2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी ने बसपा के साथ मिलकर तैयारी शुरू कर दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने विदेश दौरे से लौट आये हैं और चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। बसपा से गठबंधन में समाजवादी पार्टी जूनियर पार्टनर बनने के लिए तैयार है। अखिलेश के लिए यह पहला लोकसभा चुनाव होगा जो उनकी अध्यक्ष होने व रणनीति दोनों का जायजा लेगा। अब उनके सामने चुनौती है कि इन सीटों पर सपा की गैरमौजूदगी से होने वाले नुकसान से कैसे निपटेंगे।
40 सीटों की है बसपा की मांग :
सूत्र बताते हैं कि सपा के साथ गठबंधन में बसपा 40 से कम सीटों पर तैयार नहीं है। ऐसे में सपा को बाकी चालीस सीटों में रालोद व कांग्रेस से बात बनने पर हिस्सेदारी देनी होगी। ऐसे में सपा के सामने संकट है कि रालोद, कांग्रेस व अन्य को मिला कर 10 सीटें देनी पड़ी तो सपा के हिस्से में 30 सीटें आ पाएंगी। ऐसे में सपा अपने लोगों को सिर्फ इतनी सीटों पर कैसे राजी कर पाएगी और कैसे अपने लोगों को वोट पार्टनर दल को ट्रांसफर करा पाएगी यह बड़ा सवाल है।
विदेश यात्रा से लौटे अखिलेश :
अगले साल की होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अखिलेश यादव अब पार्टी को मजबूत करने में जुट गए हैं। बसपा के साथ गठबंधन में जाने से पहले अपने संगठन को दिशा निर्देश दे रहे हैं। इसके अलावा पार्टी नेतृत्व उनकी चुनावी रैलियां कराने के लिए होमवर्क कर रहा है। सपा अध्यक्ष अखिलेश विदेश यात्रा से लौट आए हैं और उन्होंने आते ही पार्टी नेताओं से मुलाकात की और संगठन संबंधी दिशा निर्देश दिए हैं लेकिन अब अखिलेश के सामने नयी समस्याएं खड़ी हो गई हैं। जूनियर पार्टनर की भूमिका स्वीकारने के बाद चुनावों में उसी हैसियत में बसपा संग रहना, बसपा व दूसरे सहयोगी दलों की सीटों पर सपा कार्यकर्ताओं को जंग के लिए तैयार करना और टिकट कटने से नाराज लोगों को भाजपा में जाने से रोकना अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।