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आचार्य नरेन्द्र देव की पुण्यतिथि पर राज्यपाल ने दी श्रद्धांजलि

Acharya Narendra Dev death anniversary

Acharya Narendra Dev death anniversary

राज्यपाल राम नाईक ने आचार्य नरेन्द्र देव की 62वीं पुण्य तिथि पर हजरतगंज के मोती महल लॉन स्थित उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए डॉ. अशोक बाजपेई सहित तमाम नेता और नागरिक भी उपस्थित रहे।

राज्यपाल ने आचार्य नरेन्द्र देव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका जन्म 31 अक्टूबर 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला में हुआ था। वह भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, समाजवादी, विचारक और शिक्षाशास्त्री थे। हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली आदि भाषाओं के ज्ञाता नरेन्द्र देव स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान कई बार जेल भी गए। विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी आचार्य नरेन्द्रदेव उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ में आचार्य बनने के बाद से ‘आचार्य’ की उपाधि उनके नाम का एक अभिन्न अंग बन गई। देश की आजादी का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया।

वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय सदस्य थे और सन 1916 से 1948 तक ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य भी रहे। ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद नरेन्द्र देव ने 1930 के नमक सत्याग्रह, 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और जेल की यातनाएँ भी सहीं। आचार्य नरेन्द्र देव जीवन भर दमे के मरीज रहे। अपने मित्र और उस समय मद्रास के राज्यपाल श्रीप्रकाश के निमंत्रण पर स्वास्थ्य लाभ के लिए वो चेन्नई गए थे जहाँ दमे के कारण 19 फ़रवरी 1956 को 67 साल की उम्र में एडोर में उनका निधन हो गया।

एक नजर में जीवन का घटनाक्रम

1889 में नरेन्द्र देव का जन्म हुआ।
1899 में अपने पिता के साथ कांग्रेस के लखनऊ अधिवेसन में भाग लिया।
1904 में 15 साल की उम्र में विवाह हुआ।
1911 में स्नातक की शिक्षा पूर्ण हुई।
1913 में स्नातकोत्तर की शिक्षा पूर्ण हुई।
1915 में वकालत की पढाई पूरी की।
1921 में काशी विद्यापीठ में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया।
1926 में काशी विद्यापीठ के आचार्य नियुक्त किये गए।
1928 में इंडिपेंडेंस ऑफ़ इंडिया लीग में शामिल हुए।
1947-1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
1951-1953 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
1956 में उनका निधन हो गया

 

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