आज 10 मई है…यह वह ऐतिहासिक दिन है जब देश में आजादी के लिए पहली चिंगारी भड़की थी। अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए 1857 में उत्तर प्रदेश के मेरठ के सदर बाजार में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी गई। सबसे पहले यहीं से आजादी पाने की मशाल जलाई गई जो आगे चलकर पूरे देश में फैल गई। आज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखे 160 साल हो गये। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है। मेरठ के क्रांति स्थल और अन्य धरोहर आज भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की याद ताजा करती हैं।
भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम :
- लॉर्ड कैनिंग के गवर्नर जनरल के रूप में शासन करने के दौरान ही 10 मई 1857 ई. को मेरठ से हुई।
- यह क्रांति धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि जगहों पर फैल गया।
- इस क्रान्ति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई,
- परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया।
- जिसे भारत का “प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम” कहा गया।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण :
- जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जनता में गुस्सा भरा था, उस वक्त मेरठ में फूटी क्रांति की चिंगारी।
- मेरठ वो स्थान है जहां से अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए रणनीति तय की गई थी।
- तय तो था कि एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाना लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।
- राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय के रिकार्ड के अनुसार, 10 मई 1857 में शाम पांच बजे जब गिरिजाघर का घंटा बजा, तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर एकत्रित होने लगे।
- सदर बाजार क्षेत्र से अंग्रेज फौज पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया।
- 11 मई की सुबह यहां से भारतीय सैनिक दिल्ली के लिए रवाना हुए और
- 14 मई को दिल्ली पर हमला बोलकर वहां अपना कब्जा कर लिया।
मेरठ को सुरक्षित समझते थे अंग्रेज :
- अंग्रेज मेरठ को अपनी सबसे अधिक सुरक्षित छावनी समझते थे।
- उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि मेरठ में उसके सैनिक विद्रोह कर सकते हैं।
- 10 मई को जब मेरठ में अंग्रेजों के साथ विद्रोह हुआ, तब हिंदू-मुस्लिम सब एक होकर अंग्रेजों पर टूट पड़े।
- तब एक ही नारा बुलंद था वह नारा था ‘मारो फिरंगियों को’।