इलाहाबाद। नजूल भूखंड संख्या-59, सिविल लाइंस इलाहाबाद। क्षेत्रफल 8019.57 वर्ग मीटर। इस पर 100 गुणा 50 फीट क्षेत्र, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट का परिसर है उस पर अवैध मस्जिद बना ली गई। यह उस धार्मिक स्थल का पता है जिसे बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध कब्जा मानते हुए हटाने का आदेश दिया है। इस जमीन पर अवैध कब्जा ही नहीं, बल्कि केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड से पंजीकृत भी करा लिया गया था। (149 years old history)
अंग्रेजी सरकार में 50 साल के लिए किया था आवंटित (149 years old history)
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य भवन के ठीक सामने कानपुर रोड के दक्षिणी दिशा में यह भूखंड स्थित है।
- जिसके एक हिस्से में महाधिवक्ता कार्यालय और दूसरे हिस्से में हाईकोर्ट का कार्यालय भवन बना है।
- पुराने अभिलेख बताते हैं कि 11 जनवरी 1868 को इस जमीन का पट्टा था।
- तत्कालीन अंग्रेजी सरकार में थॉमस क्राउबी को 50 साल के लिए आवंटित किया था।
- जिस पर इलाहाबाद के कमिश्नर का भी हस्ताक्षर मौजूद है।
- यह जमीन रिहायशी भवन बनाने के लिए पट्टे पर दी गई थी।
- 12 अप्रैल 1923 को थॉमस क्राउबी के उत्तराधिकारी विलियम चार्ली ड्यूकेस के नाम नया पट्टा हुआ।
- जो एक जनवरी 1918 से 31 दिसंबर 1967 तक जारी रहा।
- 16 अप्रैल 1945 को विलियम चार्ली ड्यूकेस के प्रतिनिधि एडमंड जॉन ड्यूकेस ने कलक्टर की अनुमति ली।
- लेकर जमीन पर बने बंगले को लाला पुरुषोत्तम दास के नाम बेच दिया।
- 30 अक्टूबर 1958 को लाला पुरुषोत्तम दास के प्रतिनिधि ने मोहम्मद अहमद काजमी जो कि हाईकोर्ट में वकील थे।
- इनके नाम लीज के अधिकार दे दिए।
- बंगले को मोहम्मद अहमद काजमी की पत्नी मैमूना खातून काजमी।
- उनकी दो बेटियां सबरा खातून और शकरा खातून के नाम से लीज पर दिया गया।
- तीन जनवरी 1961 को कलेक्टर की अनुमति से भूखंड लिया।
- दक्षिणी क्षेत्र की 25 सौ वर्गगज जमीन मेसर्स ग्रेट ईस्टर्न इलेक्ट्रोप्लाटर्स लिमिटेड को 25 हजार रुपये में बेच दी गई।
- जो लीज 12 अप्रैल 1923 को दी गई वह 31 दिसंबर 1967 को समाप्त हो गई।
- इसके बाद लंबे समय तक उसका नवीनीकरण नहीं हुआ।
- इस जमीन की नई लीज 19 मार्च 1996 को 30 साल के लिए जारी हुई।
- जो एक जनवरी 1968 से लेकर 31 दिसंबर 1997 तक वैध रही। (149 years old history)
- 17 जुलाई 1998 को 30 साल का पट्टा पूरा होने के बाद निर्णय लिया।
- एक जनवरी 1998 से 30 साल के लिए मैमूना खातून काजमी और उनकी दो बेटियां सबरा खातून और शकरा खातून के नाम नवीनीकरण किया गया।
- 15 दिसंबर 2000 को राज्य सरकार ने इलाहाबाद के जिलाधिकारी को इस जमीन को हाईकोर्ट के विस्तार और महाधिवक्ता कार्यालय के लिए अधिग्रहीत करने का आदेश दिया।
- इस पर इलाहाबाद के जिलाधिकारी ने 11 जनवरी 2001 को लीज धारक को सूचित किया कि 15 दिसंबर 2000 से जमीन का पट्टा निरस्त कर दिया है।
- यह सूचना देते हुए काजमी परिवार को दस लाख रुपये बतौर मुआवजा दिया गया।
- इसके खिलाफ काजमी परिवार ने हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्हें कहीं से राहत नहीं मिली।
अधिवक्ता और जज पढ़ते थे नमाज
- मस्जिद प्रबंधन समिति का कहना था कि 1981-82 में हाईकोर्ट के मुख्य भवन के बरामदे में कुछ अधिवक्ता और जज नमाज पढ़ते थे जिन्हें इसकी अनुमति दी गई थी।
- काजमी के बंगले में उनके परिवार के लोग मस्जिद स्थल पर नमाज पढ़ते थे।
- बाद में हाईकोर्ट के वकील भी वहां नमाज पढ़ने लगे। (149 years old history)
- क्योंकि बारिश के दिनों और गर्मी में धूप के चलते दिक्कत आ रही थी इस कारण वहां टीन शेड लगाया गया।
- तब से वहां लगातार नमाज पढ़ी जा रही है और वह वक्फ में एक मस्जिद के रूप में पंजीकृत हो चुकी है।
- काजमी के परिवार की ओर से लंबे से नमाज पढ़े जाने के कारण वह जमीन मस्जिद की है, इसलिए उसे अतिक्रमण नहीं माना जा सकता।
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Sudhir Kumar
I am currently working as State Crime Reporter @uttarpradesh.org. I am an avid reader and always wants to learn new things and techniques. I associated with the print, electronic media and digital media for many years.