‘वीरों की धरती जवानों का देश, बागी बलिया उत्तर प्रदेश!’ अपने बागी तेवर के लिए ही इसे जाना जाता है. यहाँ के लोगों का मोदी जैसा 56 इंच का सीना है कि नहीं लेकिन इससे कम है, इसे मानने वाला शायद ही आपको दिखाई देगा. चित्तू पांडेय और मंगल पांडेय की धरती है ये।
राजनीति यहाँ के लोगों की रग-रग में बसी है और हो भी क्यों ना पूर्वांचल की बयार से जो मानसून आता है, वो लखनऊ और दिल्ली को भिगो देता है।
राजनीति में भी एक से बढ़कर एक धुरंधर बलिया ने देश को दिए. इंदिरा गांधी की तूती बोलती थी देश में तब ‘युवा तुर्क’ चंद्रशेखर ने बलियाटिक ब्लड का दम दिखाया था और उनकी खिलाफत कर दी थी. जब जिले की सीमा तय हो रही थी तब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अपने गांव इम्ब्राहिमपट्टी को बलिया में ही जुड़े रहने दिया था, बस यही नाता होता है एक बलियावासी का अपने बलिया से। हाँ, मैं भी बलियाटिक हूँ।
लेकिन चुनाव में इन सब बातों का क्या मतलब, यहाँ तो गधे-गैंडे और कुत्ते बिक रहे हैं। यहाँ तक कि दो चार दिन तो फांसी पर लटकाया जा चुका ‘कसाबवा’ भी चुनाव में बहुतै महंगा बिक रहा था। और यहाँ हम लोग पिछड़ेपन और विकास जैसे पीछे छूट चुके मुद्दे लेकर बैठ गए।
हमें 4 घंटे की मामूली(रेलवे वाली) देरी से जब ट्रेन ने बलिया स्टेशन उतारा तो जल्दी से स्टेशन के बाहर आये। एक अधेड़ उम्र के रिक्शा वाले काका ने पूछा’ ‘शीशमहल जइबा का बाबू?’ जाना तो था लेकिन बहुत दिनों बाद लिट्टी का स्वाद लेने का मन किया था। तो हमनें उनको मना कर दिया। सामने ही स्टेशन रोड के ढाबे पर लिट्टी और चोखा लेकर खाने बैठ गए। स्टेशन रोड पर बहुत मिलता है ‘लिट्टी चोखा’, एकदम वर्ल्ड फेमस है बुझ लीजिये। आपका कभी बलिया जाना हुआ और बिना खाये अगर आप लौटे, तो गंगा मइया कसम, बहुत पछतायेंगे आप।
वैसे जब बलिया का चुनावी बुखार मापने का हम सोचे तो डर हुआ कहीं थर्मामीटर फटाक से फूट ना जाये. बहुत गर्म-मिजाजी होती है, बलिया के चुनाव में। नेताजी के मुंह पर फट से वोटर बोल देता है कि ‘जा, ना देब तहरा के भोट! हमरा मन करी तहवे बटन टिपब!’
