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दलित हिंसा में बेक़सूर को भेज दिया जेल, 10 दिन बाद हुआ रिहा

मेरठ पुलिस की एक ऐसी करतूत सामने आई है जो यह दर्शाती है कि कानून बिल्कुल अंधा है। बीते 2 अप्रैल में दलित हिंसा के बाद अपनी मजदूरी करने के बाद वापस घर लौट रहे पंकज गुप्ता को पुलिस ने बीच रास्ते से ही उठा लिया था। जिसके बाद थाने ले जाकर उसकी पिटाई की और मेरठ जिला कारागार में लाकर उसे बंद कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वाजपेई की पैरवी के बाद आज बेकसूर पवन 10 दिन बाद जेल से रिहा हुआ है।

Uttarpradesh.org से किया अपना दर्द बयां

जेल से रिहा होने के बाद पवन ने कहा कि उसे बिना किसी वजह के बंद कर लिया था आज वह जेल से आकर बहुत खुश है, लेकिन पवन गुप्ता का मेरठ पुलिस के ऊपर से हमेशा हमेशा के लिए भरोसा उठ गया है। पवन का कहना है कि उसे डर है पुलिस कभी भी कहीं से भी उसे उठा सकती है। यह पवन गुप्ता मेरठ के थाना ब्रह्मपुरी क्षेत्र के हैं और वह मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते है।Uttarpradesh.org से पवन ने सबसे पहले रिहा होते ही अपना दर्द बयां किया।

भारत बंद के दौरान देशभर में फैली हिंसा

कोर्ट के इस फैसले का देशभर के दलित समूहों ने विरोध किया था और इसी कड़ी में सोमवार को भारत बंद का ऐलान किया गया था जिस दौरान कई राज्यों में हिंसा भड़क गई। इस हिंसा में 12 राज्यों में हिंसा फैल गई और 11 लोगों की अपनी जान गंवानी पड़ी। दूसरी तरफ इसका विरोध करने के लिए उपद्रवियों ने गाड़ी बस दुकानें आदि जला दी थी। जिस कारण सैकड़ों लोग घायल हुए व करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस हिंसा के बाद केंद्र सरकार ने राज्यों से रिपोर्ट तलब की है।

ये था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट 1989 में सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाने का फैसला किया था। कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी की जगह शुरुआती जांच हो। कोर्ट ने कहा था कि केस दर्ज करने से पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी पूरे मामले की प्रारंभिक जांच करेगा और साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि कुछ मामलों में आरोपी को अग्रिम ज़मानत भी मिल सकती है।

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