भूकंप आना, ज्वालामुखी का फटना, भू-स्खलन, बाढ़ सुनामी ये सभी प्रकृति के वो रूप हैं जिसमें हजारों लोग न केवल अपनी जान गंवा देते हैं बल्कि कई-कई साल लग जाते हैं प्रभावित क्षेत्र के बचेे-खुचे लोगों को सामान्य दिनचर्या में वापस आने में। प्रकृति का ये विकराल रूप देखकर फिर से इंसान खुद को असहाय बेबस और लाचार स्थिति में देखता रह जाता है उस शक्ति के समक्ष जिसकी एक बहुमूल्य रचना स्वंय इंसान भी है।समय-चक्र को जरा सा पीछे ले चलें तो ये देख पाएंगे कि किस प्रकार केदारनाथ-त्रासदी के रूप में प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाया और हजारों लोग पलक-झपकते ही काल के गाल में समां गए। एक अन्य रूप सामने आया प्रकृति का जब सुनामी ने भारत सहित अन्य एशियाई देशों में मौत का तांडव किया था। लाखों लोगों का आशियाना उजड़ गया, लाखों मरे, हजारों लोगों को अपना ठिकाना बदलना पड़ा। इससे पहले शायद ही मौत का ये मंजर देखा हो दुनिया ने।गुजरात के भूकंप में हुई तबाही ने पुरे भारत को झकझोर दिया और वहां भी कई साल लग गए हालात बेहतर होने में। वहीं बाढ़ प्रभावित इलाके का होने के नाते इस विभीषिका में लोगों को अपना बसा-बसाया घर छोड़कर भागते हुए भी देखा है।कुछ दिनों पहले नेपाल में आया भूकंप जिसका असर बिहार,बंगाल,असम,सिक्किम उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा अन्य जगहों पर देखने को मिला लेकिन बिहार में कई लोगों की जान गयी और उत्तर प्रदेश में भी कुछ लोगों के घर उजड़े लेकिन सबसे ज्यादा तबाही नेपाल में हुई जहाँ अबतक लाशों को मलबे से निकाला जा रहा है और उनकी हर संभव मदद के लिए भारत ने अपनी सेना भी भेजी थी और अन्य देशभी भूकंप पीड़ित लोगों की मदद के लिए आगे आये।ये एक चिंता का विषय है कि आखिर कुछ सालों के अंदर एक-एक करके आने वाली प्राकृतिक आपदा इंसानों को क्या समझाने की कोशिश कर रही है। ये किसी बड़े खतरे की तरफ इशारा तो नहीं है। जेहन में सवाल कई दौड़ते हैं ऐसी त्रासदी के बाद। धरती के अंदर जरा सी हलचल क्या हुई हजारों लोगों का आशियाना उजड़ गया, इमारतें ढह गयीं और उसमें दबकर लोग मरते रहे। प्रकृति का संतुलन कायम रहेगा तभी इंसान धरती पर सुरक्षित रह पायेगा लेकिन इंसान इस बात को समझने के लिए तैयार तबतक नहीं होता जबतक प्रकृति उसे झटका न दे।किस संतुलन की बात करें हम लोग जब पेड़ों की कटाई रुकने का नाम नहीं लेती है और कोई नए वृक्ष लगाने की कोशिश नहीं करता है। ऐसे बहुत से कारण हैं लेकिन फ़िलहाल हमें यही समझना होगा कि प्रकृति के इस चक्र में अगर इंसान खुद को सबसे महत्वपूर्ण तत्व समझता है तो उसे ये नहीं भूलना चाहिए ऑक्सीजन ही नहीं कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड की जरुरत भी होती है साँस लेने की प्रक्रिया में।Pankaj Singh
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