गोरखपुर में इन्सेफेलाइटिस का कहर ऐसा है कि वहां बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होती है और ये बात किसी से छिपी नहीं है. इस बाबत uttarpradesh.org ने बड़ी संख्या में हो रही मौतों और इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए उठाये जाने वाले कदम पर विस्तार से बात की. स्वास्थ्य विभाग इन्सेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को इंकार तो नहीं कर रहा है लेकिन कई ऐसी बातें सामने आयी हैं जिन्हे जानना जरुरी है.
इन्सेफेलाइटिस: जापानी इन्सेफेलाइटिस और एएईएस
- एएईएस (Acute Encephalitis Syndrome) भारत में खतरनाक बीमारी है.
- अनुमान लगाया गया है कि लगभग 37 करोड लोगों को भारत में एईएस होने का खतरा होता है.
- जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) एशिया में एईएस के प्रमुख वायरल कारणों में से एक है.
- ये मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करता है. उत्तर प्रदेश में 38 जिलों में जेई रोगग्रस्त हैं.
- सबसे अधिक प्रभावित ग्रामीण आबादी में 1 से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे हैं.
एईएस के अधिक मामले भारत में:
- 2006 के बाद से, जेई से निपटने के लिए, जन टीकाकरण अभियानों को नियमित रूप से प्रतिरक्षण में जेई वैक्सीन के एकीकरण के बाद पेश किया गया.
- 2017 तक, उत्तर प्रदेश में 15 करोड से अधिक बच्चों को प्रतिरक्षित किया गया है.
- हालांकि, आयु सीमा में परिवर्तन भी देखा गया और जेई केस 15 साल से ऊपर और वयस्कों की सूचना मिल रही थी.
- स्वास्थ्य विभाग द्वारा गोरखपुर और बस्ती डिवीजन के जिलों में 15 से अधिक वर्ष से 65 वर्ष के व्यक्तियों के लिए अभियान चलाए गए थे.
- टीकाकरण कार्यक्रम के परिणामस्वरूप जेई की पॉजिटिव मामलों में 2005 में 36% से घटकर 2017 में 6% की गिरावट आयी.
- इसके अलावा, 25 मई से 11 जून, 2017 तक, राज्य के 38 प्रभावित जिलों में एक विशेष टीकाकरण अभियान चलाया गया.
- जिसमें 1 से 15 वर्ष आयु वर्ग के 92 लाख बच्चे प्रतिरक्षित किये गये. एएईएस (Acute Encephalitis Syndrome) भारत में एक खतरनाक स्वास्थ्य समस्या है.
- इसके मामलों ने अधिक जानें ली हैं.
- अनुमान लगाया गया है कि लगभग 37 करोड लोगों को भारत में एईएस होने का खतरा होता है.
जापानी इन्सेफेलाइटिस के मामलों में गिरावट:
- जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) एशिया में एईएस के प्रमुख वायरल कारणों में से एक है, और मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित कर रहा है.
- उत्तर प्रदेश में 38 जिलों में जेई रोगग्रस्त हैं जहां सबसे अधिक प्रभावित ग्रामीण आबादी में 1 से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे हैं.
- 2006 के बाद से, जेई से निपटने के लिए, जन टीकाकरण अभियानों को नियमित रूप से प्रतिरक्षण में जेई वैक्सीन के एकीकरण के बाद पेश किया गया.
- 2017 तक, उत्तर प्रदेश में 15 करोड से अधिक बच्चों को प्रतिरक्षित किया गया है.
- हालांकि, आयु सीमा में परिवर्तन भी देखा गया और जेई केस 15 साल से ऊपर और वयस्कों की सूचना मिल रही थी.
- इसलिए गोरखपुर और बस्ती डिवीजन के जिलों में 15 से अधिक वर्ष से 65 वर्ष के व्यक्तियों के लिए अभियान चलाए गए थे.
- इसके अलावा, 25 मई से 11 जून, 2017 तक, राज्य के 38 प्रभावित जिलों में एक विशेष टीकाकरण अभियान चलाया गया जिसमें 1 से 15 वर्ष आयु वर्ग के 92 लाख बच्चे प्रतिरक्षित किये गए.
गोरखपुर और बस्ती डिवीज़न में अधिक मामले:
- एईएस के जटिल और बहुत से कारणों को ध्यान में रखते हुए, गोरखपुर और बस्ती डिवीजन के 386 उच्च जोखिम वाले गांवों को मैप किया गया है.
- सरकार द्वारा 7 जिलों में से प्रत्येक में पांच सबसे अधिक जोखिम वाले गांवों को अपनाया गया है.
- जिसमें 100% शौचालय की स्थापना, नालियों को कवर करने के लिए प्रयास, पर्यावरण स्वच्छता और सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था के लिए कार्य किया जा रहा है.
- अन्य योजनाओं जैसे जल स्वच्छता और पर्यावरणीय स्वच्छता गतिविधियां, जिनमें भारत के मार्क द्वितीय हैन्डपंपों के माध्यम से सुरक्षित पेयजल प्रावधान, फोगिंग, शौचालयों की स्थापना शामिल हैं. 676 उच्चतम जोखिम गांवों में स्वच्छता गतिविधियां चल रही हैं.
स्वास्थ्य विभाग की कोशिश, इन्सेफेलाइटिस के मामलों पर काबू पाया जाये:
- 7 जिलों में कुल 36663 शौचालय आवंटित किए गए हैं जिनमें से जनपद गोरखपुर के 68 उच्च जोखिम वाले गांवों में लगभग 6000 शौचालय आवंटित किए गए हैं.
- राज्य सरकार ने जेई / एईएस प्रभावित जिलों में District Task Forces स्थापित किया है.
