केन्द्र सरकार द्वारा 8 नवंबर को लिए गये नोटबंदी के फैसले का असर पूरे देश में दिखाई दे रहा है। नोट बैन का आम नागरिकों के साथ ही लोकनीति और राजनीति पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है। एक तरफ जहां अपनी मेहनत की जमा पूंजी को लेकर आम जनता बुरी तरह से परेशान है। वहीं कालेधन के कुबेरों का खेल बिगड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
- वैसे तो कालेधन पर लगाम के लिए नोट बैन के फैसले को विपक्ष अच्छा कदम बता रहा है।
- लेकिन इस फैसले पर विपक्ष को सरकार के कई शिकायतें भी हैं।
- विपक्षी दलों ने जनता के हितों के बहाने ही सही सड़क से सदन तक मोर्चा खोल दिया है।
- अब जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब और गोवा जैसे राज्यों में जहां चुनाव में कुछ ही समय शेष है।
- ऐसे में नोट बैन का फैसला राजनीतिक दलों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।
- चुनाव नजदीक देख, राजनीतिक पार्टियां प्रचार के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही हैं।
- लेकिन, नोटबंदी के फैसले ने सभी राजनीतिक दलों का चुनावी गणित गड़बड़ा दिया है।
- निश्चित रूप से मोदी सरकार का ये फैसला किसी ना किसी स्तर पर चुनाव खर्च को भी प्रभावित करेगा।
- सियासी जानकारों की माने तो केन्द्र का इस फैसला सियासी पार्टियों को बिल्कुल भी रास नहीं आया।
- अगले साल की शुरूआत में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।
- राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को अमली जामा पहनाने में जुटे थे।
- उसी बीच रास्ते में एक बड़ा स्पीड ब्रेकर आ गया।
प्रति वोटर खर्चः
- आयकर विभाग के एक अफसर का कहना है कि यूपी चुनाव में प्रति वोटर करीब 300 रूपये का खर्चा संभावित था।
- इससे काले धन की खपत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
- वहीं, चुनाव प्रबंधन के अधिकारी का मानना है कि टक्कर जितनी कांटेदार होती है खर्चा उतना ही अधिक होता है।
- आयकर विभाग के आंकलन के मुताबिक इस बार यूपी चुनाव 50 अरब रुपये खर्च होने का अनुमान था।
- इसमें से करीब 15 अरब रूपये तो औपचारित तौर पर खर्च किये जाते।
- बाकी रुपयों को कालेधन के तौर पर खपाया जाना था।
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