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यूपी की राजनीति में नित नए समीकरण बनते और बिगड़ते हैं. एक तरफ सात चरणों में संपन्न हुए मतदान के बाद सभी दलों की निगाहें परिणाम पर टिकी हैं वहीँ एग्जिट पोल के आंकड़ों ने बीजेपी के लिए अच्छे संकेत दिए हैं. हालाँकि ये अंतिम परिणाम नहीं है. हाँ, सियासी गलियारों में चर्चा बटोरने के लिए इस प्रकार के पोल काफी होते हैं लेकिन अंतिम परिणाम तो 11 मार्च को ही आएंगे.
लेकिन इन एग्जिट पोल्स के कारण कल से ही बयानों की बाढ़ आ गई है. तमाम सर्वे में बीजेपी को बहुमत के करीब बताया जा रहा है जबकि कई सर्वे में सपा-कांग्रेस को दूसरा स्थान तो वहीँ बसपा को तीसरे स्थान के साथ सबसे कम सीटें देना, थोड़ा हैरान करने वाला रहा है.
वहीँ अखिलेश यादव ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में ऐसे संकेत दे दिए कि अगर सपा को बहुमत नहीं मिला तो वो मायावती से गठबंधन की राह तलाश सकते हैं. इन दोनों दलों ने 1993 के अलावा कभी एक साथ सत्ता में भागीदारी नहीं निभाई, इन दोनों दलों की विचारधाराएँ और कार्यशैली भी काफी हद तक अलग रही है.
ये 5 कारण जो अखिलेश-माया गठबंधन की रह में साबित हो सकते हैं रोड़ा!
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आखिरकार अखिलेश यादव को ये संकेत क्यों देने पड़े और इस गठबंधन की राह में कौन से रोड़े हैं, इसपर एक नजर डालने की जरुरत है.
- इस गठबंधन की सबसे बड़ी मुश्किल हो सकती है, सीएम का चेहरा! अखिलेश ने जिस प्रकार कांग्रेस के सामने सीएम की शर्त रखी थी, लेकिन क्या मायावती ऐसी किसी शर्त को मानेंगी, उनके तेवर देखकर ये अभी तक तो नहीं लगता है, ऐसे में अखिलेश यादव को सीएम पद का त्याग करना पड़ सकता है.
- गठबंधन में क्या सपा के साथ कांग्रेस भी रहेगी, इसको लेकर कोई संकेत नहीं मिल रहा है और ऐसे में सभी की निगाहें चुनाव परिणाम के बाद मिलने वाले नंबर पर निर्भर करेगी. अखिलेश यादव ने तो संकेत दे दिया है कि बीजेपी को रोकने के लिए और राष्ट्रपति शासन से बचने के लिए ऐसा किया जा सकता है.
- गठबंधन की शर्त पर कैबिनेट से लेकर तमाम मंत्रालयों पर नजरें होंगी. सतीश मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे दिग्गजों की मौजूदगी में सपा के दिग्गजों के साथ मायावती का बर्ताव काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि गठबंधन की अंतिम सूरत कैसी होगी और किस प्रकार का आपसी समझौता या यूँ कहें तो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम दोनों दलों को एक ही कुर्सी के करीब लाने का काम करेगा.
- मायावती ने लगातार चुनावों में अपराधियों और माफियाओं को जेल भेजने की बात की थी, ऐसे में सपा के उन दागियों का क्या होगा जिनपर कई मुकदमें दर्ज हैं. गैंगरेप, अवैध खनन, जमीनों पर कब्ज़ा करने का आरोप झेल रहे विधायकों को लेकर किस प्रकार का समझौता होगा, ये देखना दिलचस्प हो सकता है.
- पूरे प्रकरण में शिवपाल यादव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, मायावती ने हर रैली में कहा है कि शिवपाल यादव के साथ अन्याय हुआ है, अखिलेश ने उनका सम्मान नहीं किया है. तो क्या गठबंधन की सूरत में शिवपाल यादव मायावती के चहेते बनकर उभरेंगे.
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है क्योंकि अभी अखिलेश यादव के संकेत के बाद मायावती के तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, हालाँकि बसपा के करीबी सूत्रों की मानें तो किसी प्रकार के गठबंधन के पक्ष में नहीं है और वो चुनावों के परिणाम के बाद ही कुछ कह पाने की स्थिति में होंगे.
एक तरफ जहाँ अखिलेश यादव बसपा को पत्थर वाली सरकार कहते रहे और ‘बुआजी’ पर तंज कसते रहे, वहीँ मायावती ने सपा को अराजकता , जंगलराज और गुंडाराज का प्रतीक बताया था. ऐसे में ये गठबंधन कर बीजेपी को यूपी में आने से रोकने का फार्मूला कितना कारगर होगा, ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा.
5 साल तक सत्ता में रहे अखिलेश यादव कतई नहीं चाहेंगे कि यूपी की सत्ता से बेदखल होना पड़े, ऐसे में मायावती के साथ गठबंधन इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है लेकिन अभी मायावती के रुख का इंतजार करना होगा.
पिछले कुछ चुनावों ने एग्जिट पोल के अनुमानों को धता बताया और परिणाम एग्जिट पोल के उलट रहे हैं. ऐसे में ये कहना कि सरकार किसकी बनेगी, उचित नहीं जान पड़ता है और इसके लिए 11 मार्च तक सभी को इंतजार करना पड़ेगा.
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