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किसानों की कर्जमाफी, ‘बहुत नाईंसाफी है ये’

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क्या आपने कभी सोचा है कि किसी एयर कंडीशन रेस्त्रां में एक लीटर पानी की बोतल साठ रुपए में मिलती है और गांव में आज भी गाय का शुद्ध दूध सिर्फ 25 रुपए में एक लीटर मिल जाता है। क्या कभी कोई आंदोलन हुआ कि जिस देश में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य काम था उस देश में आज पानी इतना मंहगा क्यों हो गया, लेकिन दूध का दाम अगर एक रुपए लीटर भी बढ़ गया तो विधानसभा से लेकर लोकसभा तक मंहगाई की गूंज सुनाई देती है।

क्या आपने कभी यह सोचा कि जिस जमाने में गेंहू की कीमत 80 पैसे से लेकर 1 रुपए किलो तक थी, उस वक्त एक सरकारी बाबू का वेतन 100 या 125 रुपए हुआ करता था। गांव की मंडियों से आज भी गेहूं 13 रुपये किलो खरीदा जाता है, लेकिन आज सरकारी बाबुओं का वेतन 40 हजार रुपए प्रतिमाह से भी ज्यादा का हो गया है। आटे दाल के दाम अगर थोड़ा भी बढ़ जाए तो मीडिया से लेकर नेताओं तक के विलाप का शोर सुन कर देश थम जाता है। रास्ते तलाशने शुरू हो जाते हैं, लेकिन किसान आत्महत्या कर लेता है, घास की रोटी खा कर जिंदा है और कर्ज में डूब कर अपना सबकुछ गंवा देता है तो यह घटनाएं विधानसभा या लोकसभा में महज विपक्ष के सवाल औऱ सत्तापक्ष के जवाब तक सिमट जाती है औऱ उसी में थोड़ी चाश्नी लपेट कर अखबार के किसी भीतर के पन्ने में सिमट कर दम तोड़ देती है।

इन तमाम सच्चाईयों से सामना लखनऊ से सटे एक गांव में लगी किसान चौपाल में हुआ। जानकर औऱ देखकर हैरत हुई कि मौजूदा किसान आने वाली पीढ़ी को किसान बनते नहीं देखना चाहता है। वह खेत बेचकर अपने बच्चे को ऊची शिक्षा देकर निचले स्तर का बाबू या चपरासी बनाने को तैयार है, लेकिन खेती के काम में नहीं लगाना चाहता है। किसानों के बच्चे अपने पिता के काम पर गर्व महसूस नहीं करते। उन बच्चों ने अपने पिता की मेहनत को बर्बाद होते हुए। दस बीस हजार के कर्ज के लिए तहसील के अफसरों औऱ बैंक के कर्मचारियों की फटकार सुनते औऱ जलालत झेलते हुए देखा है।

वजह यह है कि आज भी देश की राजनैतिक व्यवस्था खेती को उघोग औऱ किसान को उघोगपति मानने को तैयार नही है। देश के बैंकों का अरबों रुपए हजम करके एक अरबपति तो फरार हो सकता है, लेकिन दस हजार रुपए के कर्ज में फंसा किसान सरकारी व्यवस्था से या तो बेईज्जत होगा या फिर आत्महत्या करेगा।

एक तकलीफ के साथ बात खत्म करता हूं कि पहले से नहीं बताई गई नियम औऱ शर्तो को लागू कर योगी सरकार ने किसानों का एक लाख का कर्ज माफ कर भले ही अपनी सियासी फसल काट ली हो, लेकिन आपको यह जान कर दुख होगा कि आज बांदा के 38 साल के किसान कुलदीप ने इसलिए आत्महत्या कर ली कि वह सरकार की तरफ से निर्धारित जमीन से कुछ ज्यादा जमीन का मालिक था और बैंक का कर्जदार था।

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