बतकही में बलिया का कोई सानी नहीं है और अख़बार पड़ने में एक नंबर हैं लोग। इस भृगु क्षेत्र में कई चट्टी-चौराहे पर लोग चाय-पान के साथ अख़बार को चटनी की तरह चाटने में दिन बिता देते हैं। राजनीति से लेकर टेस्ट मैच के आखिरी बॉल तक की अपडेट होनी चाहिए इन्हें, भले चार कप चाय और पीना पड़े और दो-चार समोसा और दबाना पड़े। बाप के लबदा और माई-मेहरारू के ‘बेलन’ के डर जब दिमाग में ढुक जाला, ता दीया जरावे के बेरा पर घरे जाला लोग।
खैर, हम आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के गांव दूबे के छाप ( दूबे के छपरा) और शहीद मंगल पांडेय के गांव नगवां को पार करते रामगढ़ में रुके और बासरोपन जी की रस में डूबी टिकरी खाते हुए कुछ गंगा के कटान प्रभावित परिचित लोगों से भी मिलना हुआ। बहुत दुख हुआ देखकर कि सरकार कितनी उदासीन है. इसके नजदीक केवल दूबेछपरा ही बचा है और सरकार की लापरवाही मेहरबान रही तो अगले बाढ़ में यहाँ के लोग अपना अस्तित्व खो देंगे।
परशुराम काका कहते हैं, ‘गंगाजी, अबकी लागता हमनी के भी खेद दीहें इहां से! इ सरकार गांव बचावे के फेर में नइखे।’
एक विकट समस्या यहाँ के लोगों के लिए और है ‘आर्सेनिक’ युक्त पानी. शरीर पर अजीब तरह का दाग हो जाता है इसके सेवन से लेकिन सरकार की तरफ से कुछ इंतजाम नहीं हो रहा है।
ग्राउंड रिपोर्ट: विधानसभा दर विधानसभा
बैरिया विधानसभा :
यहाँ से भाजपा ने सुरेंद्र सिंह को टिकट दिया है। पहला चुनाव है इनका लेकिन 2012 चुनाव में तत्काल भाजपा उम्मीदवार भरत सिंह का विरोध करने के कारण खूब निमन-बाउर चर्चा हुआ था। भरत सिंह उस वक्त 558 वोट से हार गए थे, फ़िलहाल बलिया से सांसद हैं। खैर, पुराने संघी होने के कारण पार्टी ने सुरेंद्र सिंह टिकट दे दिया और क्षेत्र में प्रचार में जुटे हैं ये। ‘मास्टर साहब’ कहते हैं सब इन्हें क्योंकि मास्टरी भी कर चुके हैं वैसे ‘मरखाह’ मास्टर रहे हैं ये और खिसियाते भी हैं दम भर।
सपा ने विधायक जेपी अंचल को फिर से मैदान में भेजा है। कुछ लोग कह रहे थे कि, ‘अंगुरी पर गिन के बता देब, कई बार इहां के क्षेत्र में आइल बानी’ वहीँ बसपा ने जवाहर वर्मा को टिकट दिया जो लड़ाई में बने हुए हैं। लेकिन रामाधीर सिंह की पतोहू आसनी सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण समीकरण जटिल हो गया है, मने बलिया की भाषा में कहें तो समीकरण ‘जहुआ’ गया है। यहाँ बहुकोणीय लड़ाई हो रही है और इस खेल में कौन जीतेगा, अब तो 11 मार्च को ही इसका फैसला होगा।
बांसडीह विधानसभा:
बैरिया से रेवती-सहतवार होते हुए अब आते हैं बांसडीह विधानसभा जहाँ से सपा के विधायक और मंत्री रहे रामगोविंद चौधरी फिर से साइकिल दौड़ा रहे हैं। केतकी सिंह को भाजपा ने अबकी टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय ही चुनाव लड़ गयीं और यहाँ भाजपा-भासपा के उम्मीदवार अरविन्द राजभर और बसपा के शिवशंकर को बराबरी की टक्कर देती दिखाई दे रही हैं। एक केतकी सिंह समर्थक ने कहा, ‘ 2014 के बाद ई लोग, ढेर उड़त बा लोग, जमीन देखावे बा अबकी चुनाव में इहनी लोग के’
वैसे विधायक जी लोग के क्षेत्र में काम बोलता हुआ कम ही दिखाई दे रहा है। हॉस्पिटल हो या सरकारी स्कूल, बोलती है तो यहाँ की बदहाली। कमोवेश पूरे जिले में यही देखने को मिलेगा। आखिर 1942 में सबसे पहले बलिया इसी दिन को देखने के लिए तो आजाद हुआ था न। सुरेश पनवाड़ी कहते हैं ,’पंडितजी!, ई नेतवा, पैसा ता बोरा में कस के रखले बाड़े सा, लेकिन काम खातिर ता इहनी के पाले फुटल कौड़ी भी ना निकलेला।’
