समाजवादी पार्टी (एसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी है साथ ही अटकलों का दौर रफ्तार पकड़ गया है। प्रत्याशियों की पहली सूची में अखिलेश यादव ने अपने लिए पुख्ता बताई जा रही कन्नौज सीट पर पत्नी डिंपल यादव की उम्मीदवारी बरकरार रखी है। इसके बाद से ही यह कयास तेज हो गए हैं कि अखिलेश यादव अपने लिए पूर्वांचल में कोई सीट चुन सकते हैं। फिलहाल एसपी संस्थापक मुलायम सिंह यादव की खाली की गई आजमगढ़ सीट पर उनकी दावेदारी की चर्चा है। मुलायम के मैनपुरी से लड़ने के चलते तेज प्रताप यादव का पत्ता कट गया है।
हालांकि, अखिलेश ने चतुराई से इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को ‘समर्पित’ कर दिया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एसपी समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कुछ और महिला उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे हैं। पार्टी ने 9 में तीन टिकट महिलाओं को देकर 33% कोटे के प्रति भी इशारा किया है। हालांकि 2014 में कन्नौज में जीतने के लिए एसपी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। डिंपल 20 हजार से भी कम वोटों से जीतीं थीं। यूपी विधानसभा चुनाव की हार के बाद परिवारवाद को लेकर उठ रहे सवालों के बीच अखिलेश यादव ने कहा था, ‘अगर हमारा परिवारवाद है तो हम तय करते हैं कि अगली बार हमारी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी।’ हालांकि, अपने इस दावे पर कुछ महीने बाद ही अखिलेश ढीले पड़ने लगे थे। पिछले दिनों उन्होंने मीडिया से बातचीत में डिंपल की दावेदारी के फिर संकेत दिए थे। शुक्रवार को सूची जारी करने के साथ ही यह पुख्ता भी हो गया।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]बहराइच-हरदोई में पुराने पर सपा ने खेला दांव[/penci_blockquote]
बहराइच से एसपी ने शब्बीर अहमद वाल्मीकि का टिकट बरकरार रखा है। चार बार के विधायक रहे शब्बीर पिछली बार बीजेपी की सावित्रीबाई फुले से 95 हजार वोट से हार गए थे। हरदोई से ऊषा वर्मा पर अखिलेश का भरोसा कायम है। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में वह तीसरे नंबर पर थीं। ऊषा वर्मा यहां से 1998 और 2004 में सांसद भी रह चुकी हैं। फिलहाल बीएसपी का साथ मिलने से एसपी की दावेदारी यहां मजबूत हो गई है लेकिन नरेश अग्रवाल का पाला बदल बीजेपी में आना समीकरण जरूर प्रभावित पड़ेगा।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]लखीमपुर-खीरी में चेहरा नया लेकिन जमीन पुरानी[/penci_blockquote]
इस सीट पर एसपी ने चेहरा तो बदला है लेकिन जड़ व जमीन पुरानी ही है। पार्टी ने राज्यसभा सदस्य रविप्रकाश वर्मा की बेटी डॉ. पूर्वी वर्मा को टिकट दिया है। एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद पूर्वी ने जेनयू से मॉस्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ की डिग्री ली है। 2014 में इस सीट से रवि प्रकाश वर्मा चुनाव लड़े थे और चौथे नंबर पर रहे थे। बाद में एसपी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। इस सीट से उनके पिता बालगोविंद वर्मा कांग्रेस के टिकट पर 1962, 1967 और 1971 में जबकि उनकी माता ऊषा वर्मा 1980, 1984 और 1989 में सांसद रही थी। रवि वर्मा खुद इस लोकसभा क्षेत्र का 1998, 1999 और 2004 में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पूर्वी सियासत में इस परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]यूपी के इटावा में पिता की जगह बेटे को टिकट[/penci_blockquote]
2014 में एसपी ने कमलेश के पिता प्रेमदास कठेरिया को टिकट दिया था। प्रेमदास 2009 में यहां से सांसद भी चुने गए थे। इस बार बीजेपी से सीट छीनने की जिम्मेदारी कमलेश पर सौंपी गई है। कमलेश पिछली विधानसभा चुनाव में इटावा की भरथना सीट से प्रत्याशी थे, जहां कड़े मुकाबले में वह बीजेपी की सविता कठेरिया से लगभग 2000 वोटों से हार गए थे।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]फिरोजाबाद में मुश्किल लड़ाई में चुनाव लड़ेंगे अक्षय[/penci_blockquote]
फिरोजाबाद से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ही फिर चुनाव लड़ेंगे। 2014 में सांसद बने अक्षय यादव के लिए इस बार सबसे बड़ी चुनौती उनके चाचा शिवपाल यादव बन गए हैं, जिन्होंने फिरोजाबाद से ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। हालांकि बीएसपी का साथ मिलने से राहत जरूर है, लेकिन त्रिकोणीय लड़ाई के चलते मुकाबला आसान नहीं रह जाएगा।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]राबर्ट्सगंज में बदला प्रत्याशी, भाईलाल कौल को दिया टिकट[/penci_blockquote]
राबर्ट्सगंज में एसपी ने इस बार भाईलाल कौल को टिकट दिया है। ये 1996 और 2012 में विधायक रहे हैं। एसपी ने पिछली बार यहां पकौड़ीलाल कौल को उम्मीदवार बनाया था। 2009 से इस सीट से सांसद रहे पकौड़ी ने 2017 में पाला बदलकर अपना दल का दामन थाम लिया था। उनके बेटे राहुल कोल को छानबे सीट से अपना दल ने टिकट दिया था और राहुल को जीत भी मिली थी। गठबंधन का उम्मीदवार होने के बाद भी भाईलाल के लिए राह आसान नहीं होगी क्योंकि 2014 में बीजेपी को यहां एसपी-बीएसपी के कुल वोट से भी 55 हजार अधिक वोट मिले थे।
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