अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पहली बार यूपी चुनाव में प्रचार शुरू किया है. वैसे तो अखिलेश यादव अपने कामों को गिनाते हुए प्रचार की गाड़ी आगे बढ़ा रहे हैं और जगह-जगह सभाओं में तमाम योजनाओं का हवाला देने के साथ घोषणापत्र के जरिये किये गए वादों को भी जनता के बीच रखकर वोट मांगने का काम कर रहे हैं लेकिन अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती सपा को अपना किला बचाना होगा। 2012 चुनाव में 13 जिले की 55 सीटों पर सपा ने कब्ज़ा जमाया और इन जिलों को सपा ने एक प्रकार से किले में तब्दील कर दिया।
सपा के किले को बचाने का दारोमदार:
समाजवादी पार्टी में कलह के बाद अखिलेश यादव को इन 55 सीटों पर सपा की साख बरकरार रखने का दारोमदार भी होगा। इन सीटों पर मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल यादव का वर्चस्व रहा है. मुलायम-शिवपाल द्वारा तैयार की गई जमीन को बचाए रखने के लिए अखिलेश यादव को मुश्किलें आ सकती हैं. इनमें से कई सीटों पर शिवपाल और अखिलेश के समर्थक आमने-सामने हो गए हैं. कुनबे की ये रार अखिलेश के लिए इन सीटों पर सपा का वर्चस्व बनाये रखने में मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. सपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अखिलेश यादव पर इन सीटों को सपा के खाते में डालने की बड़ी चुनौती होगी। तीसरे चरण में इन जिलों में 19 फ़रवरी को मतदान होने हैं.
कुनबे की रार हो बन सकती है जीत की राह में रोड़ा:
समाजवादी कुनबे में मचे घमासान का असर कहीं का कहीं इन सीटों पर दिखाई देगा। जिस प्रकार मुलायम और शिवपाल यादव पार्टी में हाशिए पर चले गए हैं, उसके बाद अखिलेश यादव का इन जिलों में भारी विरोध भी हुआ है. ऐसे में ये कहना गलत नही होगा कि शिवपाल-मुलायम के सम्मान की खातिर इनके समर्थक अखिलेश के लिए कड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं.
समाजवादी कुनबे में रार का प्रभाव यहाँ साफ़ तौर पर दिखाई दे रहा है. ये वो जिले हैं जिनकी सीटों पर जीत ने सपा को सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. तीसरे चरण में मैनपुरी, कन्नौज, फर्रुखाबाद, हरदोई,औरैया, कानपुर देहात और कानपुर नगर शामिल हैं. मुलायम सिंह और शिवपाल का इन जिलों की अधिकांश सीटों पर प्रभाव रहा है और इन 12 जिलों में सपा ने 55 सीटों पर कब्ज़ा जमाया था. इन जिलों की कुल 69 से 55 सीटों पर कब्ज़ा जमाकर सपा ने सरकार बनाई थी.
सम्मान और अपमान के बीच किले को बचाने की कवायद:
इटावा, कन्नौज, मैनपुरी और आस-पास केजिलों में मुलायम सिंह यादव का काफी सम्मान है. इतना ही नहीं शिवपाल भी जसवंतनगर से जीतकर आते हैं. शिवपाल रिकॉर्ड मतों से अपना चुनाव जीतकर आये थे ऐसे में अखिलेश के लिए सपा में दंगल के बीच इन सीटों पर मुलायम और शिवपाल के प्रभाव को ख़ारिज करते हुए अपना वर्चस्व स्थापित कर पाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.
मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से और शिवपाल को अध्यक्ष पद से हटाना सम्मान और अपमान की कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है. इन जिलों में कई सपा समर्थकों ने भी नाराजगी जाहिर की है. इन लोगों को मानना है कि बिना शिवपाल और मुलायम के सपा के लिए चुनाव आसान नहीं होगा।
सपा और कांग्रेस गठबंधन के बीच अखिलेश यादव को मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के समर्थकों से भी पार पाना होगा जो इन दोनों को पार्टी से किनारे किये जाने के बाद बेहद खफा हैं. ऐसे में सपा-कांग्रेस गठबंधन कितना कारगर होगा ये तो 11 मार्च को ही मालूम हो पायेगा।