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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 11 फ़रवरी से प्रारम्भ हो रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 जिलों की कुल 73 सीटों पर कल यानी 11 फ़रवरी को मतदान होगा। प्रत्याशियों का प्रचार अभियान थम चुका है और अब मतदान की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए इन क्षेत्रों में तैयारियां चल रही हैं. गाजियाबाद जिले की 5 सीटों पर सिलसिलेवार तरीके से रुझान के लिए सादिक खान uttarpradesh.org की टीम के साथ पहुंचे और मतदाताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की.
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गाजियाबाद
गाजियाबाद की सियासत की तस्वीर अब बदली हुई नज़र आ रही है. यहाँ कई दिग्गजों की साख दांव पर है. ज्यादातर प्रत्याशी ऐसे हैं जिन्हें चुनाव लड़ने का खासा पुराना तज़ुर्बा है. बसपा ने यहा सुरेश बंसल को मैदान में उतारा है जिन्हें अपनी सीट बचाना सबसे बड़ी चुनौती है.वहीँ भाजपा ने अतुल गर्ग को दूसरी बार मैदान में उतारा है जिनकी यहाँ मजबूत दावेदारी मानी जा रही है. कांग्रेस-सपा गठबंधन ने पूर्व विधायक रहे केके शर्मा को मैदान में उतारा है एकबार फिर विधानसभा तक का सफर तय करने की आस लगाये बैठे हैं. कांग्रेस छोड़कर रालोद में आये सुल्तान सिंह खारी को रालोद ने अपना प्रत्याशी बनाया है.
रुझानों में ये मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखाई देखा रहा है. इस सीट पर ब्राह्मण, दलित व वैश्य समाज के वोटरों की संख्या ज्यादा है. इस सीट पर जीत में करीब पांच लाख की आबादी वाला लाइनपार इलाके का वोट अहम भूमिका निभाएगा तो वहीँ जनता का मानना है कि यहा विकास नहीं हुआ है. जनता चाहती है कि लाइनपार इलाके में लड़कियो के लिये कॉलेज बने व सरकारी अस्पताल बने. अब देखना होगा कि बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे इस विधानसभा क्षेत्र के लोग उम्मीदों का सेहरा किसके सिर बांधते हैं.
साहिबाबाद
साहिबाबाद विधानसभा की सीट पर बीजेपी ने पूर्व विधायक सुनील शर्मा को मैदान में उतारा है. जबकि बसपा ने जलालुद्दीन को मैदान में उतारा है, तो सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अमरपाल पर भरोसा जताया है.इस विधानसभा में सबसे ज्यादा 8 लाख 61 हज़ार वोटर हैं. यहाँ कड़ा मुकाबला बसपा और गठबंधन में है तो वहीँ मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में बीजेपी उम्मीदवार भी जुटे हुए हैं.
इस विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश जनता यहाँ का विकास ना हो पाने से खफा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि विकास के नाम पर वोट लिया जाता है लेकिन कुछ काम नहीं किया जाता है. सडकों की बुरी हालत और नालियों में गन्दगी का अम्बार है. इस सीट पर सबसे बड़ा मुद्दा क्षेत्र का विकास है.
लोनी
हम बात कर रहे लोनी विधानसभा सीट कि जहाँ बीजेपी ने नन्दकिशोर गुर्जर को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस-सपा गठबंधन ने राशिद मलिक को मैदान में उतारा है. जबकि बसपा के दावेदार के रूप में वर्तमान विधायक जाकिर अली है. इस सीट पर रालोद ने चार बार विधायक रहे मदन भैया को मैदान में उतारा है. इस सीट पर मदन भैया के आने से समीकरण बदले हुए नज़र आ रहे हैं.
वहीँ स्थानीय लोगों की मानें तो इस इलाके में अपराध बहुत ज्यादा है. कानून व्यवस्था लचर होना चिंता का विषय रहा है. अपराध का खत्म होना ही यहाँ के लोगों के लिए अभी तक सबसे अहम मुद्दा रहा है. जबकि विधानसभा क्षेत्र की अधिकांश सड़कों को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सड़कों की मरम्मत को लेकर सरकारें कैसा रवैया अपनाती रही होंगी. कांटे की टक्कर के बीच अपराध ख़त्म होने की उम्मीद लगाये बैठी जनता इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 11 फ़रवरी को करेगी.
मुरादनगर
मुरादनगर सीट पर कई दिग्गजों की साख दांव पर है. यहाँ बीजेपी ने पूर्व मंत्री रहे राजपाल त्यागी के बेटे अजित पाल त्यागी को मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस व सपा गठबंधन ने संसद तक का सफर तय कर चुके सुरेन्द्र प्रकाश गोयल को मैदान में उतारा है. वहीँ बसपा ने सांसद व मेयर का चुनाव हार चुके सुघन रावत को मैदान में उतारा है. जबकि रालोद ने अजयपाल सिंह को उतारा है. तो वहीँ निर्दलीय दिशांत त्यागी भी चुनावी समीकरण बिगाड़ने के लिये मैदान ने खड़े हैं. यहाँ विकास का सबसे बड़ा मुद्दा इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेगा.
मोदीनगर
मोदीनगर सीट की पर सपा-कांग्रेस के प्रत्याशी रामआसरे शर्मा दोबारा मैदान में है तो रालोद से सुदेश शर्मा मैदान में हैं. जबकि बीजेपी ने महिला प्रत्याशी मन्जू शिवाच को मैदान में उतारा है. जबकि बसपा ने मजबूत प्रत्याशी वहाब चौधरी को मैदान में उतारा है. इस सीट पर मुस्लिम व जाट की बराबर वोट है इसलिये यहाँ भी कांटे की टक्कर नज़र आ रही है. महिला प्रत्याशी होने के नाते मन्जू शिवाच भी समीकरण को जटिल कर चुकी हैं. बेरोजगारी से जूझ रही क्षेत्र की जनता का सबसे बड़ा मुद्दा मुद्दा बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयों को चालू करना है जिससे जनता को रोजगार का अवसर मिल सके.
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जिस प्रकार 5 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में इन क्षेत्रों की जनता ने क्षेत्र के विकास को जेहन में रखा है ऐसे में जातीय और धार्मिक समीकरणों के बीच क्षेत्र के विकास और रोजगार, सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं को लेकर जनता कितनी सजग है ये तो अब 11 फ़रवरी को होने वाला मतदान ही तय करेगा.
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