मिर्जापुर का नाम जेहन में आते ही प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण से परिपूर्ण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है मिर्जापुर स्थित विन्ध्याचल धाम भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थलों में से एक है।
- इसके अतिरिक्त, यहां सीता कुण्ड, लाल भैरव मंदिर, मोती तालाब, टंडा जलप्रपात, विन्धाम झरना, तारकेश्वर महादेव, महा त्रिकोण, शिव पुर, चुनार किला, गुरूद्वारा और रामेश्वर आदि के लिए प्रसिद्ध है।
- मिर्जापुर वाराणसी जिले के उत्तर, सोनभद्र जिले के दक्षिण और इलाहाबाद जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है।
- भारत का अंतराष्ट्रीय मानक समय मिर्जापुर जिले के अमरावती चौराहा के स्थान से लिया गया है
- मिर्जापुर “लालस्टोन” के लिये बहुत विख्यात है
- प्राचीन समय में इस स्टोन का मौर्य वन्श के राजा सम्राट् अशोक के द्वारा बौद्ध स्तुप को एवं अशोक स्तम्भ(वर्तमान में भारत का राष्ट्रीय चिन्ह ) को बनाने में किया था।
- उत्तर प्रदेश की राजधानी लख़नऊ से करीब 290 किलोमीटर दूर स्थित मां विंध्यवासिनी का धाम काफी अलौकिक और चमत्कारी है।
- मिर्ज़ापुर स्थित मां विंध्यवासिनी का यह धाम देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
- पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है
- मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है.
- विंध्याचल की देवी मां विंध्यवासिनी विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है।
- लोगों का ऐसा मानना है।
- माँ विंध्यवासिनी एक ऐसी जागृत शक्तिपीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी जीवित रहेगा।
- बात अगर की जाए तो यहां पर देवी के 3 रूपों का सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है।
त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी तीन रूपों का भक्तों को दर्शन करने का सौभाग्य होता है प्राप्त
- विंध्याचल धाम में त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं।
- विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं
- कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिद्वि प्राप्त होती है. विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं.
त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व होता है विंध्याचल धाम में
- मां के इस धाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व होता है
- जिसमें लघु और बृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है.
- लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के 3 रूपों के दर्शन होते हैं
- वहीं दूसरी ओर बृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग-अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली व मां अष्टभुजी के दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है।
- बृहद त्रिकोण यात्रा में मां महाकाली के दर्शनों के बाद अगला पड़ाव आता
- मां अष्टभुजी का जहां आठ भुजाओं वाले रूपों में करती हैं
- अपने भक्तों का कल्याण. कहते हैं
- इस मंदिर में दर्शन करने के बाद ही भक्तों की बृहद त्रिकोण यात्रा पूर्ण होती है
सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी नही हो सकता समाप्त
- ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता
- यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्वि प्राप्त होती है.
- इस कारण यह क्षेत्र सिद्व पीठ के रूप में विख्यात है.
- आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनाथयों का आना-जाना लगा रहता है
- विध्य पर्वत श्रृंखला (मिर्जापुर, यूपी) के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
3 देवियों के दर्शन किए बगैर यहां की यात्रा मानी जाती है अधूरी
- यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां तीन किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं.
- ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी मानी जाती है.
- तीनों के केन्द्र में हैं मां विंध्यवासिनी.
- यहां निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं।
- शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है.
- शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है.
- मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं.
- इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है.
- शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं,
- विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं.
- शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।
- लगभग सभी पुराणों के विंध्य महात्म्य में इस बात का उल्लेख है कि 51 शक्तिपीठों में मां विंध्यवासिनी ही पूर्णपीठ है.
- नवरात्र के दिनों में मां के विशेष श्रृंगार के लिए मंदिर के कपाट दिन में चार बार बंद किए जाते हैं.
- सामान्य दिनों में मंदिर के कपाट रात 12 बजे से भोर 4 बजे तक बंद रहते हैं।
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