इंसान अपने जज्बे से कुछ भी कर सकता है और इसी की एक मिसाल हैं उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के राजकुमार चुनमुन। राजकुमार को 14 साल की उम्र में गाँव के दबंग की हत्या के मामले में शक के आधार पर गिरफ़्तारी के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गयी थी। लेकिन अपनी ज़िन्दगी से हताश होने के बजाय उन्होंने खुद को जेल के अंदर ही लेखक बना डाला।

मृतक के बेटे की झूठी गवाही पर मिली उम्रकैद की सजा:

सूबे के बुलंदशहर जिले के नयागांव के राजकुमार चुनमुन कक्षा 9 में थे, जब उन्होंने गाँव के दबंग प्रधान बालकिशन द्वारा एक 8 साल के बच्चे पर अत्याचार के खिलाफ बोला था, लेकिन गाँव में आपसी रंजिश के तहत बालकिशन की हत्या कर दी गयी। बालकिशन के परिवार ने राजकुमार के खिलाफ भी नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी,जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ़्तारी के डेढ़ साल बाद वह जेल से जमानत पर छूटे, लेकिन कोर्ट में मृतक के बेटे की झूठी गवाही पर उन्हें उम्रकैद हो गई। राजकुमार 9 महीने तक पुलिस से बचते रहे पर 2000 में आत्मसमर्पण कर दिया।

2002 से लिखना शुरू किया:

साल 2000 में सरेंडर करने के बाद राजकुमार ने 2002 से जेल के अंदर ही किताबें लिखनी शुरू की, उनकी कृतियाँ है:

  • राजकुमार की पहली किताब ‘सम्पूर्ण क्रांति’ थी। उनकी यह किताब काफी लोकप्रिय रही थी।
  • राजकुमार ने 2004 में ‘अब तो चेतो’, ‘बाबासाहब एक सौ एका’, ‘मोक्षांजलि’, ‘भ्रष्टाचार मुक्तिमंत्र’, ‘लक्ष्य’ कृतियों की रचना की।
  • उन्हें अब तक अपनी कृतियों के लिए 21 सम्मान मिल चुके हैं।

उनके अच्छे आचरण के कारण 2011 में उन्हें हाईकोर्ट ने जमानत दे दी। राजकुमार अब असहाय कैदियों की रिहाई के लिए पैरोकारी अभियान चलाते हैं। ‘मन के हारे हार है और मन के जीते जीत’ राजकुमार इस कहावत को चरितार्थ करते हैं।

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