भारत में तीरंदाजी की इतिहास तो हजारों साल पुराना है, लेकिन विश्व की नंबर बन आर्चरी खिलाड़ी दीपिका कुमारी की कामयाबी ने देश के हजारों खिलाड़ियों को इस खेल में आने का साहस दिया। विश्व के पटल पर अपनी जबरदस्त कामयाबी दर्ज कराने वाला यह खेल यूपी में दम तोड़ रहा है। राज्य और देश की तीरंदाजी में कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले मेरठ के आर्चरी प्लेअर्स के पास न तो साधन है और ना ही कोच।

एक हाथ में धनुष और दूसरे में बाण, निशाना सीधा मछली की आंख पर… ये कलयुग के धनुर्धर है जिनका मकसद… दुनियां भर में देश की तीरंदाजी की डंका बजाना है। बचपन से तीर के सहारे दुनियां को जीतने का ख्वाब देखने वाले मेरठी खिलाड़ियों के सपने अपने टूटने के कगार पर है।

वीडियो देखें:

https://www.youtube.com/watch?v=EsQeIUDXqnk&feature=youtu.be

दरअसल, मेरठ के स्पोर्ट्स स्टेडियम में बरसों से तीरंदाजी की प्रैक्टिस करने वाले इन खिलाड़ियों के पास न तो साधन है और न ही गुरू। बिना कोच के ये तीरंदाज अब तक राज्य और देश की कई स्पर्धाओं में तमगे जीत चुके है, लेकिन अब आगे की मंजिल बहुत कठिन है।

सुविधाओं के नाम पर स्टेडियम के गेट से सटा एक गंदा गलियारा इन तीरंदाजों के लिए देकर जिले के खेल विभाग ने अपनी जिम्मेदारियों से छुट्टी पा ली है। इस गलियारे में सफाई खिलाड़ी खुद करते है और जिन हथियारों से वो प्रैक्टिस करते है उनकी आर्थिक मदद के लिए भी स्टेडियम और खेल विभाग ने हाथ पीछे खींच लिए है।

बरसों से कोच का इंतजार कर रहे इन तीरंदाजों को सरकार के नए प्रपोजल में भी कोच नहीं मिला है। तीरंदाजी और स्वीमिंग को छोड़कर स्टेडियम को सरकार ने हर खेल का कोच मुहैया कराया है। ऐसे में आगे की स्पर्धाओं में अपनी दावेदारी छोड़ चुके इस खिलाड़ियों का साहस अब जबाब दे चुका है।

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