उत्तर प्रदेश में पल-पल बदलते सियासी समीकरणों के बीच बसपा प्रमुख मायावती सत्ता में वापसी की नयी राह तलाश रहीं है। बसपा पार्टी में चल रही कलह से लगातार कमजोर हो रही है। एक के बाद एक उसके बड़े नेता मायावती से किनारा करते जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने मायावती को सत्ता वापसी का एक सुनहरा अवसर दिया था लेकिन खुद के नेताओं की कलह से कमजोर होती पार्टी ने मायावती को नये विकल्प तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है।
- पिछले 14 सालों से यूपी की सियासत में धूल फांक रही भाजपा ने इस बार यूपी फतह को लेकर चक्रव्यूह रच दिया है।
- सेना की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ने भाजपा नेताओं के हौसलें को मनोवैज्ञानिक तौर पर बढ़ा दिया है।
- भाजपा ने दूसरे दलों के बड़े और जनाधार वाले नेताओं के लिए दरवाजे खोल दिये हैं।
- इसके साथ ही भाजपा ने संगठन की जमीनी सक्रियता भी बढ़ा दी है।
- वहीं, यूपी के दलित वर्ग को साधने के लिए डॉ. अंबेडकर से जुड़े कार्यक्रमों पर फोकस किया जा रहा है।
- भाजपा की इन गतिविधियों से सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी का हुआ है तो वह है बसपा।
नयी रणनीति पर विचारः
- कांशीराम की 10वीं पुण्यतिथि पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने नये समीकरण तलाशने का संकेत दे दिया है।
- लेकिन असल समस्या ये है कि माया की टीम के बड़े धुरंधर अब भाजपा के पाले में बैठे हैं।
- अब बसपा के पास वो ताकत नहीं रही जो मायावती की रणनीति को जमीन पर उतार सके।
- उनकी पूरी रणनीति सपा की पारिवारिक कलह और दलित व मुस्लिमों की एकजुटता पर टिकी हुई है।
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