उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ महीनों का ही समय बचा हुआ है।
2017 के चुनाव के तहत सभी दलों ने बनायी अपनी रणनीति:
- आगामी 2017 के चुनाव में कुछ ही महीनों का समय बचा हुआ है।
- जिसके तहत सभी राजनैतिक दलों ने लगभग अपनी रणनीति तय कर ली है।
- कई पार्टियों को इस चुनाव में दलबदल का भी सामना करना पड़ा है।
- सूबे के चुनाव की राजनीति को लेकर हमेशा ही घमासान मचता है।
- सभी दल अपने अपने वोट बैंकों को साधने और दूसरी पार्टियों के वोट बैंक को काटने में व्यस्त हैं।
सवर्णों पर सबकी निगाहें:
- उत्तर प्रदेश के चुनावों में हर बार की तरह ही इस बार भी सबकी निगाहें सवर्णों पर टिकी हुई हैं।
- सूबे के दलित वोटों के साथ ही सवर्ण भी प्रदेश की राजनीति में अहम् जगह रखते हैं।
- प्रत्येक पार्टी ने यूपी चुनाव के मद्देनजर सवर्णों और दलितों को साधना शुरू कर दिया है।
- इसी क्रम में कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार शीला दीक्षित को घोषित किया जो कि एक सवर्ण हैं।
- वहीँ भाजपा भी दलित वोटों को साधने की पूरी कोशिश में जुटी हुई है।
- बसपा इस बार सबसे ज्यादा दलबदल का शिकार हुई है।
- वहीँ सूबे की मौजूदा सरकार वाली समाजवादी पार्टी हमेशा की तरह यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर नहीं है।
- मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यह उम्मीद है कि, उनकी पार्टी विकास और किये गए कामों के आधार पर चुनाव में बहुमत हासिल कर सकती है।
बसपा को लगे बड़े झटके मिला धनंजय सिंह का साथ:
- वहीँ 2017 चुनाव से पहले सबसे ज्यादा नुकसान बसपा पार्टी को हुआ है।
- पार्टी के दूसरे नंबर के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा सुप्रीमो पर आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
- स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया था।
- स्वामी के बाद पार्टी में दोबारा शामिल हुए आर.के चौधरी ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
- चौधरी ने भी पार्टी छोड़ने की वजह वही बताई थी, जिसके लिए स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ी थी।
- हालाँकि, चुनाव से पहले बसपा को बाहुबली धनंजय सिंह का साथ मिल गया है।
- सूत्रों के मुताबिक, पार्टी में धनंजय सिंह वापसी तय हो चुकी है, वहीँ ऐसा भी कहा जा रहा है कि, बाहुबली ने अपनी शर्तों पर पार्टी में वापसी की है।
- धनंजय सिंह के पार्टी में आने से बसपा की ओर मुड़ने वाले वोट बैंक में इजाफा हो सकता है।
‘गाली प्रकरण’ के बाद धनंजय सिंह बड़ी राहत:
- हाल ही में प्रदेश के अन्दर हुए गाली कांड में बसपा ने सवर्णों के एक बहुत बड़े वर्ग को खो दिया था।
- दयाशंकर सिंह की टिप्पणी पर बसपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर उनकी पत्नी और बेटी के खिलाफ अतिआपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था।
- जिसके बाद प्रदेश के क्षत्रिय वोटबैंक में बसपा का प्रतिशत कम हो गया था।
- जिसके बाद बसपा में धनंजय सिंह की वापसी को बसपा सुप्रीमो के लिए एक बड़ी राहत कहा जा सकता है।
- गौरतलब है कि, धनंजय सिंह छात्र राजनीति के समय से ही युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं।
सपा ने भी बदले सुर:
- बसपा में बाहुबली धनंजय सिंह की वापसी के बाद सपा ने भी अपने सुर बदलने शुरू कर दिए हैं।
- सपा नेता अमर सिंह ने कानपुर में एक कार्यक्रम में कहा था कि, यादव परिवार पर ठाकुर बहुओं का कब्ज़ा है।
- उनके इस बयान को सूबे की राजनीति में क्षत्रिय वोट बैंक को साधने की कोशिश माना जा रहा है।
- सपा नेता ने कार्यक्रम में खुद के क्षत्रिय होने की बात भी कही थी।
2017 बताएगा किसकी रणनीति हुई कामयाब:
- 2017 के चुनाव से पहले सभी राजनैतिक दल जातीय और क्षेत्रीय समीकरण बैठाने में व्यस्त हैं।
- एक तरफ समाजवादी पार्टी जो अपने किये गए कामों, यादव और मुस्लिम वोट बैंक के जरिये वापस आना चाहते हैं।
- वहीँ भाजपा अन्य पार्टियों में सेंध लगाने का काम कर रही है, स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं।
- दूसरी ओर बसपा किसी भी प्रकार से यूपी जीतना चाहती है, जिसके लिए मायावती ने बाहुबली धनंजय सिंह की पार्टी में वापसी करा दी है।
- वहीँ पिछले 27 सालों से सूबे की सत्ता से बाहर कांग्रेस पार्टी ने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दामन थामा हुआ है।
- सभी राजनैतिक दल अपने गठजोड़ में व्यस्त हैं, लेकिन चुनाव का ये ऊंट किस करवट बैठेगा वो तो 2017 बताएगा।
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