- यह अनुमान लगाया गया है कि ये प्रयास न केवल जेई / एईएस के रोग के विस्तार और मृत्यु दर को कम करेगा, बल्कि अन्य सामान्य बीमारियों के कारण भी जो एईएस का कारण बनता है.
- जैसे स्क्रूब टाइफस, डेंगू, टाइफाइड और मलेरिया को भी कम करने में सहायक होगा.
- राज्य सरकार आगामी वर्षों में चरणबद्ध तरीके से अन्य उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में उक्त कार्य करने की योजना बना रही है.
BRD में 43 फीसदी मामले:
- वर्ष 2016 की तुलना में जिला पीआईसीयू केंद्रों और एन्सेफलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) में चालू वर्ष के दौरान एईएस मामलों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
- 2017 में, जिला पीआईसीयू केंद्रों के प्रवेश में वृद्धि हुई है 43% पीआईसीयू केंद्रों पर और 14% मामलों को ईटीसी में इलाज किया गया है, शेष 43% बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुये है.
- यह मूल रूप से यह दर्शाता है कि मामले लोड का 57ः पीआईसीयू / ईटीसी में लिया जा रहा है.
- बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 43% है. 2016 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश 51% था.
स्वास्थ्य विभाग अधिकारियों को कर रहा प्रशिक्षित:
- स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षणः राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की क्षमता बढ़ाने के लिए एक ठोस प्रयास किया गया है.
- ताकि वे जेई / एईएस के मामलों में प्रभावी ढंग से कार्य एवं प्रबंधन कर सकें.
- जुलाई 2017 तक, 367 चिकित्सा अधिकारियों और 26,000 से अधिक फ्रंटलाइन श्रमिकों को प्रशिक्षित किया गया है.
- जो प्रशिक्षण बच्चों के गहन चिकित्सा कक्ष (पीआईसीयू) के मेडिकल अधिकारी थे जिन्हें क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) वेल्लोर, राज्य सरकार और पीएटीएच) के डॉक्टरों द्वारा प्रशिक्षित किया गया था.
- इसके अतिरिक्त जुलाई, 2017 में सभी 75 जिलों के प्रशिक्षकों के लिए वेक्टर बोर्न डिसीज पर एक 3 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई.
- ताकि वे टठक् पर अपने संबंधित जिलों में डॉक्टरों/स्वास्थ्य कर्मचारी को प्रशिक्षित करने के लिए कैपेसिटेट किया जाएगा जिसमें एईएस/जेई शामिल हैं.
- सभी वेक्टर जनित रोगों की अधिसूचनाः नवंबर, 2016 में राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित सभी वेक्टर जनित रोगों की सूचना के साथ, एईएस/जेई सहित सभी वेक्टर जनित रोगों की रिपोर्टिंग और निगरानी को अधिक प्रभावी बना दिया गया है.
- मई, 2017 में राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई राज्य प्रक्षेपण रिपोर्टिंग प्रणाली (एसओआरएस) ने स्वास्थ्य विभाग द्वारा किसी भी स्थिति में त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए जिलों को रिपोर्ट संकलित करने और प्रभावी ढंग से प्रकोपों पर रिपोर्ट करने में सक्षम बना दिया है.
- 2017 के दौरान, गोरखपुर और बस्ती डिवीजन के 7 प्रभावित जिलों के 529 गांवों / शहरी क्षेत्रों में लार्विसीडियल छिड़काव और फोगिंग किया गया है.
- इसके अलावा, पाथ (भागीदार संगठन) की सहायता से, जो जेई/एईएस के रोकथाम लिए सहायता कर रहा है, आईईसी गतिविधियों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सामुदायिक मीटिंग और जागरूकता कार्यक्रम सभी प्रभावित जिलों में किए जा रहे हैं.
जागरूक करने का प्रयास ताकि रोकथाम में मिले मदद:
ऐसी ही आईईसी गतिविधियाॅं सभी प्रमुख स्थानों पर जिनमें टीवी, रेडियो, एसएमएस संदेश, होर्डिंग, माताओं की बैठकों, दीवार लेखन के माध्यम से संदेश इसके अलावा, पुस्तिकाएं और अखबार की अपीलों का वितरण भी शामिल हैं, किया जा रहा है. PATH के साथ स्वास्थ्य विभाग ने उच्च जोखिम वाले गांवों में सामुदायिक लोगों के साथ संपर्क भी किया गया है. अभी तक, 1156 वयस्क जनसंख्या में पहुंचने वाले प्रभावित जिलों में 258 बैठकें हो चुकी हैं.
क्या कहते हैं जेई/एईएस के आंकड़े :
- 12 अगस्त, 2017 तक एईएस के 1208 मामले सामने आए थे जिनमें 152 मृत्यु हुई.
- इनमें से 113 जेई के मामले थे और 6 जेई संबंधित मृत्यु हुयी थीं.
- वर्ष 2016 तुलना में 896 एईएस मामले दर्ज किए गए जिनमें से 129 मृत्यु हुई थी.
- इनमें 31 जेई रोगी थे और 4 जेई की मौतें थीं.
- 2017 में एईएस के मामलों में सीएफआर (Case fertility rate) जेई के लिए 13% और 5% है।
- जबकि 2016 में एईएस के लिए 14%, जेई के मामलों के 15% था.
- जेई के मामले 11% (2016) से 9% (2017) तक गिर गए हैं.
- वर्तमान वर्ष के आंकड़ों के अनुसार, बीआरडी पर 26% की तुलना में ईटीसी पर सीएफआर 3% है.
- स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, अधिकतर क्रिटिकल केस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आते हैं.