बिहार में महागठबंधन की ऐतिहासिक सफलता के बाद उत्तर प्रदेश में उसी फार्मूले को दोहराने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। यूपी का गठबंधन जहां आपसी लड़ाई में चोटिल सपा के लिए संजीवनी का काम करेगा। वहीं, 27 सालों से सूबे की सत्ता की बाट जोह रही कांग्रेस के खेमें में भी ढ़ेरों खुशियां लेकर आयेगा। गठबंधन के जरिये भाजपा विरोधी तमाम सेक्युलर दल एक मजबूत गठबंधन खड़ा कर पाने में सफल होंगे और इसका व्यापक असर चुनाव नतीजों पर भी दिखाई देगा।
महागठबंधन का फॉर्मूलाः
- यूपी के यादव और मुसलमान मतदाता सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ हैं।
- कांग्रेस के पास कुछ दलित और कुछ अगड़ों का वोट है।
- कांग्रेस के पाले में गैर जाटव जातियां और कुछ अगड़े खड़े दिखाई देते हैं।
- वहीं, बिहार सीएम नीतीश कुमार यूपी के अति पिछड़ों और कुर्मियों को रिझाने का दम रखते हैं।
- रालोद के अजीत सिंह इसमें कुछ जाट वोटों का तड़ाक लगा सकते हैं, जो कई सीटों पर निर्णायक है।
- इसके साथ ही अन्य छोटे दलों को साथ लेकर कुछ सीटों पर निर्णायक नतीजे हासिल किये जा सकते हैं।
- इन सबके साथ आने पर यूपी में एक मजबूत महागठबंधन खड़ा हो जाएगा।
मुस्लिम मतदाताओं के बीच जाएगा सकारात्मक संदेशः
- इन सबक बीच अगर यह महागठबंधन बन पाता है तो इससे मुसलमानों के बीच एक संदेश जाएगा कि यूपी में भाजपा को रोकने का विकल्प तैयार हो गया है।
- इसके बाद मुस्लिमों के बीच पैदा हुई दुविधा की स्थिति भी समाप्त हो जाएगी।
- देखा जाए तो इस गठबंधन के कमजोर होने की गुंजाइश बहुत कम है।
- मुलायम सिंह अगर एक बार यूपी में गठबंधन बनाते हैं तो उससे दूर जाना उनके लिए मुमकिन नहीं होगा।
- इससे यहां बिहार जैसी स्थिति की पुनरावृत्ति की संभावनाएं भी क्षीण ही हैं।
बिगड़ेगा मायावती का गणितः
- यूपी का यह महागठबंधन मायावती के लिए भी चिंता का विषय होगा।
- 2017 के विधानसभा चुनावों में मायावती का सारा गणित दलित-मुस्लिम समीकरण पर टिका है।
- अगर मुसलमानों को एक मज़बूत महागठबंधन का विकल्प मिल जाता है जो भाजपा से लड़ सके।
- ऐसे में सूबे के मुसलमान नेताजी के साथ जाना पसंद करेंगे।