उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में अब सिर पर आ चुके हैं, ऐसे में सभी राजनैतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में लगे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर हर दल की अपनी-अपनी रणनीति रही है। सूबे की समाजवादी पार्टी बीते कुछ दिनों पहले तक चुनाव की दौड़ में सबसे आगे चल रही थी, जिसके बाद सपा में घमासान शुरू हो गया और पार्टी का पूरा ध्यान चुनाव में लड़ाई की जगह आपस की लड़ाई में लग गया।
विवाद से सपा को भारी नुक्सान:
- समाजवादी पार्टी में मचे घमासान ने पार्टी को काफी नुक्सान पहुँचा दिया है।
- जिसके बाद आगामी चुनाव में समाजवादी पार्टी को मुंह की खानी पड़ सकती है।
- मुख्यमंत्री अखिलेश ने पिछले साढ़े चार सालों के अन्दर सूबे में जितने विकास कार्य किया है।
- उन सभी को समाजवादी पार्टी के दंगल ने छुपा दिया है।
- पार्टी में पड़ी फूट के बाद से सिर्फ सपा ही नहीं अन्य दलों का चुनावी समीकरण भी बिगड़ने की पूरी सम्भावना है।
अधूरे विकास कार्य से कैसे होती नैया पार?:
- मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2012 के बाद से ही किसी भी कार्यक्रम में शिरकत कि, वहां अपने विकास कार्यों का बखान किया।
- लेकिन जितना विकास करने का दावा सीएम अखिलेश करते हैं, उतना ही खुद को विकास की असलियत से दूर करते जाते हैं।
- विरोधी दलों ने भी मुख्यमंत्री अखिलेश के विकास कार्यों को लेकर काफी माहौल बनाया हुआ है।
- जिसके प्रभाव से जनता का बच पाना मुश्किल है।
- इसके अलावा सूबे की जनता को भी इस बात का एहसास है कि, मुख्यमंत्री अखिलेश आधे-अधूरे विकास कार्यों का उद्घाटन कर रहे थे।
- फिर चाहे मेट्रो की बात की जाये या आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे की,
- मुख्यमंत्री अखिलेश ने हर जगह जनता को विकास के नाम पर आधी-अधूरी योजनायें ही दी हैं।
लॉ एंड आर्डर बना ‘गुड़ लगा हंसिया’:
- समाजवादी पार्टी के लिए सभी मुद्दों से इतर शायद सबसे बड़ी समस्या सूबे में लॉ एंड आर्डर मेन्टेन करने को लेकर रही।
- बात चाहे, मुजफ्फरनगर के दंगों की हो या बदायूं में दो किशोरियों के साथ गैंगरेप की वारदात,
- बुलंदशहर में हाईवे पर माँ-बेटी के साथ गैंगरेप का मामला हो या मथुरा में रामवृक्ष यादव का आतंक,
- समाजवादी सरकार किसी भी सूरत में कानून-व्यवस्था लागू कर पाने में नाकाम रही।
- ये मामले सपा की धराशायी कानून-व्यवस्था की बानगी मात्र हैं।
- वहीँ 2012 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में 500 से अधिक छोटे-बड़े दंगे हो चुके हैं।
- सबसे प्रमुख बात इन दंगों में सिर्फ सांप्रदायिक दंगे ही शामिल नहीं हैं।
- मुख्यमंत्री अखिलेश ने उत्तर प्रदेश में हिंसा, गुंडागर्दी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जाने कि बजाय पैसे से जनता का मुंह बंद करने की कोशिश की।
- अमेरिका की तर्ज पर डायल 100 सेवा की शुरुआत की अन्य योजनाओं की तरह ये योजना भी सिर्फ लोक-लुभावन ही निकली।
- वास्तविकता के धरातल पर आते ही इस योजना ने दम तोड़ दिया, कई जगहों से पुलिस द्वारा फ़ोन न उठाने की शिकायत सामने आई।
- कहीं पर पुलिस अपने प्रस्तावित समय पर नहीं पहुंची।
- फिलहाल तो पार्टी में मचे घमासान के बाद सपा का नाम और निशान दोनों ही खतरे में हैं।
- हो सकता है कि, चुनाव आयोग चुनाव के दौरान ‘साइकिल’ निशान को ही सीज कर दे।
- सारे घटनाक्रमों को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि, सपा यूपी चुनाव की लड़ाई में सबसे पीछे नजर आ रही है।
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