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दूसरे-चरण के मतदान का आँखों देखा हाल: त्रिशंकु विधानसभा के लिए इतनी मेहनत…

सुबह सात बजे दिल्ली की सड़कों को छोडती हुई एक इनोवा गाडी पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की ओर बढ़ी जा रही है. मेरठ के भीड़-भाड़ भरे इलाकों को जल्दी से जल्दी पार कर जाने की जंग जीतनी है उसे.इनोवा में तीन पत्रकार बैठे हैं. रुख है बिजनौर का जहाँ आज मतदाता को फैसला सुनाना है महीनों और सालों से मेहनत कर रहे उम्मीदवारों के हक में. उन तीन लोगों में एक मैं भी हूँ. मतदाता और उम्मीदवार का रिश्ता भी अजीब होता है. किसी ने कहा “ये सम्बन्ध ऐसा होता है जैसे कोई छोकरी पटा रहा हो. सारा ध्यान इसपर कि किसी तरह ये शादी के लिए मान जाए. उसकी हर मांग अच्छी लगती है. और बस ‘हाँ’ कर दो इसके लिए कुछ भी मानने के लिए तैयार रहता है मंगेतर, यानी उम्मीदवार.”

“फिर विवाह हो जाता है” मैंने टुकड़ा जोड़ा. “हां फिर विवाह हो जाता है… (थोड़ी देर की ख़ामोशी) और फिर उम्मीदवार यानी छोकरी को एहसास होता है कि कितने खर्राटे लेता है रात में, पूरा कमरा बदबू से भर जाता है, जिस दिन ये पी ले, और पादने में तो कोई शर्म और लिहाज़ है ही नहीं इसे…. हा हा हा…”

ऐसे ही राजनितिक संबंधों पर अराजनैतिक बातें करते हुए हम ‘बिजनौर क्लब’ में दाख़िल होते हैं. कुछ लोग हमारा पहले से इंतज़ार कर रहे हैं. पता चलता है कि बिजनौर चुनाव क्षेत्र के दो गांवों पेदा और नयागांव में एक हत्‍या के मामले को लेकर तनाव का माहौल है. पिछले साल सितम्बर में भी यहाँ तीन हत्याएं हो चुकी हैं.

लेकिन लोगों से बातचीत में ये तनाव कहीं नहीं दिखा. यहाँ कम से कम पांच सीटों पर भाजपा और बसपा में सीधी टक्कर है. भाजपा को लग रहा है कि बाज़ी उसकी होगी क्योंकि मायावती (जिनके लिए ये चुनाव अस्तित्व की लडाई हैं) ने 6 और अखिलेश ने चार मुसलमानों को यहाँ से उतारा है. ज़ाहिर है ये यहाँ के मुस्लिम वोट काटेंगे. पिछली बार यानी 2012 में बसपा चार सीटें यहाँ से जीती थी और सपा के पास दो सीटें थीं.

थोडा आगे अमरोहा में चेतन चौहान अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन अगर बसपा का जाट उम्मीदवार थोडा कमज़ोर पड़ा तो सायकिल आगे निकल जायेगी. अमरोहा जिले में मुसलामान ही किसीकी जीत को तय करेंगे लेकिन शिया-सुन्नी का सामंजस्य एक टेढ़ी खीर है.

अमरोहा और संभल के बीच एक दुकान पर जाटव, मुस्लिम और जाट को एक साथ बातचीत करते देखना एक रोमांच पैदा करता है. मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद कहा जाता था कि इन इलाकों में जाट-मुस्लिम रिश्तों में इतनी बड़ी खायी पैदा हो गयी है जिसे दशकों में नहीं पाटा जा सकता. ऐसी सोच रखने वालों को यहाँ आकर देखना चाहिए कि किस हिन्दुस्तान को हम कहते हैं कि ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा’.

संभल जिले में सायकिल से आगे निकल पाना किसी के लिए भी मुश्किल है. यहाँ ओवैसी की पतंग उड़ने की कोशिश कर रही है. दरअसल उत्तरप्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ने जा रही आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को शाफिकुर्रह्मान बर्क का साथ मिल गया जिन्होंने सायकिल से उतर कर अब पतंग उड़ाने का फैसला करते हुए अपने पौत्र जियाउर्रहमान बर्क को मैदान में उतारा है. मतदान के दिन दौड़ती हुई सायकिल देखकर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है की सपा ने जियाउर्रहमान के नाम पर क्यों नहीं मुहर लगायी थी. यहाँ की असमोली सीट पर पिंकी यादव का शोर हर तरफ दिखा.

पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की लगभग 18 विधान-सभा सीटों पर मतदान करते लोगों के बीच से जो समझ निकलती है वो कछ ख़ास बातों की तरफ इशारा कर रही है:

यहाँ भाजपा, बसपा, सपा और रालोद यानी चार प्रमुख पार्टियां मैदान में हैं जिनमे भाजपा  अपनी 2012 की स्थिति में सुधार करती हुई दिखाई पड़ रही है.

सपा/कांग्रेस गठबंधन के लिये अपने पिछले स्कोर 41 सीटों को बचा पाना मुश्किल है. हालाँकि कोई बड़ा नुक़सान भी न होगा. परंपरागत जनाधार कायम है.

बसपा को मुस्लिम उम्मीदवारों की बहुसंख्या रास आ सकती है लेकिन अति-पिछड़ों और अन्य-दलितों पर उसका ध्यान न देना कोई अजूबा नहीं कर पायेगा.

कई सीटों पर मुस्लिम मतों में सपा बसपा को लेकर जो असमंजस है उसका सीधा लाभ भाजपा उठाएगी.

दूसरे मदान चरण से पूर्व कानपुर की एक रैली में मायावती का ये बयान कि “चाहे सरकार बने या न बने लेकिन वो भाजपा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगी” वक़्त रहते मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की बड़ी कोशिश है.

राष्ट्रीय लोकदल के प्रति जाटों (हिन्दू-मुस्लिम दोनों) में उत्साह है. एक मतदान केंद्र पर एक जाट-बच्चा जिस तरह हम पत्रकारों की टोली के सामने “नहीं भरोसा पूँछ पर, ताव देंगे मूंछ पर” कहते हुए सामने आया, वो इशारा इसी उत्साह का था.आगे पांच चरणों की बिसात पर नज़र रहेगी.

सौजन्य से: नाज़िम नकवी

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