उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव तीसरे चरण में प्रवेश कर चुका है. सूबे के 12 जिलों की 69 सीटों पर 19 फ़रवरी को मतदान होने हैं. इस चरण में सपा की साख दांव पर लगी है क्योंकि इन जिलों की 55 सीटों पर सपा का कब्ज़ा रहा था. 2012 चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनायी थी, जिसमें इन जिलों का अहम योगदान रहा था.
मुलायम के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी में बीजेपी-बसपा:
मैनपुरी , इटावा , कन्नौज, कानपुर , औरैया की सीटों पर सपा का दबदबा रहा है. 2012 चुनाव में औरैया की 3 सीटों पर सपा का वर्चस्व है, वहीँ इटावा, कन्नौज , फर्रुखाबाद और मैनपुरी में सपा ने सभी सीटों पर कब्ज़ा जमाया था. औरैया में सपा को बागियों से चुनौती मिल सकती है. वहीँ सीटों पर सपा को बसपा और बीजेपी चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं.
मैनपुरी की चार सीटों पर सपा का दबदबा है लेकिन सपा को यहाँ अंदरूनी कलह के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. मैनपुरी की लोकसभा सीट भी सपा के पास ही है. मैनपुरी सीधे-सीधे मुलायम और शिवपाल के प्रभाव के कारण खास रहा है. ऐसे में पार्टी को अपनी साख बरकरार रखने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी.
कन्नौज से मुलायम सिंह यादव की बहू डिम्पल यादव सांसद हैं. यादव परिवार का कोई ना कोई सदस्य यहाँ से प्रतिनिधित्व करता रहा है. अखिलेश यादव को कन्नौज से मिलती दिखाई दे रही है. वहीँ अखिलेश का मानना है कि सपा 2014 की तरह अबकी चुनाव में भी अन्य दलों पर भारी पड़ेगी। बहरहाल अब इसका फैसला 19 फ़रवरी को होने वाले मतदान के बाद ही होगा लेकिन सपा के गढ़ में चुनौतियाँ इस बात का संकेत हैं कि इस चरण में मुकाबला करीबी हो सकता है.
बाराबंकी में बेनी प्रसाद पर जिम्मेदारी:
2002 में हैदरगढ़ से चुनाव जीतकर राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने लेकिन यहाँ दबदबा बेनी प्रसाद वर्मा का रहा है. कुर्मी वोटों की संख्या अधिक होने के कारण बेनी प्रसाद यहाँ पर हावी रहे हैं. उनके बेटे राकेश भी यहाँ से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. ऐसे में बेनी प्रसाद के लिए अपना दबदबा बरक़रार रखने का दबाव भी होगा।
यहाँ 5 सीटों पर सपा और 1 पर बीजेपी को जीत मिली थी. इस चुनाव में टिकट के बंटवारे को लेकर बेनी प्रसाद नाराज थे. वहीँ बीजेपी एक बार फिर 2014 की जीत को दोहराने की उम्मीद में जीत की आस लगाए बैठी है. मायावती को कमतर आंकने की भूल ये दोनों दल नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में यूपी का ये चुनाव बहुत से नेताओं की साख का सवाल बन गया है.
लखनऊ पर बीजेपी की नजर:
बात करें अगर बीजेपी की तो, लखनऊ की सीटों पर बीजेपी की निगाहें हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद यहाँ लालजी टंडन और राजनाथ सिंह ने जिम्मेदारी सम्भाली है. पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है और ऐसे में बीजेपी अबकी बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.
हालाँकि पिछले चुनाव में 9 में से 8 सीटें सपा-कांग्रेस गठबंधन के पास हैं. सपा ने 7 जबकि कांग्रेस ने 1 सीट जीती थीं वहीँ बीजेपी को एक सीट से संतोष करना पड़ा था. गठबंधन के कारण उम्मीदवारों को लेकर उहापोह की स्थिति में बीजेपी इन सीटों पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है. बसपा भी सरकार बनाने के दावे कर रही है. ऐसे में लखनऊ की सीटों पर रोमांचक मुकाबले की उम्मीद हर कोई कर रहा है.