देश के सबसे बडे सूबे औऱ प्रदेश की सबसे बडी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अधिकारविहीन हो गये हैं। कहने को तो, वह समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री है लेकिन उनके पास अधिकार के नाम पर कुछ भी नही है। जिस पार्टी के चेहरे के तौर पर पांच साल पहले प्रदेश मे सत्ता हासिल की थी उसी पार्टी मे वह हाशिये पर चले गये। उनके पास न तो प्रत्याशियो के चयन का अधिकार है और न संगठन के भीतर अपने लोगो को प्रमुख पदो पर बैठाने का अधिकार है। उल्टा जो कुछ उनके पास था वह भी चला गया, एक एक कर सारे वफादार पार्टी से बाहर कर दिये गये।
- ऐसे मे सवाल यह उठता है कि समाजवादी पार्टी किस चेहरे पर अपना प्रचार करेगी।
- उस अखिलेश यादव के चेहरे पर जो सीएम तो है लेकिन अधिकारविहीन है।
- या फिर उनके विकास के उन कामो पर जिस पर खुद मुलायम को भरोसा नही है।
- जनता तक बार बार यह मैसेज जा रहा है कि वह एक ऐसे मुख्यमत्री के चेहरे पर भरोसा करे जो अपनी मर्जी से न सरकार चला सकता है और न ही संगठन।
- ऐसे में क्या मुलायम अखिलेश को जनता के बीच कमजोर सीएम के तौर पर पेश करना पंसद करेंगे।
- बीते एक महीने मे पार्टी औऱ सरकार मे जो कुछ भी हुआ उससे अखिलेश की छवि को सबसे बडा धक्का लगा है।
- जिन जिन मंत्रियो को अखिलेश ने अलग-अलग आरोपो मे बाहर किया था वे सब दोगुनी ताकत के साथ वापस आ गये।
- मैसेज गया कि अखिलेश पर शिवपाल भारी पडे क्योकि उन्हे मुलायम का साथ था।
- फिर अखिलेश के समर्थको औऱ खास नेताओ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।
- अखिलेश तब भी कुछ नही कर पाये, जिनको मुलायम से लडकर एमएलसी बनवाया था वह भी बाहर।
- जिन लोगो ने अखिलेश के समर्थन मे नारे लगाये वह भी बाहर।
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विरोधियों की राह आसानः
- फिर संगठन के भीतर मीडिया पैनल तय हुआ तो अखिलेश की टीम को तवज्जो नही मिली।
- अब प्रत्याशियो को बदलने औऱ टिकट बंटवारे मे भी अखिलेश की सलाह की जरुरत नही समझी गई।
- ऐसे में जब पार्टी खुद अखिलेश को कमजोर कर रही है तो जनता उन्हे एक मजबूत सीएम कैसे मानेगी।
- ऐसे सपा के चुनाव प्रचार पर इसका उल्टा असर पडेंगा।
- साथ ही विरोधियो की राह भी बैठे बिठाये आसान हो रही है।
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