बलिया नगर विधानसभा:
कचहरी होते हुए बलिया नगर में प्रवेश किया तो अथाह जाम और सड़क किनारे कूड़ा देखकर दिमाग चकरा गया। बलियाटिक परंपरा के अनुसार, भृगु बाबा की जयकारे और चुनावी नारों की गूंज हर तरफ थी. वैसे पिछड़ेपन में भी बलिया आस-पास के जिलों को कड़ी टक्कर देता है। यहाँ के बड़े लोगों का नाम ही बोला है आजतक, काम कब बोलेगा, राम ही जानें। कभी-कभार तो नारद राय और उनके बेटे का कारनामा भी बोला है।
सपा से तलाक लेकर बसपा के साथ राजनीतिक गृहस्थी फिर से बसाने में जुटे हैं नारद राय। वहीँ लक्ष्मण गुप्ता साइकिल सँभालने का काम कर रहे हैं नगर की सीट पर। लेकिन भाजपा के युवा चेहरे आनंद शुक्ला भी कहते हैं कि अबकी कमल खिलाना है। पहला चुनाव है इनका भी और ये भी भाजपा की टैग लाइन ‘परिवर्तन’ के सहारे अपना लखनऊ तक का सफर आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिसलाइन में बैठे कई लोग इसी पर चर्चा कर रहे थे, ‘कमल के फूल और हाथी में जोरा-जोरी बा हो इहां, और लोग ता हवा में बा।’
फेफना विधानसभा:
एक बात है, बहुत दिग्गज अबकी चुनाव मैदान में हैं। नारद राय की राह पर चलते हुए सपा के पुराने दिग्गज अम्बिका चौधरी ने भी हाथी को साथी माना लेकिन फेफना से भाजपा विधायक उपेंद्र तिवारी सामने हैं जो नामांकन के दिन ही दबंगई के आरोपों में घिर गए थे। इस सीट पर बसपा के संग्राम सिंह यादव को भूलने की भूल कोई नहीं करना चाहेगा। कुल मिलाकर करकस मुकाबला हो रहा है।
रसड़ा विधानसभा:
बसपा के उमाशंकर सिंह के सामने भाजपा के पुराने नेता रामइक़बाल सिंह हैं, उमाशंकर सिंह वही हैं जिनकी सदस्यता ख़त्म करने का फरमान राज्यपाल साहब ने सुनाया था, पद का दुरुपयोग कर सरकारी ठेका लेने के मामले में। यहीं से सनातन पांडेय को सपा-कांग्रेस का साथ मिला हैं। अब किसको क्या पसंद है ये तो जनता 4 मार्च के चुनाव में ही बताएगी। चालू-पुर्जा है जनता आजकल की, वोट के बारे में ऐसे ही बोलती है जैसा नेताजी लोग काम करने के बारे में बोलते हैं। ‘कपरो फूटी और बोलबो ना करी’
कभी गुलाबों की नगरी कहे जाने वाले सिकंदरपुर में सपा के विधायक नंबर 5 मने जियाउद्दीन रिजवी अबकी बार भी जीतने के लिए दम लगा रहे हैं जबकि भाजपा-बसपा से उन्हें टक्कर मिल रही है। लेकिन स्थानीय लोग मुख्य मुकाबला संजय यादव(भाजपा) और रिजवी में ही मान रहे हैं. सिकंदरपुर का नाम ही गुलाब वाली नगरी रह गया, खेती तो जाती रही। वहीँ बेल्थरा रोड में सपा के गोरख पासवान और बसपा के घूरा राम में कड़ा मुकाबला है जबकि भाजपा के धनंजय कनौजिया त्रिकोणीय गोटी सेट करने में लगे हैं।
वैसे किराना स्टोर वाले दिनेश काका का नेताओं से 36 का आकंड़ा है. जब उनसे चुनाव के बारे में पूछे, ‘अउर चचा, का कहता अबकी के चुनाव? केकर पलड़ा भारी बुझाता?’ पहले तो पान थूके वो साइड में और गमछा से मुंह पोंछकर बोले, ‘अरे बेटवा, ई मये नेतवा एके लेखा बाड़न सा, उजरे-उजरे पहिन के अइहे सा चुनाव में भोट मांगे और जीतला के बाद लाल-पियर गाड़ी में से बैठ हाथ हिला के चल जईहे सा’।
अबकी चुनाव में इतना ही है बाकी तो लगन के दिन में कभी आइये ‘बड़की पूड़ी, दही और जलेबी के साथ खा लिए तो पक्का कहेंगे, ‘मिजाज ता हरियर हो गइल रे भाई, बस एक जोड़ी पान खा लिहित आदमी ता जतरा बन जाइत।’
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