उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) पांच नवंबर को अपना रजत जयंती समारोह मनाने जा रही है। सपा के सूत्रों ने बताया कि समारोह में शिरकत करने के लिए लालू यादव ने आने की सहमति दे दी है। इसके अलावा देवगौड़ा भी आने को तैयार हैं। राज्यसभा सांसद अमर सिंह भी रजत जयंती के दिन मंच पर दिखाई देंगे। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने भी आने के संकेत दिए हैं। इसके साथ ही बिहार की तर्ज पर यूपी में महागठबंधन बनाने की कोशिशें तेज हो गई हैं।
- समाजवादी पार्टी के अंदर मची कलह के बाद विपक्ष में बैठे बसपा और भाजपा की बांछे खिल गयी थी।
- हालांकि सपा अब अंदरूनी कलह से उबरने और अपना वोट बैंक बचाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रही है।
- इसके लिए सपा ने इसके लिए नीतीश कुमार, लालू यादव और अजित सिंह की आरएलडी से संपर्क साधा।
- कांग्रेस रणनीतिकार पीके की मुलायम से मुलाकात को महागठबंधन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
- यूपी चुनाव से पहले सपा कांग्रेस समेत तमाम सेक्यूलर दल एक मंच पर आ सकते हैं।
- समान विचारधारा वाले सियासी दलों के इस गठजोड़ से बीजेपी और बसपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नये सिरे से बनानी होगी रणनीतिः
- बीएसपी इस बार अपने परंपरागत दलित वोटरों के अलावा मुस्लिम वोटरों के सहारे सत्ता पाने की कोशिशों में जुटी हुई है।
- ऐसे में अगर मुसलमानों को एक मजबूत महागठबंधन का विकल्प मिल जाता है तो वे वापस नेताजी के पाले में जाना पसंद करेंगे।
- यूपी में महागठबंधन बनने के बाद अल्पसंख्यक वोट कम से कम बंटेगा।
- इसका खामियाजा भाजपा को भी उठाना पड़ सकता है।
- आकड़ों के हिसाब से देखें तो 9 फीसदी यादव और 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता मुलायम की ताकत हैं।
- कांग्रेस के साथ आने पर इसमें कुछ दलितों और अगड़ों के वोट जुड़ सकते हैं।
- महागठबंधन के बाद सपा पारिवारिक फूट से हुए नुकसान की भरपाई करने में भी सफल रहेगी।
- ऐसे में भाजपा और बसपा को सूबे में करिश्मा करने के लिए नये सिरे से रणनीति बनानी होगी।
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