उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहें हैं। सूबे की सियासत में उठापटक तेज होती जा रही है। कई बड़े दिग्गज पाला बदलकर विरोधी खेमें में जा चुकें हैं और बगावत का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सपा बसपा के कई सिटिंग विधायक अपना पाला बदल चुके हैं। बसपा को अपने खेमे में सबसे ज्यादा बगावत का सामना करना पड़ा है। वही, इस उठापटक का सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी को हुआ है तो वह भाजपा ही है। भाजपा ने दूसरे दलों के बागियों के लिए अपने दरवाजे खोल रखें हैं। साथ ही भाजपा नेतृत्व दागियों और दूसरे दलों के दगे कारतूसों को गले लगाने से भी परहेज नहीं कर रही है।
- सियासी जानकारों का मानना है कि इस रणनीति से भाजपा को लाभ कम और नुकसान अधिक होगा।
- भाजपा के सामने बड़ी चुनौती होगी कि विरोधी दलों के बागियों के मान-सम्मान को वह कैसै बरकरार रख पाती है।
- इसके साथ ही उसे ध्यान देना होगा कि उसके अपने कार्यकर्ता उपेक्षा का शिकार ना हों।
- वहीं कांग्रेस ने सूबे में ब्राह्मण कार्ड खेलकर भाजपा के सवर्ण वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश की है।
- कांग्रेस के इस कदम को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
- कांग्रेस ने शीला दीक्षित को सीएम उम्मीदवार बनाकर भाजपा के सवर्ण वोटों पर हमला किया है।
जल्द हो सकती है एक और बगावतः
- इस सियासी उठापटक के बीच एक बड़ी खबर सामने निकल कर आ रही है।
- सूत्रों के अनुसार, एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का एक कद्दावर ब्राह्मण चेहरा पार्टी से बगावत कर सकता है।
- माना जा रहा है कि ये ब्राह्मण नेता अब बसपा का दामन थाम सकते हैं।
- देश के प्रमुख राजनीतिक दल से ताल्लुख रखने वाले ये नेता राजधानी लखनऊ में खासा प्रभाव रखते हैं।
- पिछले काफी समय से बगावत का दंश झेल रही बसपा के लिए यह खबर सूकून देने वाली है।
- इसके द्वारा बसपा यह संदेश देने में सफल रहेगा कि जो लोग पार्टी में हासिये पर थें वहीं लोग बसपा छोड़कर दूसरे दलों में गये हैं।
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