अमेठी – गहरी साजिश का शिकार या हकीकत ? चिंतन का विषय बनी अमेठी जिले की डीपीआरओ।
अमेठी जिले कि जिला पंचायत राज अधिकारी श्रेया मिश्रा को विकास भवन स्थित उनके ही कार्यालय में लखनऊ से आई विजिलेंस की टीम ने 30 हजार रुपये नकद घूस लेते समय रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
सूत्र बताते हैं कि शिकायतकर्ता के द्वारा डीपीआरओ से मिलने की बात कई दिनों से चल रही थी लेकिन वह हर बार मिलने से मना कर दे रही थी ।
सूत्र यह भी बताते हैं कि आज जब वह कार्यालय में मौजूद थी तब गेट पर खड़े चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी द्वारा रोकने के बावजूद सफाई कर्मी के द्वारा जबरदस्ती अंदर घुसकर टेबल पर पैसे फेंकना और पीछे से विजिलेंस टीम का आ कर डीपीआरओ को गिरफ्तार कर लेना अपने आप में सामान्य बात नहीं है।
ऐसे में इस पूरे घटनाक्रम में कई सवाल खड़े होते हैं जिनके जवाब शायद किसी के पास नहीं है सबसे पहला सवाल यह है कि क्या एक जिला स्तरीय अधिकारी अपने विभाग के सबसे छोटे कर्मचारी से सीधे पैसे की डिमांड करता है और उससे घूस लेता है ?
क्या कर्मचारियों का काम सीधे अधिकारी ही करता है बीच में कोई भी स्टेप नहीं है तो फिर आखिरकार कार्यालय क्या करता है ?
डीपीआरओ के द्वारा सफाई कर्मी से घूस लेना वैसे ही हास्यास्पद लग रहा है जैसे पुलिस कप्तान का एक होमगार्ड से और बीएसए महोदय के द्वारा किसी रसोईया से घूस की बात कह दी गई हो ।
दूसरी बड़ी बात वहीं पर यह सामने आती है कि विजिलेंस टीम विकास भवन स्थित डीपीआरओ के कार्यालय में पहुंचकर डीपीआरओ को गिरफ्तार करती है तो उस समय वहां पर गिरफ्तारी कर गाड़ी पर बैठाने वाले वीडियो बनाने के लिए कुछ मीडिया कर्मी कहां से आए ?
क्या उन्हें विजिलेंस वाले सूचना देकर गए थे या फिर पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत इसी इंतजार में खड़े थे ? या फिर किसी सोची समझी साजिश के तहत इस तरह की घटनाक्रम को अंजाम तक पहुंचाया गया है ?
तत्पश्चात जिला पंचायत राज अधिकारी को अपने साथ लेकर विजिलेंस टीम अमेठी कस्बे में स्थित होटल इंटरनेशनल पहुंचने की जानकारी आखिरकार मीडिया कर्मियों तक कैसे पहुंची ?
जबकि विजिलेंस टीम बाहर से आती है यह भी टीम लखनऊ से आई हुई थी उसके द्वारा स्थानीय मीडिया कर्मियों को सूचित किया जाना संभव नहीं प्रतीत होता है ।
इस प्रकरण की सूचना जैसे ही अधिकारियों को लगती है तत्काल जिले के सभी अधिकारियों का नंबर नॉट रिचेबल अथवा स्विच ऑफ जाने लगता है।
इस मामले में अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी के द्वारा संबंधित घटनाक्रम के पक्ष अथवा विपक्ष में कोई भी बात मीडिया कर्मियों के सामने नहीं रखी गई।
एक प्लेन पेपर पर प्रेस नोट भी मीडिया पर वायरल होने लगा जिसमें जारी करने वाले अधिकारी का नाम पता इत्यादि कुछ भी नहीं था और ना ही कोई हस्ताक्षर थे जिससे यह प्रमाणित हो सके कि यह प्रेस नोट किस अधिकारी के द्वारा जारी किया गया है।
इस प्रेस नोट में पूरी जानकारी प्रदान करते हुए लिखा गया था कि अभियुक्ता के खिलाफ गौरीगंज थाने में मुकदमा पंजीकृत कर आवश्यक कार्यवाही की जा रही है जबकि प्रेस नोट आने के बाद जब थाना गौरीगंज से पता किया गया तो पता चला कि यहां पर अभी कोई भी मुकदमा पंजीकृत नहीं हुआ है।
तो फिर सवाल यह भी उठता है कि इतनी जल्दी बगैर नाम पता अथवा कार्यालय के आखिर प्रेस नोट जारी कर सोशल मीडिया पर वायरल करने वाला आखिर कौन है ?
इस समूचे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होने के बाद ही सच्चाई का पता लग पाएगा कि आखिर वास्तविकता है क्या?