समाजवादी पार्टी की अंदरूनी कलह पर भले ही शीर्ष नेताओं ने चुप्पी साध ली है लेकिन हकीकत ये है कि भीतर ही भीतर ये आग लगातार सुलग रही है। झगड़े को इसलिए भी समाप्त नहीं माना जा रहा है क्योंकि ना तो झगड़े के सभी पहलुओं पर विचार किया गया है और ना ही ईमानदारी से झगड़े को सुलझाने की कोशिश की गयी है। देखा जाए तो इस झगड़े में अखिलेश और शिवपाल की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के अतिरिक्त भी बहुत कुछ छिपा है। दसअसल, अखिलेश केवल तख्त ही नहीं बल्कि अपनी हुकुमत भी चाहते हैं। अखिलेश अब भी उन सवालों पर कायम रहना चाहते हैं जिनकी वजह से जनता ने उन्हें सिंहासन सौंपा था।
- हालांकि समझौते के तहत शिवपाल और उनके समर्थकों ने मान लिया है कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश का विकल्प उनके पास नहीं हैं।
- इसके बाद भी संगठन पर कब्जा जमाए बैठे शिवपाल और सरकार पर काबिज अखिलेश के बीच संवाद शुरू होने की संभावनाएं कम ही हैं।
- सरकार और संगठन के बीच संवादहीनता का असली नजारा तो 3 नवम्बर की रथयात्रा में दिखाई देगा।
- सरकार की तरफ से रथयात्रा के एलान के वाबजूद पार्टी की ओर से कोई उत्साहजनक संकेत नहीं मिल रहें हैं।
- वैसे भी यह बात बाहर आ चुकी है कि मूलरूप से यह आयोजन अखिलेश को सरकार का चेहरा बताने वाली सपा के बजाय जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट की अगुवाई में हो रहा है।
- वहीं इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी कसक दो दिन बाद होने वाले रजत जयंती समारोह में भी दिखाई देगी।
- टीम अखिलेश का हिस्सा रहें समर्थक पहले ही रजत जयंती कार्यक्रम से दूरी बनाने का एलान कर चुके हैं।
- इस बीच समाजवादी विचारधारा वाली पार्टी दो अलग विचारधाराओं में बंट चुकी है।
अखिलेशवादी- “काम बोलता है”
- अखिलेश और उनके समर्थकों का मानना है कि सरकार के कामकाज के बलबूते दोबारा सरकार बनायी जा सकती है।
- सीएम खुद भी विकास की बातों के साथ जनता के बीच जाना चाहते हैं।
- इस सपा सरकार ने प्रदेश में जितने भी काम किये हैं उतने पहले की किसी सरकार ने नहीं किये।
- सरकार अपनी किसी भी सभा में सरकार के कामों को गिनाना नहीं भूलते हैं।
- सरकार के मुताबिक पार्टी का सिर्फ एक ही चुनावी एजेंडा है और वो है ‘विकास’।
- अखिलेश नहीं चाहते कि पार्टी कोई भी ऐसा फैसला ले।
- जिसे लेकर उन्हें जनता और विरोधियों के सवालों का सामना करना पड़ें।
- वो चाहते है कि क्षेत्रीय और जातीय समीकरण दुरूस्त करने के लिए दागी और विवादित चेहरों को अधिक तवज्जों नहीं दी जाए।
शिवपालवादी- “सांप्रदायिक ताकतों के लड़ना है”
- संगठन पर काबिज शिवपाल का कहना है कि अखिलेश का अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।
- अखिलेश सरकार में मुख्यमंत्री तो है लेकिन संगठन अपने तरीके से काम करेगा।
- संगठन को चुनाव जीतने के लिए किसी भी दागी या विवादित चेहरे से परहेज नहीं है।
- सरकार के एकला चलो रे के उलट संगठन गठबंधन की खिचड़ी पकाने को बेचैन नजर आ रहा है।
- पार्टी का कहना है कि वह सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कोई भी समझौता करने को तैयार है।
- पार्टी संगठन का मूल एजेंडा है कैसे भी करके सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में आने से रोका जाएं।
- इसके लिए भले ही उसे सरकार की छवि को चोटिल करने वाले बड़े फैसले ही क्यों ना करने पड़ें।