बाराबंकी : फादर्स डे यानि पिता का दिन। कुछ लोगों के लिए ये दिन खुशियां लेकर आता है तो कुछ लोगों के लिए आसुओं का सैलाब।वैसे तो ये दिन पिता के सम्मान में मनाया जाता है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इसमें बदलाव आता जा रहा है जो की एक पिता को दर्द से ज्यादा कुछ नहीं देता है। ऐसे ही एक पिता हैं रामकिशोरा। जिन्हे जवानी में तो बेटों का साथ मिला लेकिन बूढ़ा होने पैर बच्चों ने उनका साथ छोड़ दिया। यही वजह है की हर पिछले पांच साल से ये दिन आते हे उनके आंसू छलक जाते हैं।
20वी सदी में हुई फादर्स डे की शुरुआत
- फादर्स डे की शुरुआत 20वी सदी में हुई थी।
- तभी से यह दिन पिता के सम्मान में मनाया जाने लगा।
- जिस तरह से माँ के सम्मान के लिए मदर्स डे बना ।
- उसी तरह पिता के सम्मान के लिए फादर्स डे की शुरुआत की गयी। इसे जून के तीसरे संडे को मनाने का प्रावधान है।
- ये दिन वैसे तो पिता के सम्मान के लिए बनाया गया है लेकिन आजकल माता पिता के सम्मान को ठेस पहुचाने वाले ज्यादा हैं।
- इन्हीं में से एक है बुजुर्ग रामकिशोर जो की अकेलेपन का शिकार हैं।
- कहने को तो उनका भरा पूरा परिवार है लेकिन आज उनके साथ कोई भी नहीं है।
- ऐसे में चार बच्चों के होते हुए भी वो अकेला जीवन जे रहे हैं।
- बाराबंकी के सत्य प्रेमी नगर निवासी रामकिशोर के चार बच्चे हैं लेकिन उन्हें कोई भी रखने को तैयार नहीं है।
- उनको बाराबंकी में छोड़कर चारों बच्चे लखनऊ में रह रहे है।
- पांच सालों से अकेले रह रहे रामकिशोर को लकवा भी मार गया है जिसकी वजह से वो कोई काम करने में असमर्थ हैं।
- ऐसे में वो मोहल्ले वालों की दया पर जी रहे हैं उनकी सेवा करने वाला अब कोई नहीं है।
- भला ऐसे बुजुर्ग पिता के लिए फादर्स डे का क्या मतलब है।
- हमेशा उनकी निगाहें घर के दरवाजे पैर लगी रहती हैं की कोई बेटा शायदकभी आकर उन्हें अपने साथ ले जाये।
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