से सरकार बना सकते हैं।
- जिसका सीधा मतलब यह है कि, मुख्यमंत्री अखिलेश को अपने विकास कार्यों की जमीनी हकीकत मालूम नहीं है।
- उसके अलावा सूबे की जनता के सामने एक सन्देश यह भी गया होगा कि,
- “जब CM अपने पिता की नहीं सुनते तो जनता की क्या सुनेंगे”।
- फिर चाहे कितना भी मुख्यमंत्री कहें की अपराधियों के खिलाफ मैंने ऐसा किया,
- तो जनाब अपराधियों की याद आपको चुनाव के समय ही आई? उससे पहले तो उन्हीं अपराधियों को आपने मंत्रालय बांटे हुए थे।
- साथ ही साथ मुख्यमंत्री उस वक़्त क्या करेंगे जब नेताजी उन्हीं के खिलाफ प्रचार करना शुरू कर देंगे।
- इस बात से तो सभी को इत्तेफाक होना चाहिए कि, नेताजी मतलब समाजवादी पार्टी।
- मुख्यमंत्री अखिलेश से तो इस स्तर पर अभी तक पहुंचे भी नहीं है।
- विधानसभा चुनाव अब सिर पर हैं, ऐसे में अखिलेश यादव की जिद पहले से पिछड़ चुकी सपा को गर्त में पहुंचा सकती है।