उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी ने अपनी तैयारियों को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है।
बसपा सुप्रीमो को ब्राह्मणों से जगी आस:
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के तहत बसपा अपनी तैयारियां शुरू कर चुकी है। बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर से यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए दलित-ब्राह्मण समीकरण पर फोकस कर रही है।
पार्टी के ब्राह्मण चेहरों को सौंपी जिम्मेदारी:
मायावती ने विधानसभा चुनाव के पहले दलित-ब्राहमण को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए बसपा के ब्राह्मण चेहरों को जिम्मेदारी सौंप दी है। 2012 में बसपा ने करीब 85 विधानसभाओं में अपने ब्राह्मण प्रत्याशी खड़े किये थे। हालाँकि, 2012 में मिली हार के बाद पार्टी और सवर्णों के बीच दूरी बन गयी थी। इसीलिए मायावती के आदेश पर सतीश चन्द्र मिश्र ने रविवार 18 सितम्बर को अपने आवास पर पार्टी के ब्राह्मण को-ऑर्डिनेटर्स के साथ मीटिंग की थी।
सतीश मिश्रा होंगे बसपा का ‘ब्राह्मण चेहरा’:
उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो ने पार्टी में दलितों और ब्राह्मणों के समायोजन के लिए सतीश चन्द्र मिश्र को जिम्मेदारी सौंप दी है। सतीश चन्द्र मिश्र पार्टी और सूबे के ब्राह्मणों के बीच समन्वय बनाने के लिए 62 विधानसभाओं में 30 जनसभाएं करेंगे। वहीँ, बाकि अन्य रिज़र्व 23 विधानसभाओं या पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी बसपा विधायक रामवीर उपाध्याय को सौंपी गयी है।
जैसा कि, 18 सितम्बर के संस्करण में हमने बसपा की ब्राह्मणों को लुभाने की रणनीति के बारे में खुलासा किया था कि, बसपा सुप्रीमो यह जिम्मेदारी किसी वरिष्ठ नेता को सौंप सकती हैं। साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव में मायावती दलित-ब्राह्मण के साथ मुस्लिम वोट बैंक को भी साधने की कोशिश कर रही हैं।
पूरी खबर पढ़ें: ‘यूपी की सत्ता’= दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम!
25 सितम्बर से शुरू कर सकते हैं कैम्पेन:
बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राहमण वोट बैंक की जिम्मेदारी सतीश चन्द्र मिश्रा के कन्धों पर डाल दी है। सूत्रों के मुताबिक, सतीश चन्द्र मिश्र अपने कैम्पेन की शुरुआत 25 सितम्बर, कौशाम्बी से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त सतीश चन्द्र मिश्र के समधी गोपाल नारायण मिश्र और दामाद परेश मिश्र भी उनका सहयोग करेंगे। वहीँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भार रामवीर उपाध्याय को सौंपा गया है। जिसमें उनके साथ उनकी पूर्व सांसद पत्नी सीमा उपाध्याय और पूर्व विधान परिषद् सदस्य भाई मुकुल मदद करेंगे।
2012 में हुआ है अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन:
बसपा पार्टी में करीब 25 विधानसभा सीटें ब्राह्मण प्रत्याशियों के लिए रिज़र्व हैं, जिनपर 2012 में सिर्फ 16 सीटों पर ही प्रत्याशियों को सफलता मिली थी। वहीँ, 2007 में बसपा के लिए ब्राह्मण-दलित समीकरण फायदेमंद रहा था। जिसमें बसपा के 61 ब्राह्मण प्रत्याशी जीते थे। इससे पहले 1993, 1996 और 2002 में भी पार्टी ने क्रमशः 23, 20 और 24 सीटें जीती थीं। बसपा के लिए समस्या यह है कि, रिज़र्व सीटों पर बसपा का दलित वोट बैंक अन्य पार्टियों में भी बंट जाता है। इसलिए मायावती पार्टी को अन्य पार्टियों से इस क्रम में आगे रख रही हैं।
दलितों के साथ ब्राह्मण समीकरण दिला सकता है ‘यूपी का सिंहासन’:
उत्तर प्रदेश की जनसँख्या में करीब 21 फ़ीसदी दलित हैं, जो परम्परागत तरीके से मायावती को सपोर्ट करते हैं। लेकिन मायावती यह जानती हैं कि, सिर्फ दलित समीकरण से यूपी की सत्ता मिलना मुश्किल है, इसलिए मायावती अन्य जातियों को अपने केंद्रीय दलित वोट बैंक के साथ जोड़ना चाहती हैं। इसलिए बसपा सुप्रीमो ने ब्राह्मण वोट बैंक पर फोकस किया है, जो यूपी की जनसँख्या का 11 फ़ीसदी है। वहीँ मायावती इस बार मुस्लिम वोटबैंक को भी अपने केंदीय वोट बैंक दलित के साथ जोड़ना चाहती हैं।